कानपुर मेट्रो में ट्रैक बिछाने का काम शुरू, IIT स्टेशन के पास तैयार हुआ पहला क्रॉस-ओवर
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कानपुर मेट्रो में ट्रैक बिछाने का काम शुरू, IIT स्टेशन के पास तैयार हुआ पहला क्रॉस-ओवर

 बीते सोमवार को आईआईटी मेट्रो स्टेशन के पास मेनलाइन के वायडक्ट पर पहला क्रॉस-ओवर कास्ट किया गया. बता दें इन क्रॉस-ओवर्स से होते हुए ट्रेन अपना ट्रैक या लाइन चेंज करती है और अपनी दिशा बदलती है. 

फाइल फोटो.

कानपुर: कोरोना कर्फ्यू में मेट्रो वर्क तेजी से चल रहा है. कानपुर में आईआईटी से मोतीझील के बीच बन रहे प्रयॉरिटी कॉरिडोर का काम अब एक स्टेप और आगे बढ़ गया है. सोमवार रात आईआईटी मेट्रो स्टेशन के पास बैलेस-लेस (गिट्टी-रहित) ट्रैक के पहले क्रॉस-ओवर की कास्टिंग की गई. इसके साथ ही कानपुर मेट्रो के प्रयॉरिटी सेक्शन की मेनलाइन पर ट्रैक बिछाने के काम की शुरुआत हो गई.

10 मई यानी बीते सोमवार को आईआईटी मेट्रो स्टेशन के पास मेनलाइन के वायडक्ट पर पहला क्रॉस-ओवर कास्ट किया गया. बता दें इन क्रॉस-ओवर्स से होते हुए ट्रेन अपना ट्रैक या लाइन चेंज करती है और अपनी दिशा बदलती है. 

लखनऊ से मंगाई जा रही हैं रेल पटरियां
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी काम को लगातार जारी रखने के लिए मेट्रो इंजीनियर्स की टीम की उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लि. (यूपीएमआरसी) के प्रबंध निदेशक कुमार केशव ने प्रशंसा की. उन्होंने कहा, “कोविड-19 संक्रमण के कारण व्याप्त मौजूदा संकट के समय में भी हम लगातार कानपुर मेट्रो रेल परियोजना के प्रयॉरिटी कॉरिडोर को समय पर पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं. यूपीएमआरसी ट्रैक की सप्लाई के लिए अंतरराष्ट्रीय अनुबंध कर चुका है. समय की बचत के लिए हमने लखनऊ से रेल (पटरियां) मंगाकर कानपुर में ट्रैक बिछाने का काम शुरू कर दिया है. ट्रैक का काम समय से शुरू करने के लिए मैं यूपीएमआरसी की ट्रैक टीम और जनरल कन्सल्टेन्ट (जीसी) को बधाई देता हूं." 

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क्या हैं बैलेस-लेस ट्रैक के फायदे?

1. बैलेस-लेस ट्रैक में बैलेस यानी गिट्टी नहीं होती. इस वजह से इन्हें न के बराबर मेंटेनेंस की ज़रूरत पड़ती है. 

2. मेट्रो परियोजनाओं में मेनलाइन पर आमतौर पर बैलेस-लेस ट्रैक ही इस्तेमाल होता है, क्योंकि 15-16 घंटों के ट्रेन ऑपरेशन्स के दौरान, ट्रेनें बहुत ही कम समय-अंतराल पर चलती हैं. जिस वजह से ऑपरेशन्स के दौरान ट्रैक का मेंटेनेंस संभव नहीं होता. 

3. बैलेस-लेस ट्रैक पर ट्रेन की स्टेबिलिटी बेहतर होती है और ट्रेन के अंदर यात्रियों को न के बराबर वाइब्रेशन या झटका महसूस होता है, जो यात्रा को अधिक सुविधाजनक बनाता है. 

4. बैलेस वाले ट्रैक की अपेक्षा इन ट्रैक्स की लाइफ साइकल अधिक होती है, यानी ये लंबे समय तक चलते हैं. 

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