जानकारी के मुताबिक, करीब 40 से अधिक विधायक इस श्रेणी में हैं. जिन्होंने 2018-19 के लिए अपनी संपत्ति का ब्यौरा अभी तक भी मुहैया नहीं करवाया है.
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देहरादून: उत्तराखंड के विधायक विधानसभा में अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने से बच रहे हैं. राज्य के करीब 40 से अधिक विधायक ऐसे हैं, जिनके द्वारा विधानसभा में अपनी आस्तियों का ब्यौरा ही नहीं दिया गया है. हैरानी की बात तो ये है कि कुछ नए चेहरों के साथ ही कुछ ऐसे दिग्गज विधायक भी ब्यौरा देने से किनारा कर रहे हैं, जो कि पूर्व में बड़े पदों पर जिम्मेदारी निभा चुके हैं.
उत्तराखंड के अधिकांश विधायक विधानसभा में अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने से कतरा रहे हैं. दरअसल, उत्तराखंड राज्य में प्रवृत्त उत्तर प्रदेश मंत्री व विधायक (आस्तियों तथा दायित्वों का प्रकाशन) अधिनियम, 1975 की धारा 3 (2) के अंतर्गत मंत्री के रुप में नियुक्त या विधायक के रुप में निर्वाचित हर व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों की सभी आस्तियों और दायित्वों का विवरण सचिव विधानसभा को दिया जाना अपेक्षित है. अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत मंत्री व विधायक को सम्पूर्ण पदावधि में प्रतिवर्ष 30 जून तक या उससे पूर्व वित्तीय वर्ष के दौरान अपनी व अपने परिवार के सदस्यों की आस्तियों की जानकारी देनी है. जिसे की शासकीय राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है. लेकिन, विधायक अपनी संपत्ति की जानकारी देने से किनारा कर रहे हैं.
जानकारी के मुताबिक, करीब 40 से अधिक विधायक इस श्रेणी में हैं. जिन्होंने 2018-19 के लिए अपनी संपत्ति का ब्यौरा अभी तक भी मुहैया नहीं करवाया है. ब्यौरा न देने वालों में पूर्व स्पीकर हरबंस कपूर भी शामिल हैं. इसके अलावा सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के कई वरिष्ठ विधायक भी इसमें शामिल हैं. पूर्व स्पीकर व बीजेपी विधायक हरबंस कपूर भी इसे लापरवाही मान रहे हैं. वहीं, मौजूदा स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल का भी कहना है कि जनप्रतिनिधि होने के नाते स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा में ब्यौरा देना चाहिए.
पिछले साल भी बहुत कम विधायकों ने अपनी आस्तियों व दायित्वों का ब्यौरा विधानसभा को उपलब्ध करवाया था. जबकि, स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल ने तय समय पर अपनी आस्तियों व दायित्वों की पूरी जानकारी उपलब्ध करवा दी थी. हालांकि, स्पीकर कहते हैं कि यह अनिवार्य नहीं है. लेकिन, स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रणाली में अगर कोई व्यवस्था की जाती है तो उसमें कोई हर्ज नहीं है.
स्वस्थ लोकतंत्र की ये खूबी है कि जनता जनार्दन को भी ये जानने का हक है कि जिन जनप्रतिनिधियों को वो चुनकर विधानसभा भेजती है, वो जनता की सेवा कितना करते हैं और खुद की सेवा कितनी. हालांकि, जनप्रतिनिधि जनता को उनके इस हक से भी महरुम रख रहे हैं कि जो अपना वार्षिक बहीखाता ही जनता से छिपाए बैठे हैं.