संभल, बहराइच, गोंडा के बाद गोरखपुर में भी सैयद सालार मसूद गाजी के 900 साल पुराने 'बाले मियां मेले' पर रोक, प्रशासन ने नहीं दी अनुमति, भविष्य पर सस्पेंस बरकरार
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संभल, बहराइच, गोंडा के बाद गोरखपुर में भी सैयद सालार मसूद गाजी के 900 साल पुराने 'बाले मियां मेले' पर रोक, प्रशासन ने नहीं दी अनुमति, भविष्य पर सस्पेंस बरकरार

Gorakhpur Latest News: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में इस साल 900 साल पुराना ऐतिहासिक ‘बाले मियां का मेला’ नहीं लगेगा. यह मेला हर साल सैयद सालार मसूद गाजी उर्फ बाले मियां की याद में लगाया जाता था. 

 

फाइल फोटो
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Gorakhpur Hindi News: संभल, बहराइच और गोंडा में सैयद सालार मसूद गाजी के मेले पर प्रशासन ने रोक लगा दी. इसके बाद अब गोरखपुर में भी मेला नहीं लगेगा. यह मेला हर साल सैयद सालार मसूद गाजी उर्फ बाले मियां की याद में आयोजित किया जाता था. इस बार मेला रविवार से शुरू होना था, लेकिन जिला प्रशासन ने आयोजन की अनुमति नहीं दी. हाईकोर्ट द्वारा पहले से ही मेले पर रोक लगाए जाने के कारण प्रशासनिक स्तर पर कोई निर्णय नहीं लिया गया. नतीजतन, आयोजन स्थल बहरामपुर के राप्ती नदी किनारे स्थित मैदान में न तो कोई तैयारियां हुई और न ही चहल-पहल नजर आई. 

दरगाह शरीफ के मुतवल्ली मोहम्मद इस्लाम हाशमी ने बताया कि उन्होंने 18 मई से मेला शुरू होने की घोषणा की थी और प्रशासन से अनुमति के लिए आवेदन भी किया था. लेकिन अब तक कोई आधिकारिक आदेश नहीं मिला है. इस दौरान ये भी  कहा कि  भले ही कोई लिखित प्रतिबंध नहीं आया हो, पर प्रशासनिक स्वीकृति न मिलना ही मेले के रद्द होने के बराबर है. 

900 वर्षों की परंपरा पर विराम
यह मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि गोरखपुर की सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा रहा है. आज़ादी से पहले महात्मा गांधी ने भी बाले मियां मैदान से जनसभा को संबोधित किया था. परंपरागत रूप से मेले में बच्चों के लिए झूले, विशालकाय फेरिस व्हील, ड्रैगन राइड और तरह-तरह के व्यंजन स्टॉल लगाए जाते थे. लेकिन इस बार मैदान में न कोई साज-सज्जा हुई और न ही कोई दुकान नजर आई.

निर्माण कार्य भी बना बाधा
स्थानीय लोगों के अनुसार, हर्बर्ट बांध के चौड़ीकरण का काम चलने के कारण मेला मैदान में भारी मात्रा में निर्माण सामग्री डंप कर दी गई है. इससे भी आयोजन स्थल अनुपयुक्त हो गया है और मेला लगना संभव नहीं हो सका.

अधिकारियों की चुप्पी
हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासनिक अधिकारी भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं. मैदान में इस बार न कोई भीड़ दिखी, न ही पहले जैसा उत्सव का माहौल. सिर्फ कुछ श्रद्धालु ही दरगाह पर चादरपोशी के लिए पहुंचे.

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