गोरखपुर में बच्चों की मौत: बड़ों को बख्शा, छोटों पर कार्रवाई, यही है न्याय!
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गोरखपुर में बच्चों की मौत: बड़ों को बख्शा, छोटों पर कार्रवाई, यही है न्याय!

गंभीर बीमारियों के चलते बीआरडी कॉलेज के बाल रोग विभाग में भर्ती दो दर्जन से अधिक बच्चों की मौत का एक प्रमुख कारण ऑक्सीजन का ब्रेकडाउन था. मुख्य सचिव की रिपोर्ट में इन मौतों की दूसरी वजह समाज और पूरे तंत्र को दीमक की तरह चाट रही कमीशनखोरी की बीमारी भी सामने आई है.

जब कार्रवाई की बात आई तो छोटों, यानि कालेज के प्राचार्य से लेकर डॉक्टरों, कर्मचारियों के खिलाफ निलम्बन से लेकर पुलिस में मामला तक दर्ज कराया गया (फाइल फोटो)

हरीश मिश्र

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृहनगर गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में इसी अगस्त माह के पहले पखवारे में महज दो दिनों के भीतर बच्चों की बड़ी तादाद में मौतों ने प्रदेश ही नहीं देश के जनमानस को झकझोर कर रख दिया था. इस दुर्भाग्यपूर्ण हादसे के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की सक्रियता और उनकी घोषणा कि ‘‘इस हादसे के लिए जो भी दोषी होगा उसे वह ऐसा दंड देंगे कि वो मिसाल बनेगी’’ से लोगों और पीडि़तों में एक न्याय की आस जगी थी.

योगी ने यह बयान न केवल लखनऊ में दिया बल्कि गोरखपुर मामले की जांच के  प्रधानमंत्री की ओर से भेजे गए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा की मौजूदगी में गोरखपुर में भी दिया था. यह सब इसलिए नहीं लिखा जा रहा है कि मुख्यमंत्री की नेक नीयती और घटना के प्रति उनकी संवेदनशीलता पर किसी तरह का संशय है. मुख्यमंत्री की घोषणा का उल्लेख सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि गोरखपुर हादसे के बाद सरकार की ओर से गठित दोनों जांच समितियों (मुख्य सचिव और डीएम) की रिपोर्ट आ गई है. उसके सार भी सार्वजनिक कर दिए गए हैं.

उनके आधार पर मुख्यमंत्री ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी बुधवार देर रात दे दिए. बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य सहित लगभग नौ लोगों के खिलाफ पुलिस एवं अन्य कार्रवाई भी शुरू की जा चुकी है. इन तथ्यों के साथ ही रिपोर्ट के आधार पर कुछ और बातें भी पूरी तरह उजागर हो गईं हैं.

गंभीर बीमारियों के चलते बीआरडी कॉलेज के बाल रोग विभाग में भर्ती दो दर्जन से अधिक बच्चों की मौत का एक प्रमुख कारण ऑक्सीजन का ब्रेकडाउन था. मुख्य सचिव की रिपोर्ट में इन मौतों की दूसरी वजह समाज और पूरे तंत्र को दीमक की तरह चाट रही कमीशनखोरी की बीमारी भी सामने आई है, जिसके चलते ऑक्सीजन सप्लाई एजेंसियों को लाखों रुपए का भुगतान तमाम पत्राचारों के बावजूद नहीं हुआ.

इस वजह से एजेंसियों ने ऑक्सीजन सप्लाई रोकी और मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग में भर्ती मौत से जूझ रहे बच्चों को ऑक्सीजन मिलना बाधित हुई. रिपोर्ट में इन तथ्यों के उल्लेख के साथ ही इस पूरे हादसे के लिए कालेज प्रशासन से लेकर शासन में बैठी नौकरशाही के लापरवाह रवैये का भी जिक्र किया गया है. यहां एक तथ्य का उल्लेख और जरूरी है कि स्वयं सरकार की ओर से बच्चों की मौत में लापरवाही को आपराधिक लापरवाही का जुर्म करार दिया गया था.

