लखनऊ: अपराधियों का नार्को और पॉलीग्राफ टेस्ट होना तो आम बात है, लेकिन यह शायद पहला मौका होगा जब उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों का पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट होगा. हाथरस कांड में सचिव गृह भगवान स्वरूप की अध्यक्षता में गठित विशेष जांच दल (एसआइटी) की पहली रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के अनुरूप बड़ा कदम उठाया गया है. एसआईटी ने हाथरस केस की शुरूआती जांच में यह बात कबूली है स्थानीय पुलिस और प्रशासन की ओर से लापरवाही बरती गई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले में एसपी हाथरस विक्रांत वीर व सीओ राम शब्द समेत पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित करने के साथ ही उनके पॉलीग्राफ व नार्को टेस्ट कराने का आदेश दे दिया है.


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सेवानिवृत्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का मानना है कि यूं तो सीआरपीसी के तहत नार्को अथवा पॉलग्राफ टेस्ट की रिपोर्ट को बतौर साक्ष्य कई बार अदालत मान्यता देती है और कई मामलों में नहीं भी देती. हालांकि, ऐसे टेस्ट किसी मामले की जांच में साक्ष्य जुटाने के लिए एक बेहतर जरिया जरूर हैं. बहुचर्चित फर्जी स्टांप पेपर घोटाले में आरोपित अब्दुल करीम तेलगी के विरुद्ध कोर्ट ने नार्को टेस्ट रिपोर्ट को बतौर साक्ष्य लिया था और उसे सजा भी सुनाई गई थी.


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उत्तर प्रदेश में इससे पहले प्रतापगढ़ जिले के कुंडा कांड में पुलिसकर्मियों का नार्को टेस्ट कराने की पहल की गई थी. इस केस में सीओ जियाउल हक की हत्या के मामले में सीबीआइ ने जांच की थी. तब तत्कालीन एसओ हथिगवां मनोज कुमार शुक्ला समेत दो पुलिसकर्मियों का नार्को टेस्ट कराने के लिए कोर्ट में अर्जी दी गई थी, लेकिन अनुमति नहीं मिल सकी थी. विशेषज्ञों का कहना है कि हाथरस कांड में पुलिस अधिकारियों व कर्मियों के पॉलीग्राफ व नार्को टेस्ट से घटना के अब तक कई अनछुए पहलू और तथ्य भी सामने आ सकते हैं.


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