यूनिवर्सिटी के इस्तेमाल पर सियासी बवाल, कांग्रेस ने दर्ज कराया विरोध
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यूनिवर्सिटी के इस्तेमाल पर सियासी बवाल, कांग्रेस ने दर्ज कराया विरोध

कांग्रेस ने बकायादा शिक्षण संस्थानों के कुलपतियों को चिट्ठी लिखकर अपने परिसर में राजनैतिक कार्यक्रम ना करने की अपील की है.

फाइल फोटो

वाराणसीः धार्मिक नगरी काशी में लगातार शिक्षण संस्थाओं में हो रहे राजनैतिक कार्यक्रम अब सियासी विषय होते जा रहे हैं. जिले में पिछले कुछ दिनों में कई ऐसे कार्यक्रम हुए हैं जो कि बीजेपी और संघ की ओर से आयोजित किए गए थे. इन कार्यक्रमों में वाराणसी के शिक्षण संस्थानों का प्रयोग हुआ जिस पर वाराणसी कांग्रेस ने अपना विरोध दर्ज कराया है. कांग्रेस ने बकायादा शिक्षण संस्थानों के कुलपतियों को चिट्ठी लिखकर अपने परिसर में राजनैतिक कार्यक्रम ना करने की अपील की है.

गौरतलब है कि शनिवार 17 नवंबर को पूरे प्रदेश में बीजेपी की ओर से कमल संदेश बाइक रैली निकाली गई थी. वाराणसी में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय कैंपस में सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस बाइक रैली को हरी झंडी दिखाई थी. इसी दिन शाम को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अशोक सिंघल की पुण्यतिथि पर राम मंदिर के मुद्दे पर व्याख्यान का आयोजन किया गया था जिसमें राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी और विश्व हिंदू परिषद् के उपाध्यक्ष चंपत राय शामिल हुए थे. बीएचयू में तो छात्रों के एक गुट ने कार्यक्रम शुरू होने से पहले इसका विरोध तक किया था.

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कांग्रेस ने बकायदा इन कार्यक्रमों का विरोध कर कुलपतियों को चिट्ठी लिखकर भविष्य में ऐसे कार्यक्रमों के लिए परिसर ना देने की अपील की है. वाराणसी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय ने कहा कि “शैक्षणिक संस्थाओं में जागरूकता के कार्यक्रम और संवाद का तो स्वागत है लेकिन राजनैतिक कार्यक्रम करने का उद्देश्य परिसर का महौल खराब करना है. इस सरकार की प्राथमिकता में शैक्षणिक संस्थाओं से डॉक्टर, इंजिनीयर, वैज्ञानिक निकालना नहीं बल्कि संघ के स्वयंसेवक तैयार करना है. लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे, अगर आगे ऐसे और कार्यक्रम हुए तो हम कार्यक्रम स्थल पर जाकर उनका विरोध करेंगे.”

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वहीं बीजेपी काशी क्षेत्र के उपाध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह कहते हैं कि “अगर हम अपनी संस्कृति को उन संस्थानों में जाकर बच्चों के बीच बता रहे हैं तो इसमें किसी को क्या दिक्कत है. सारे लोगों को मुगलों और अंग्रेजों का इतिहास पढ़ाया गया है, हम उन्हें ये बता रहे हैं कि सही क्या था और गलत क्या था तो इन्हें दिक्कत होती है. इतिहास की सही जानकारी देने के लिए आगे भी जरूरत होगी तो ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएगें.”

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दोनों दलों के बयान से ये साफ हो गया है कि आगे आने वाले दिनों में ऐसे कार्यक्रम सियासी टकराव का कारण बनेंगे. जैसे जैसे चुनाव करीब आएंगे इस तरीके की टकराहट से राजनैतिक फायदे और नुकसान का भी कारण बनेगी. ऐसे में राजनैतिक दलों की चिंता केवल अपने नफे नुकसान तक सीमित दिखाई देती है ना कि ऐसे कार्यक्रमों से शैक्षणिक संस्थाओं के पाठ्यक्रम पर पड़ने वाले असर की. अब इन सियासी कार्यक्रमों का चुनाव के दौर में स्वरूप और बढ़ता जाएगा इतना तो तय हो गया है.

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