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भारत का इकलौता मंदिर जहां दिखता है स्वर्ग का नजारा! भगवान शिव से जुड़ा हुआ इतिहास, जानिए क्यों कार्तिकेय ने यहां दिया था अपने शरीर का बलिदान

उत्तराखंड में कई अनोखे धार्मिक स्थल हैं. आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने आप में अनोखा है और पूरे देश में इकलौता है. यहां से केदारनाथ, नंदा देवी और अन्य हिमालयी चोटियों का मनमोहक नजारा देखा जा सकता है. आइए जानते हैं कार्तिक स्वामी मंदिर की स्थापना से जुड़ी रहस्यमयी कथा...

 

महायज्ञ का आयोजन

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महायज्ञ का आयोजन

हर वर्ष 5 जून से 15 जून तक कार्तिक स्वामी मंदिर में भव्य महायज्ञ का आयोजन किया जाता है. इस वर्ष भी यज्ञ के दौरान हर दिन हजारों श्रद्धालु मंदिर पहुंचे. जलकलश यात्रा के दिन श्रद्धालुओं की संख्या चरम पर थी. देश-विदेश से आए भक्तों ने पूरे उत्साह से धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लिया. 

धार्मिक यात्रा और बसुधारा स्नान

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धार्मिक यात्रा और बसुधारा स्नान

इस वर्ष 28 मई से कार्तिक स्वामी मंदिर की धार्मिक यात्रा शुरू हुई. यात्रा के विशेष अवसर पर भगवान कार्तिकेय के प्रतीकात्मक स्नान के लिए बसुधारा तक यात्रा की गई, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल हुए. 

भारत का एकमात्र मंदिर

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भारत का एकमात्र मंदिर

रुद्रप्रयाग जनपद की पहाड़ियों पर स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर पूरे भारत का एकमात्र मंदिर है जो भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है. यह मंदिर समुद्र तल से 3050 मीटर (लगभग 10,000 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जहां से केदारनाथ, नंदा देवी और अन्य हिमालयी चोटियां साफ दिखाई देती हैं. बादलों के बीच बसे इस स्थान की अनुभूति स्वर्ग समान होती है.

पौराणिक कथा और आस्था की गहराई

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पौराणिक कथा और आस्था की गहराई

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों को ब्रह्मांड की परिक्रमा की चुनौती दी थी. गणेश ने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर विजय प्राप्त की, जिससे नाराज होकर कार्तिकेय ने अपने शरीर का बलिदान कर दिया. इसी कथा के स्मरण में यह मंदिर स्थापित हुआ, जो आस्था, बलिदान और भक्ति की गहराई को दर्शाता है और भक्तों को आत्ममंथन की प्रेरणा देता है.

आस्था के साथ पर्यावरण की जिम्मेदारी

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आस्था के साथ पर्यावरण की जिम्मेदारी

कार्तिक स्वामी मंदिर में न केवल श्रद्धा और भक्ति का अद्वितीय संगम देखा गया, बल्कि पर्यावरण के प्रति भी जागरूकता दिखाई दी. समिति ने यह संकल्प लिया कि धार्मिक आयोजनों के बाद सफाई जरूरी है ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस पवित्र स्थान की सुंदरता को उसी रूप में देख सकें. श्रद्धालुओं ने भी इस कार्य में बढ़-चढ़ कर भाग लिया, जिससे स्वच्छता का संदेश और मजबूत हुआ.

 

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