मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा है कि भू कानून को लेकर के प्रदेश में एक बार चर्चा होनी चाहिए. आम जनता की मुश्किलों का समाधान करते हुए एक ठोस भू-कानून बनना चाहिए...
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देहरादून: याद हो बीते 1 महीने से सोशल मीडिया पर #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून काफी ट्रेंड कर रहा था. दरअसल, हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड के युवा भी राज्य में भू कानून चाहते हैं. अब सोशल मीडिया की यह मुहिम जमीनी स्तर पर भी दिखने लगी है. बीते रविवार ही राजधानी देहरादून के कई चौराहों पर युवा इकट्ठा हुए और हाथ में पोस्टर और बैनर लिए सरकार ने कठोर भू कानून की मांग करने लगे.
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युवा कर रहे सरकार से अपील
युवाओं का कहना है कि उत्तराखंड के नवनिर्वाचित सीएम पुष्कर सिंह धामी एक युवा हैं और वह राज्य के युवाओं से ज्यादा कनेक्ट कर सकते हैं. उत्तराखंड का यूथ अपनी देवभूमि की संस्कृति को बचाने के लिए कठोर भू-कानून की अपील कर रहा है. वहीं, कुछ युवा सरकार को धमकी देने से भी नहीं कतरा रहे हैं. उनका कहना है कि अगर सरकार उनकी बात नहीं सुनती है तो इसका खामियाजा उन्हें 2022 के विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है.
विपक्ष भी कर रहा भू-कानून की मांग
युवाओं के अलावा अब विपक्ष भी सरकार पर हमला बोलने लगा है. कांग्रेस मंत्री सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि भू-कानून कोई विवाद का विषय नहीं है. कांग्रेस की सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने फूलप्रूफ भू-कानून बनाया था. लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने कॉर्पोरेट के नाम पर, इन्वेस्टमेंट के नाम पर, निवेश के नाम पर, भू कानून तहस-नहस कर दिया. राज्य में जो मांग चल रही है पहले लोगों को भू-कानून के बारे में पढ़ना चाहिए. एक पूरे राज्य भर के लिए भू-कानून होना चाहिए जिससे भूमाफिया दूर रहें.
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हरक सिंह रावत ने दिया बयान
वहीं राज्य सरकार के मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा है कि भू कानून को लेकर के प्रदेश में एक बार चर्चा होनी चाहिए. आम जनता की मुश्किलों का समाधान करते हुए एक ठोस भू-कानून बनना चाहिए. प्रदेश में ऐसा भी ना हो कि सारी जमीन बिक जाए और यहां के लोग बेघर हो जाएं. एक उचित मजबूत कानून बनाने की आवश्यकता है. सभी से चर्चा के बाद यह कानून बनाया जाना चाहिए.
क्या है उत्तराखंड भू कानून?
साल 2000 में जब उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर अलग संस्कृति, बोली-भाषा होने के दम पर एक संपूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था. उस समय कई आंदोलनकारियों समेत प्रदेश के बुद्धिजीवियों को डर था कि प्रदेश की जमीन और संस्कृति भू माफियाओं के हाथ में न चली जाए. इसलिए सरकार से एक भू-कानून की मांग की गई.
वहीं, प्रदेश में बड़े स्तर पर हो रही कृषि भूमि की खरीद फरोख्त, अकृषि कार्यों और मुनाफाखोरी की शिकायतों पर साल 2002 में कांग्रेस सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने संज्ञान लेते हुए साल 2003 में 'उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950' में कई बंदिशें लगाईं. इसके बाद किसी भी गैर-कृषक बाहरी व्यक्ति के लिए प्रदेश में जमीन खरीदने की सीमा 500 वर्ग मीटर हो गई.
इसके बाद साल 2007 में बीजेपी की सरकार आई और तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने अपने कार्यकाल में पूर्व में घोषित सीमा को आधा कर 250 वर्ग मीटर कर दिया. लेकिन यह सीमा शहरों में लागू नहीं होती थी. हालांकि, 2017 में जब दोबारा भाजपा सरकार आई तो इस अधिनियम में संशोधन करते हुए प्रावधान कर दिया गया कि अब औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमिधर स्वयं भूमि बेचे या फिर उससे कोई भूमि खरीदे तो इस भूमि को अकृषि करवाने के लिए अलग से कोई प्रक्रिया नहीं अपनानी होगी. औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदे जाते ही उसका भू उपयोग अपने आप बदल जाएगा और वह अकृषि या गैर कृषि हो जाएगा. इसी के साथ गैर कृषि व्यक्ति द्वारा खरीदी गई जमीन की सीमा को भी समाप्त कर दिया गया. अब कोई भी कहीं भी जमीन खरीद सकता था.
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