फतवे में कहा कि जिस तरह नमाज के बदले जकात और जकात के बदले कुछ और विकल्प नहीं हो सकते, उसी तरह कुर्बानी का बदला कोई और विकल्प नहीं हो सकता.
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सहारनपुर: क्या किसी बेजुबान की हत्या करना जायज और किसी गरीब की मदद करना नाजायज हो सकता है? क्योंकि बकरीद से पहले कुर्बानी को लेकर दारुल उलूम का एक फतवा कहता है कि कुर्बानी के पैसों से कुर्बानी ही जायज है, किसी की मदद करना नहीं.
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दरअसल, एक व्यक्ति ने देवबंद स्थित विश्वविख्यात इस्लामिक संस्था दारुल उलूम से पूछा था कि क्या कुर्बानी के पैसों से किसी गरीब की मदद करना जायज है? जिस पर दारुल उलूम के दारुल इफ्ता यानि फतवा विभाग ने एक फतवा जारी किया और कहा कि ऐसा करना जायज नहीं है.
फतवे के जरिए दलील दी गई कि जिस तरह नमाज के बदले जकात और जकात के बदले कुछ और विकल्प नहीं हो सकते, उसी तरह कुर्बानी का कोई और विकल्प नहीं हो सकता.
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