देहरादून: रणवीर एनकाउंटर मामले में 7 पुलिसकर्मी दोषी, दिल्ली हाईकोर्ट ने 11 को बरी किया
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देहरादून: रणवीर एनकाउंटर मामले में 7 पुलिसकर्मी दोषी, दिल्ली हाईकोर्ट ने 11 को बरी किया

देहरादून में हुए एमबीए छात्र रणबीर सिंह के फर्जी एनकाउंटर मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने 18 दोषी पुलिसकर्मियों की अपील पर अपना फैसला सुनाया है. 

17 पुलिसवालों को उम्रकैद और 1 को दो साल की  सजा सुनाई गई थी. (दिल्ली हाईकोर्ट- फाइल फोटो)

देहरादून, सुमित कुमार. देहरादून में हुए एमबीए छात्र रणबीर सिंह के फर्जी एनकाउंटर मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने 18 दोषी पुलिसकर्मियों की अपील पर अपना फैसला सुनाया है. जस्टिस एस मुरलीधर और आईएस मेहता की अध्यक्षता वाली पीठ ने सबूतों के अभाव में 11 पुलिसकर्मियों को बरी करने का आदेश दिया है जबकि 7 पुलिसकर्मियों को निचली अदालत से मिली सजा को बरकरार रखने का आदेश दिया गया है. दरअसल, 2014 में तीस हजारी कोर्ट ने 17 पुलिसकर्मियों को हत्या, अपहरण, सुबूत मिटाने और आपराधिक साजिश रचने और गलत सरकारी रिकॉर्ड तैयार करने के आरोप में दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इसके अलावा कोर्ट ने 18वें पुलिसकर्मी को दोषियों को बचाने के लिए दस्तावेजों से छेड़छाड़ के आरोप में दो साल सजा सुनाई थी. इस तीस हजारी कोर्ट के फैसले के खिलाफ 18 पुलिसकर्मियों ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अब पीड़ित पक्ष, सीबीआई और पुलिसकर्मियों का सुप्रीम कोर्ट जाना तय माना जा रहा है. 

  1. रणबीर सिंह फर्जी एनकाउंटर मामले में दिल्ली HC का फैसला
  2. 3 जुलाई 2009 को उत्तराखंड पुलिस ने किया था एनकाउंटर
  3. तीस हजारी कोर्ट ने 18 पुलिसकर्मियों को सुनाई थी सजा

क्या है पूरा मामला
गाजियाबाद के शालीमार गार्डन निवासी एमबीए छात्र रणवीर सिंह अपने दोस्त के साथ 2 जुलाई 2009 को देहरादून घूमने और नौकरी के लिए साक्षात्कार देने देहरादून गया था. वहां कुछ पुलिस अधिकारियों के साथ उसकी किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया था. 3 जुलाई 2009 को उत्तराखंड पुलिस ने रणवीर को लुटेरा बताकर देहरादून के थाना रायपुर के लाडपुर जंगल में एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया था.

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विवाद के बाद दिए थे जांच के आदेश
फर्जी एनकाउंटर को लेकर उठे विवाद के बाद मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई व बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस मामले को देहरादून से दिल्ली की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था. दूसरी तरफ पुलिस का तर्क था कि तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल 3 जुलाई 2009 को देहरादून में थीं, इसे लेकर शहर में हाई अलर्ट घोषित किया गया. इसी दौरान रणवीर और उसके साथियों ने लूटपाट की और पुलिसकर्मियों पर हमला भी किया जिस कारण एनकाउंटर किया गया. 

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SC के आदेश पर दिल्ली ट्रांसफर हुआ था मामला
सीबीआइ ने जब रणवीर सिंह फर्जी एनकाउंटर केस का खुलासा किया था तो दोषी 18 पुलिसकर्मियों ने खुद को बचाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया. मृतक के परिजनों ने वहां पर न्याय न मिलने की उम्मीद के चलते सुप्रीम कोर्ट में 9 मार्च 2010 को याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 29 मार्च 2011 को यह केस देहरादून की विशेष अदालत से दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में स्थानांतरित किया गया. तीस हजारी कोर्ट में इसकी सुनवाई 4 मई 2011 से शुरू हुई थी. 

दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने 9 जून 2014 को दिए फैसले में निलंबित इंस्पेक्टर संतोष कुमार जायसवाल, सब इंस्पेक्टर गोपाल दत्त भट्ट, नितिन चौहान, नीरज यादव, चंद्र मोहन सिंह रावत, राजेश बिष्ट व कांस्टेबल अजित सिंह, सतवीर सिंह, सुनील सैनी, चंद्रपाल, सौरभ नौटियाल, नागेंद्र राठी, विकास चंद्रा बालुनी, संजय रावत, मोहन सिंह राणा, इंदर भान सिंह और मनोज कुमार को हत्या व अपहरण के लिए षडयंत्र रचने के आरोप में उम्रकैद व जुर्माने की सजा सुनाई थी. इसके अलावा अदालत ने 18वें दोषी जसपाल सिंह गोसाई को दोषियों को बचाने के लिए दस्तावेजों से छेड़छाड़ के आरोप में दो साल की सजा सुनाई थी.

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