जब कानपुर की सड़कों पर दौड़ती थीं ट्रेनें, सवा सौ साल पहले घंटाघर-मॉल रोड से सरसैया घाट तक चलती थी ट्रॉम
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जब कानपुर की सड़कों पर दौड़ती थीं ट्रेनें, सवा सौ साल पहले घंटाघर-मॉल रोड से सरसैया घाट तक चलती थी ट्रॉम

Kanpur Tram: जब भी ट्राम का जिक्र आता तो पश्चिम बंगाल का कोलकाता दिमाग में आता है. पहले दिल्ली में भी ट्राप दौड़ा करती थी. क्या आप जानते हैं कि यूपी में भी ट्राम चला करती थी. आइए जानते हैं इस शहर के बारे में...

kanpur Tram (AI Photo)
kanpur Tram (AI Photo)

Kanpur Tram: ‘कानपुर कनकैया, ऊपर चलै ट्रेन का पहिया, नीचे बहती गंगा मैया’ शायद ही किसी पुराने कनपुरिये को न पता हो, लेकिन ट्रेन के साथ-साथ कभी यहां ट्राम भी चला करती थीं, जो सार्वजनिक परिवहन का पहला आधुनिक जरिया थी.साइकिल से चलने वाले अधिकतर कनपुरियों को ट्राम के रूप में सौगात सन् 1907 में मिली और 26 साल लगातार वे इस पर सफर करते रहे. आजादी से 40 साल पहले ही यहां इंटीग्रेटेड ट्रांसपोर्ट सिस्टम लागू करके अंग्रेजों ने भी यह स्पष्ट कर दिया था कि यह शहर हमेशा विकास चाहता है.

इन रूटों से गुजरती थी ट्राम
जीटी रोड स्थित पुराना रेलवे स्टेशन (जीटी रोड) से सरसैया घाट तक डबल ट्रैक पर ट्राम चलती थी.   इसका रूट पुराने स्टेशन से शुरू होकर घंटाघर, हालसी रोड, बादशाही नाका, नई सड़क, हॉस्पिटल रोड, कोतवाली, बड़ा चौराहा और सरसैया घाट पर खत्म होता था. नई सड़क पर रोड़ के दोनों ओर ट्राम का ट्रैक था.  वरिष्ठ इतिहासकार के मुताबिक नई सड़क के आगे बीपी श्रीवास्तव मार्केट (मुर्गा मार्केट) में ट्राम के रखरखाव के लिए यार्ड बना हुआ था. उस समय इस जगह को कारशेड चौराहा कहा जाता था, जो बोलचाल में बिगड़ते-बिगड़ते कारसेट चौराहा हो गया.  

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क्या थी इसकी खासियत
ट्राम सरसैया घाट के किनारे तक जाती थी.  ऐसा इसलिए किया गया था कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु रोज गंगा स्नान के लिए जाते थे. इसके डिब्बों की विशेषता थी खुली छत.  इसके डिब्बे सिंगल डेक थे.  ऊपर बैठने की व्यवस्था थी, लेकिन उस पर छत नहीं थी.  ऊपर बैठे लोग खुली हवा का आनंद लेते रहते थे.  यह दूरी करीब चार मील थी.

कानपुर में दिल्ली से पहले ट्राम और बिजली
ब्रिटिश राज में शहर के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1900 में कोलकाता में ट्राम आने के बाद 1907 में कानपुर और मुंबई में ट्राम चलाई गई. कानपुर में बिजली भी  दिल्ली से पहले आई.  दिल्ली में ट्राम 1908 में आई.  ये सभी ट्राम बिजली से चलती थीं. मद्रास में घोड़े से खींची जाने वाली ट्राम चलती थी और  1933 में ट्राम बंद हो गई.  त

 1933 तक चली यह सर्विस
 यह सर्विस जून-1907 से शुरू होकर 16 मई, 1933 तक चली थी. सन् 1933 में ट्राम को बंद कर दिया गया.  कुल 26 सालों के सफर में ट्राम लोगों के लिए बहुत मददगार साबित हुई.  शहर की सड़कों पर ट्रैफिक बढ़ने और इसे चलाने में हो रहा घाटा, इसके बंद होने का कारण बना.

डिस्क्लेमर- लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि स्वयं करें. जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.

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Kanpur Tram: 
जब भी ट्राम का जिक्र आता तो पश्चिम बंगाल का कोलकाता दिमाग में आता है. पहले दिल्ली में भी ट्राप दौड़ा करती थी. क्या आप जानते हैं कि यूपी में भी ट्राम चला करती थी. आइए जानते हैं इस शहर के बारे में...

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इन रूटों से गुजरती थी ट्राम
जीटी रोड स्थित पुराना रेलवे स्टेशन (जीटी रोड) से सरसैया घाट तक डबल ट्रैक पर ट्राम चलती थी.   इसका रूट पुराने स्टेशन से शुरू होकर घंटाघर, हालसी रोड, बादशाही नाका, नई सड़क, हॉस्पिटल रोड, कोतवाली, बड़ा चौराहा और सरसैया घाट पर खत्म होता था. नई सड़क पर रोड़ के दोनों ओर ट्राम का ट्रैक था.  वरिष्ठ इतिहासकार के मुताबिक नई सड़क के आगे बीपी श्रीवास्तव मार्केट (मुर्गा मार्केट) में ट्राम के रखरखाव के लिए यार्ड बना हुआ था. उस समय इस जगह को कारशेड चौराहा कहा जाता था, जो बोलचाल में बिगड़ते-बिगड़ते कारसेट चौराहा हो गया.  

क्या थी इसकी खासियत
ट्राम सरसैया घाट के किनारे तक जाती थी.  ऐसा इसलिए किया गया था कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु रोज गंगा स्नान के लिए जाते थे. इसके डिब्बों की विशेषता थी खुली छत.  इसके डिब्बे सिंगल डेक थे.  ऊपर बैठने की व्यवस्था थी, लेकिन उस पर छत नहीं थी.  ऊपर बैठे लोग खुली हवा का आनंद लेते रहते थे.  यह दूरी करीब चार मील थी.

कानपुर में दिल्ली से पहले ट्राम और बिजली
ब्रिटिश राज में शहर के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1900 में कोलकाता में ट्राम आने के बाद 1907 में कानपुर और मुंबई में ट्राम चलाई गई. कानपुर में बिजली भी  दिल्ली से पहले आई.  दिल्ली में ट्राम 1908 में आई.  ये सभी ट्राम बिजली से चलती थीं. मद्रास में घोड़े से खींची जाने वाली ट्राम चलती थी और  1933 में ट्राम बंद हो गई.  त

 1933 तक चली यह सर्विस
 यह सर्विस जून-1907 से शुरू होकर 16 मई, 1933 तक चली थी. सन् 1933 में ट्राम को बंद कर दिया गया.  कुल 26 सालों के सफर में ट्राम लोगों के लिए बहुत मददगार साबित हुई.  शहर की सड़कों पर ट्रैफिक बढ़ने और इसे चलाने में हो रहा घाटा, इसके बंद होने का कारण बना.

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