Krishna Janmashtami 2021: भगवान कृष्ण UP के इस जिले में 56 भोग त्याग कर खाए थे साग
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Krishna Janmashtami 2021: भगवान कृष्ण UP के इस जिले में 56 भोग त्याग कर खाए थे साग

Shri Krishna Janmashtami 2021: महात्मा विदुर हस्तिनापुर छोड़कर गंगा के किनारे एक टापू पर अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे. यही कुटिया बाद में विदुर कुटी के नाम से प्रसिद्ध हुई.

विदुर कुटी

राजवीर चौधरी/बिजनौर: श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2021 (Shri Krishna Janmashtami 2021) पर आज उत्तर प्रदेश के मथुरा (Mathura)  जिले के साथ-साथ पूरे देश में मनाई जा रही है. प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) मनाई जाती है. वहीं, बिजनौर जिले की विदुर कुटी से भगवान कृष्ण का बड़ा ही लगाव था. यहां पर महात्मा विदुर हस्तिनापुर छोड़कर आये थे और श्रीकृष्ण भगवान ( Bhagwan Shri Krishna) भी उनसे मिलने के लिए यहां आये थे. भगवत गीता (Bhagwat Gita) में स्पष्ट रूप से श्लोक में लिखा हुआ है कि दुर्योधन का 56 भोग त्याग कर भगवान श्रीकृष्ण ने विदुर के घर पर साग खाए थे.

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर देश के कोने-कोने से आते हैं भक्त 
बिजनौर जिले में स्थित विदुर कुटी वह ऐतिहासिक भूमि है, जहां पर दुर्योधन का मेवा छोड़ श्रीकृष्ण ने बड़े चाव से महात्मा विदुर के यहां बथुए का साग खाया था. इसका वर्णन महाभारत में भी मिलता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाने के लिए देश के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं, विदुर कुटी के बारे में कहावत है कि भगवान श्री कृष्ण विदुर कुटी पर विदुर काका से मिलने आए थे.

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इसलिए हुआ था महाभारत का युद्ध 
महाभारत में वर्णित पंक्ति ‘दुर्योधन की मेवा त्यागी साग विदुर घर खायो' इसी ऐतिहासिक स्थल से जुड़ी है. कहते है कि महाभारत के युद्ध से पहले धृतराष्ट्र ने विदुर जी से महाभारत का युद्ध टालने के लिए नीति बताने का अनुरोध किया था. लेकिन, धृतराष्ट्र पुत्र मोह में फंसकर उस नीति को नहीं अपना सके, जिसका परिणाम महाभारत का युद्ध हुआ.

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आज भी रहता है हरा भरा 
इसके बाद महात्मा विदुर हस्तिनापुर छोड़कर गंगा के किनारे एक टापू पर अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे. यही कुटिया बाद में विदुर कुटी के नाम से प्रसिद्ध हुई.आज भी यहां पर 12 माह हरा-भरा रहता है. महात्मा विदुर की तपोस्थली पर जिस बथुए का साग भगवान श्री कृष्ण ने खाया था. वह आज भी 12 माह विदुर कुटी पर हरा भरा रहता है. यद्यपि विदुर कुटी से गंगा की धारा लगभग एक किलोमीटर दूर बह रही है. लेकिन, वर्ष में एक बार विदुर की तपोस्थली को स्पर्श करने के लिए गंगा एक बार अवश्य आती हैं.

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