मई 2017 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने इस घोटाले की जांच के लिए एसआईटी का गठन का आदेश दिया था. लेकिन, एसआईटी जुलाई 2018 में जाकर गठित की गई. अब तक मामले में किसी भी तरह की कोई प्रगति भी दिखाई नहीं दे रही है.
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देहरादून, (मनमोहन भट्ट): करीब पांच सौ करोड़ रुपए के छात्रवृत्ति घोटाले को लेकर अब नैनीताल हाईकोर्ट ने सख्त रुख दिखाया है. कोर्ट ने जांच पर ढीला ढाला रवैया अपनाने पर राज्य सरकार को फटकार लगाकर 3 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है. कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए राज्य सरकार से पूछा है कि क्यों ना इस घोटाले की जांच सीबीआई से कराई जाए.
वास्तव में घोटाले की खबरें आने के बाद मई 2017 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने इस घोटाले की जांच के लिए एसआईटी का गठन का आदेश दिया था. लेकिन, एसआईटी जुलाई 2018 में जाकर गठित की गई. अब तक मामले में किसी भी तरह की कोई प्रगति भी दिखाई नहीं दे रही है. जांच को ठंडे बस्ते में जाता देख आंदोलनकारी रविंद्र योगदान ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसकी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच कराने को लेकर टिप्पणी की है. मामले में राज्य के मुख्य सचिव से इस मामले में 3 हफ्ते में जवाब मांगा है.
अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्र-छात्राओं के लिए केंद्र और राज्य सरकार छात्रवृत्ति देते हैं. उत्तराखंड में देश के अलग-अलग हिस्सों से छात्र-छात्राएं पढ़ने के लिए देहरादून पहुंचते हैं. ऐसे में एक छात्र के कई संस्थानों में एक ही समय में पढ़ने की खबरें आई. मामले की जब पड़ताल हुई तो इसमें बड़े पैमाने पर घपले घोटाले की आशंका जताई जाने लगी. मार्च 2017 में जब त्रिवेंद्र रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने तो उनके सामने यह मामला लाया गया. मई 2017 में इसके लिए एसआईटी के गठन का आदेश पारित किया गया. लेकिन एसआईटी गठन करने में ही साल भर से ज्यादा का समय लग गया. इससे विभाग और सरकार में बैठे आला अधिकारियों की नियत पर शक जाहिर होने लगा.
इसके बाद मामले को लेकर रविंद्र जुगरान नैनीताल हाईकोर्ट पहुंचे. जुगरान का दावा है कि "यह घोटाला 2004 से अब तक चल रहा है. 2012 से लेकर 2014 तक राज्य के उधम सिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून के निजी कॉलेजों की मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया. जुगरान आगे कहते हैं कि जब एसआईटी 3 जिलों में ही जांच नहीं कर पा रही है तो फिर दूसरे राज्यों में जाकर कैसे जांच हो पाएगी? क्योंकि उत्तराखंड के हजारों छात्र-छात्राओं ने सात ऐसे दूसरे राज्यों में जाकर पढ़ाई की है जहां छात्रवृत्ति दी गई. यहां भी गड़बड़ घोटाले की आशंका बनी हुई है इसलिए इसकी सीबीआई जांच ही होनी चाहिए.
इधर राज्य के समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य कहते हैं कि इस मामले की एसआईटी जांच चल रही है. जांच निष्पक्ष रुप से होनी चाहिए. यदि कोर्ट चाहेगा तो सीबीआई जांच भी होनी चाहिए. जांच का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए और जिन तीन जिलों में घोटाले की आशंका ज्यादा है वहां खास तौर पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
बहरहाल अभी हाई कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को 3 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है. कोर्ट ने जांच कर रहे एसआईटी के इंचार्ज और अपर मुख्य सचिव को भी नोटिस जारी किया है. देखना यह दिलचस्प होगा कि 3 हफ्ते में सरकार कोर्ट को क्या जवाब देती है.