पर इन सबके बावजूद जब कार्रवाई की बात आई तो छोटों, यानि कालेज के प्राचार्य से लेकर डॉक्टरों, कर्मचारियों के खिलाफ निलम्बन से लेकर पुलिस में मामला तक दर्ज कराया गया. पर, घटना के समय शासन में बैठी (नौकरशाह बिरादरी) अतिरिक्त मुख्य सचिव चिकित्सा शिक्षा अनीता भटनागर, स्वास्थ्य सचिव आलोक कुमार सहित कई अन्य नौकरशाहों पर सख्ती के बजाय नरमी दिखाई गई. मुख्य सचिव की रिपोर्ट के बाद इन नौकरशाहों को उनके वर्तमान पदों से हटाकर दूसरी जगह तैनात कर दिया गया, जो किसी भी तरीके से दंड की श्रेणी में नहीं आता है.

सरकार की भाषा में कहें तो तबादला दंड नहीं होता है. तो फिर मुख्यमंत्री योगी के उस घोषणा, जिसमें उन्होंने किसी भी दोषी को न बख्शने और दंड ऐसा देने जो मिसाल बने, पर सवाल उठना लाजिमी है. माना जाए कि मुख्यमंत्री नौकरशाही के भ्रम जाल में हैं. मुख्यमंत्री की घोषणा के साथ खेल का यह किस्सा यहीं नहीं समाप्त होता क्योंकि गोरखपुर हादसे के सिलसिले में एक अन्य तथ्य बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिसे मुख्य सचिव और सरकार दोनों ही लगातार दबाए बैठे हैं.

वह तथ्य गोरखपुर के जिलाधिकारी राजीव रौतेला से जुड़ा है. राजीव रौतेला को प्रदेश में योगी सरकार के गठन के बाद गोरखपुर के जिलाधिकारी की कुर्सी सौंपी गई थी. राजीव रौतेला को कालेज में आक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी के बकाये लगभग 66 लाख रुपए और उसका भुगतान न होने की स्थिति में ऑक्सीजन सप्लाई करने में असमर्थता जताने संबंधित सप्लाई एजेंसी की चेतावनी की पूरी जानकारी थी.

एजेंसी की ओर से एक अगस्त को इस संबंध में कालेज प्राचार्य को लिखे गए पत्र की प्रतिलिपि भी जिलाधिकारी रौतेला को भेजी गई थी. ऐसी ही प्रतिलिपि चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक को भी एजेंसी ने भेजी थी. पर, रौतेला का मुख्य सचिव की रिपोर्ट में कहीं भी कोई जिक्र नहीं है. और इन सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक तो यह है कि जब बीआरडी कालेज में बच्चों की मौत का हादसा हुआ तो उन्हीं जिलाधिकारी रौतेला की अध्यक्षता में तात्कालिक तौर पर शासन ने मजिस्ट्रेटी जांच भी कराने के आदेश भी दिए थे.

जबकि पूरे प्रकरण पर गौर करने पर प्रथम दृष्टया ही साफ था कि रौतेला इस हादसे के लिए उतने ही जिम्मेदार हैं जितना कि कालेज प्रशासन और शासन में बैठे अन्य नौकरशाह आखिर अतिरिक्त मुख्य सचिव भटनागर से लेकर दूसरे नौकरशाहों के साथ ऐसा पक्षपातपूर्ण और नरम रवैया क्यों? रौतेला की लापरवाही के प्रति अनदेखी क्यों? जबकि मेडिकल कालेज प्रशासन, डॉक्टरों और कर्मचारियों तथा ऑक्सीजन सप्लाई एजेंसी के खिलाफ आपराधिक धाराओं में मुकदमे तक दर्ज कराए गए.

निलबंन व अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई तो पहले ऐसे लोगों के खिलाफ की जा चुकी है. मुख्यमंत्री जी कृपा पूर्वक अपनी घोषणा और नौकरशाहों के भ्रमजाल से सचेत हों, क्योंकि यह सब कारनामा नौकरशाहों का है.

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

 

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