जानिए कब हुआ था स्मारक घोटाला, कैसे खुली थी इस घपले की पोल
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जानिए कब हुआ था स्मारक घोटाला, कैसे खुली थी इस घपले की पोल

इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन उपायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी. लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात कही थी. 

आरोप है कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घोटाला कर सरकारी रकम का दुरूपयोग किया गया है.

नई दिल्ली: बसपा सुप्रीमो मायावती ने साल 2007 से 2012 तक के अपने कार्यकाल में लखनऊ-नोएडा में आम्बेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का आम्बेडकर पार्क, रमाबाई आम्बेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत पत्थरों के कई स्मारक तैयार कराए थे. इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41 अरब 48 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. आरोप लगा था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घोटाला कर सरकारी रकम का दुरूपयोग किया गया है. सत्ता परिवर्तन के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन उपायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी. लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात कही थी. 

- लोकायुक्त की रिपोर्ट में कहा गया था कि सबसे बड़ा घोटाला पत्थर ढोने और उन्हें तराशने के काम में हुआ है. जांच में कई ट्रकों के नंबर दो पहिया वाहनों के निकले थे. इसके अलावा फर्जी कंपनियों के नाम पर भी करोड़ों रुपये डकारे गए.

- लोकायुक्त ने 14 अरब 10 करोड़ रूपये से ज़्यादा की सरकारी रकम का दुरूपयोग पाए जाने की बात कहते हुए डिटेल्स जांच सीबीआई या एसआईटी से कराए जाने की सिफारिश की थी. सीबीआई या एसआईटी से जांच कराए जाने की सिफारिश के साथ ही बारह अन्य संस्तुतियां भी की गईं थीं. 

- लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी माना गया था. इनमे मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा के साथ ही कई विधायक और तमाम विभागों के बड़े अफसर शामिल थे.

- पूर्व की अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त द्वारा इस मामले में सीबीआई या एसआईटी जांच कराए जाने की सिफारिश को नजरअंदाज करते हुए जांच सूबे के विजिलेंस डिपार्टमेंट को सौंप दी थी.

- विजिलेंस ने एक जनवरी साल 2014 को गोमती नगर थाने में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत उन्नीस नामजद व अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर अपनी जांच शुरू की. क्राइम नंबर 1/2014 पर दर्ज हुई एफआईआर में आईपीसी की धारा 120 B और 409 के तहत केस दर्ज कर जांच शुरू की गई. तकरीबन पौने पांच साल का वक्त बीतने के बाद भी अभी तक इस मामले में चार्जशीट दाखिल नहीं हुई है. 

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