Supreme Court news in Hindi: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से रेप मामले में जो फैसला सुनाया था, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. पढ़िए सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित फैसले को लेकर क्या कहा...
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Supreme Court: नाबालिग लड़की के साथ रेप की कोशिश से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 17 मार्च को दिए विवादित फैसले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने स्वत: संज्ञान लिया था, जिस पर फैसला आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में की गई टिप्पणियों पर रोक लगा दी है. अदालत (SC) ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और केंद्र की मोदी सरकार को भी नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को सुनवाई के दौरान कोर्ट की सहायता करने को कहा है.
न्यायमूर्ति BR गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने क्या कहा?
जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस फैसले को लेकर सख़्त नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि हाई कोर्ट का फैसला जज की असवेंदनशीलता और अमानवीय रुख को दर्शाता है. उन्होंने यह फैसला जल्दबाज़ी में नहीं दिया. सुनवाई पूरी होने के बाद चार महीने तक फैसला सुरक्षित रखने के बाद यह फैसला दिया गया है. इस फैसले में की गई टिप्पणियां क़ानूनी सिद्धांतों के खिलाफ हैं और अमानवीय रुख को दर्शाती है. लिहाजा हम इसके विवादित हिस्सों पर रोक लगाते हैं.न्यायमूर्ति BR गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय लिखने वाले की ओर से संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है।'
यूपी सरकार और हाई कोर्ट को इस मामले में नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, यूपी सरकार और हाई कोर्ट में इस मामले में पक्षकार को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने अटॉनी जनरल और सॉलिसीटर जनरल को इस मामले में सहयोग करने को कहा है.
जज द्वारा ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने पर खेद-सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हमें एक जज द्वारा ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने पर खेद है. CJI के निर्देशों के अनुसार यह मामला स्वतः संज्ञान में लिया गया है. हाईकोर्ट के आदेश को देखा है. हाईकोर्ट के आदेश के कुछ पैरा जैसे 24, 25 और 26 में जज द्वारा बरती गई असंवेदनशीलता नजर आई हैं और ऐसा नहीं है कि फैसला जल्द में लिया गया है. फैसला रिजर्व होने के 4 महीने बाद सुनाया गया है. पीड़िता की मां ने भी फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है और उसकी याचिका को भी इसके साथ जोड़ा जाए.
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