History of Shri Digambar Shri Digambar Ani Akhara (Sabarkantha): यूपी के प्रयागराज में 13 जनवरी से लगने जा रहे महाकुंभ में साधु-संतों के 13 अखाड़े भी लाखों साधुओं के साथ शामिल होने जा रहे हैं. इन अखाड़ों में शैव और वैष्णव मत के मानने वाले दोनों हैं. अपनी अखाड़ों की सीरीज में आज हम आपको वैष्णव संप्रदाय के श्री दिगंबर अणि अखाड़ा (साबरकांठा) के बारे में बताने जा रहे हैं.  इस अखाड़े का उद्भव अयोध्या से हुआ लेकिन अब मुख्यालय गुजरात में है. धर्म की रक्षा के लिए अणि अखाड़े के साधु संत महात्मा एक हाथ मे माला और दूसरे हाथ में भाला लेकर सनातन धर्म और मठ मंदिरों की रक्षा के लिए युद्ध लड़ चुके हैं.


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गौरवशाली इतिहास
सनातन धर्म की रक्षा करने वाले अखाड़ों में शैव और उदासीन अखाड़ों की तरह ही वैष्णव सम्प्रदाय के अखाड़ों का भी गौरवशाली इतिहास रहा है. सनातन धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक से मुकबला कर धर्म की रक्षा की है और उस दौरान हजारों साधुओं ने अपने प्राणों की आहुति दी है.


दिगम्बर अणि अखाड़े के ईष्ट देव
दिगम्बर अणि अखाड़े के सभी साधु संत के ईष्ट देव हनुमान हैं और ये लोग विष्णु अवतार भगवान श्री राम और श्री कृष्ण की उपासना करते हैं. इनकी धर्मध्वजा में बजरंग बली का चित्र बना रहता है. जिसमें दिगंबर अणि अखाड़े की धर्मध्वजा पंचरंगी होती है, जिसमें लाल, पीला, हरा, सफेद समेत पांच रंग रहते हैं.


एक हाथ में माला दूसरे में भाला
अणि अखाड़े की स्थापना 15वीं शताब्दी से पहले सन 1475 की बताई जाती है. 13वीं 14वीं शताब्दी के बीच में अणि अखाड़े की स्थापना की गई थी. बालानंदाचार्य मठ की परंपरा जगतगुरु राममनन्दाचार्य से प्रारंभ हुई है.अणि अखाड़े के संतों को एक हाथ में माला एक में भाला लेकर चलने की शिक्षा दी गई. जिसके बाद अणि अखाड़े से जुड़े संतों को एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में भला लेकर धर्म की रक्षा करने के लिए युद्ध लड़ने का कौशल सिखाया गया.


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मुगल आक्रांताओं से लेकर अंग्रेजी सेना तक भिड़े
उसके बाद अणि अखाड़ों के वैष्णव संतों की सेना भी मुगल आक्रांताओं से लेकर अंग्रेजी सेना तक से सनातन धर्म और हिन्दू मठ मंदिरों की रक्षा के लिए युद्ध के मैदान में कूदी और विजय हासिल करने के साथ ही हजारों साधुओं की प्राणों की आहुति भी दी. अणि अखाड़े के इन्हीं साधु संतों को रामापंथी या रामादल भी कहा जाता है.


तिलक, जटाजूट और सफ़ेद कपड़े पहचान
इस अखाड़े के साधुओं को तिलक लगाने के अंदाज से पहचाना जा सकता है. शैव संप्रदाय के अखाड़ों के साधु जहां त्रिपुंड्र यानी त्रिशूल जैसा तिलक लगाते हैं. वहीं श्री दिगंबर समेत वैष्णव अखाड़ों के साधु अपने माथे पर उर्ध्वपुंड्र तिलक लगाते हैं. इसमें तीन चीजें आती हैं, जिसमें तिलक, जटाजूट और सफ़ेद कपड़े शामिल हैं. श्री दिगंबर अखाड़ा नाम सुनकर काफी लोगों को यह भ्रम होता होगा कि उसके साधु निर्वस्त्र रहते होंगे लेकिन ऐसा नहीं है. इस अखाड़े के साधु सफेद धोती-कुर्ता पहनते हैं. 


पंचायती व्यवस्था से चलता है अखाड़ा
अखाड़े में पंचायती व्यवस्था चलती है. उसी के तहत अखाड़े का संचालन होता है. अखाड़े में जगतगुरु के अलावा 2 महंत और 2 मंत्री होते हैं. जिसमें पंच परमेश्वर होते हैं. पंच परमेश्वर ही सब कुछ संभालते हैं. उनकी देखरेख में ही अखाड़े से जुड़ी सभी प्रकार की व्यवस्था संचालित की जाती है. इस अखाड़े की शाखाएं देश के अलग-अलग राज्यों में हैं, जबकि मुख्य शाखाएं अयोध्या, चित्रकूट, वृंदावन, उज्जैन, जगन्नाथपुरी और नासिक में हैं.


दिगंबर अणि अखाड़े का ध्वज
श्री दिगंबर अणि अखाड़े का ध्वज 5 रंगों का होता है. इस ध्वज पर भगवान हनुमान की फोटो दिखती है. इस अखाड़े से जुड़े साधु  सफेद वस्त्र पहने संड़सा-चिमटाधारी होते हैं. उनके गले में गुच्छे की तरह सजी कंठीमला और लंबी लटों से शोभित जटाजूट रहती है, जो उन्हें निराला रूप प्रदान करती है. 


गुजरात के साबरकांठा में सबसे बड़ा आश्रम
जानकारी के मुताबिक इस अखाड़े के मौजूदा प्रमुख कृष्णदास महाराज हैं. वहीं देश के प्रमुख धार्मिक नगरों जैसे कि उज्जैन, जगन्नाथपुरी, वृंदावन, नासिक, अयोध्या और चित्रकूट में एक-एक स्थानीय श्रीमहंत है. गुजरात के साबरकांठा में इस अखाड़े का सबसे बड़ा आश्रम है, जहां पर हजारों साधु रहकर प्रभु आराधना करते हैं. यह अखाड़ा भगवान विष्णु की पूजा और शिक्षाओं के लिए समर्पित है. 


कुंभ में पहला शाही स्नान
13 जनवरी को कुंभ के पहले शाही स्नान में यह अखाड़ा पूरी शान-ओ-शौकत के साथ पहुंचेगा. स्वर्ण-चांदी के रथ, अस्त्र शस्त्रों के साथ रेत पर दौड़ लगाते नागा साधु जब गंगा स्नान करेंगे तो वह दृश्य हर किसी को अभिभूत कर देता है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE UPUK इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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