पतियों की मौत के बाद दोनों महिलाओं के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया. एक इंच जमीन भी नहीं थी कि खेती-किसानी करके अपने बच्चों का पेट पाल सकें.
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अजीत सिंह/जौनपुर: हिन्दू धर्म के अनुसार जहां महिलाएं श्मशान घाट पर जाने से पूरी तरह पाबंदित हैं, वहीं जौनपुर की दो महिलाएं मजबूरी में मरघट पर आने वाली लाशों का अंतिम संस्कार करके अपने बच्चों का पेट पाल रही हैं. सर्दी, गर्मी या बरसात हर मौसम में कड़ी मेहनत करने के बाद भी उन्हें बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी नसीब होती है.
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पतियों के जाने के बाद नहीं मिला कोई और जरिया
जौनपुर जिले के खुटहन थाना क्षेत्र के पिलकिछा घाट पर शवों का अंतिम संस्कार कर रही दोनों महिलाएं आज से पांच साल पहले आम महिलाओं की तरह ही घर गृहस्थी संभाला करती थीं, लेकिन दोनों पर कुदरत ने ऐसा कहर ढाया कि उनकी दुनिया ही उजड़ गई. एक-एक करके दोनों के पतियों की मौत हो गई.
पतियों की मौत के बाद दोनों महिलाओं के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया. एक इंच जमीन भी नहीं थी कि खेती-किसानी करके अपने बच्चों का पेट पाल सकें. ऐसे में दोनों ने अपने पतियों द्वारा किए जा रहे काम को ही जीवन यापन करने का जरिया चुना. यह दोनों महिलाएं घाट पर आने वाली लाशों का अंतिम संस्कार करके जीवन यापन कर रही हैं.
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हिंदू धर्म में श्मशान घाट पर महिलाओं को क्यों नहीं जाने दिया जाता?
ऐसा माना जाता है श्मशान घाट पर हमेशा नकारात्मक ऊर्जा फैली होती है. महिलाओं के श्मशान घाट जाने पर नकारात्मक ऊर्जा आसानी से उनके शरीर प्रवेश कर सकती है, क्योंकि स्त्रियां कोमल ह्रदय की मानी जाती हैं. चूंकि महिलाओं भावुक होती हैं और श्मशान में जो दृश्य होते हैं उसको देखकर वह अपने आपको विलाप करने से नहीं रोक पाती हैं.
श्मशान के दृश्य देखकर उनके डर जाने या सदमा लगने की संभावना भी ज्यादा होती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार अंतिम संस्कार में परिवार के सदस्यों को अपने बाल कटवाने पड़ते हैं. जबकि महिलाओं के मुंडन को शुभ नहीं माना जाता है. इन सब कारणों की वजह से ही हिंदू धर्म में श्मशान घाट पर महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई है.
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