दिल्ली में लोन वुल्फ अटैक की तैयारी में था ISIS आतंकी, बेहद खतरनाक है दहशतगर्दी का ये तरीका
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दिल्ली में लोन वुल्फ अटैक की तैयारी में था ISIS आतंकी, बेहद खतरनाक है दहशतगर्दी का ये तरीका

दहशतगर्दी का ये तरीका आतंक की दुनिया में अभी 6-7 साल पुराना ही है लेकिन यकीन मानिए ये ऑर्गेनाइज्ड अटैक से कहीं ज्यादा खतरनाक है. 

सांकेतिक तस्वीर

दिल्ली से पकड़ा गया इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया का आतंकी अबू युसुफ खान राजधानी के अलावा कुछ और इलाकों को लोन वुल्फ अटैक के लिए चिह्नित कर रहा था. 15 अगस्त तक हाई सिक्योरिटी से उसके मंसूबे पूरे नहीं हुए तो राजधानी में उसने लोन वुल्फ अटैक की पूरी तैयारी कर ली थी. दहशतगर्दी का ये तरीका आतंक की दुनिया में अभी 6-7 साल पुराना ही है लेकिन यकीन मानिए ये ऑर्गेनाइज्ड अटैक से कहीं ज्यादा खतरनाक है. 

  1. घर में बैठकर ही आतंकी योजना बना लेते हैं अटैकर्स 
  2. न संसाधन की जरूरत होती है, न ही किसी बड़े प्लान की 
  3. पुलिस ने ये लोन वुल्फ अटैकर्स को ट्रेस करना बड़ी चुनौती 

इस्लामिक स्टेट ने सिखाया दहशतर्गदी का पाठ 
लोन वुल्फ अटैक आतंकी संगठनों के जरिए आतंक फैलाना का नया जरिया बन गया है. इस तरीके को ISIS ने खास तौर पर पश्चिमी देशों के विकसित किया था, जहां जाकर संगठन स्थापित करना उनके लिए मुश्किल था. 2015-16 में इस तरह के कई अटैक पश्चिमी देशों पर इस्लामिक स्टेट के एजेंट्स ने किए. 

कम संसाधनों में होता है बड़ा नुकसान 
ये तरीका आतंकियों के लिए ज्यादा आसान है, क्योंकि इसके लिए दहशतगर्दों को किसी बड़ी योजना या साधन की जरूरत नहीं पड़ती. 2016 से लेकर अब तक दुनियाभर में लोन वुल्फ अटैक में सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है. हमले के बाद हमलावरों ने या तो खुद को खत्म कर लिया या फिर पुलिस से मुठभेड़ में वे मारे गए.

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कैसे होता है लोन वुल्फ अटैक?
लोन वुल्फ अटैक हमले का वो तरीका है जिसमें आतंकी रोजमर्रा या साधारण चीजों का इस्तेमाल करते हैं. इस तरह के हमले में हमलावर अकेला ही पूरे अटैक को अंजाम देता है. मकसद साफ होता है -अकेले दम पर ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना. खास बात ये है कि इसके लिए फिदायीन हमले की तरह ज्यादा विस्फोटक या संसाधन की जरूरत नहीं होती. ऐसे अटैक छोटे हथियारों, चाकुओं, बंदूकों और कभी-कभी हाथ से बनाए गए विस्फोटकों से भी किए जाते हैं. 

पुलिस के लिए चुनौती हैं ऐसे वुल्फ अटैकर्स 
इस तरह के हमलावर का पता लगाना पुलिस के लिए मुश्किल होता है. क्योंकि हमले के लिए किसी बड़े बजट, बड़ी योजना या बड़ी टीम की जरूरत नहीं होती. खुफिया एजेंसियों के लिए भी ऐसे प्लान का पता लगाना और उसे फेल करना मुश्किल होता है, क्योंकि ये अकेले बैठकर घर में ही बन जाते हैं. कई बार तो परिवार को भी इस बात का अंदाजा नहीं हो पाता. 

इंटरनेट के जरिये मिल जाती है ट्रेनिंग 
पुराने आतंकी संगठनों में टेक्नॉलजी का इतना इस्तेमाल नहीं होता था, जितना ISIS के लड़ाकों ने किया. ये युवाओं को इंटरनेट के जरिये ही रेडिकल बनाते हैं और उनकी मानसिकता ऐसे हमलों के लिए तैयार कर देते हैं. यही वजह है कि लोन वुल्फ हमलावर इंटरनेट या किसी अन्य माध्यम के जरिए आतंकी संगठनों के जुड़े होते हैं और उनसे ट्रिक्स सीखकर गंभीर घटनाओं को अंजाम दे देते हैं. 

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