प्रयागराज में आज भी कई क्षेत्रों में साइकिल पर लगती है खोया मंडी
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प्रयागराज में आज भी कई क्षेत्रों में साइकिल पर लगती है खोया मंडी

इन मंडियों में बैठने तक का उचित स्थान नहीं है और किसान साइकिल पर अपना माल बेचते हैं.

चॉकलेट ने कुछ हद तक मिठाई का स्थान ले लिया है

प्रयागराज: भारतीय त्यौहार करीब आते ही गुलाब जामुन, बर्फी-पेड़ा आदि खोए से बनी मिठाइयों की मांग के साथ ही दाम बढ़ जाते हैं. हालांकि यहां के खोआ निर्माताओं के जीवन में मिठास अभी तक नहीं आई है और आज भी कई खोआ मंडियों में किसान साइकिल पर खोआ बेचते नजर आते हैं. कौड़िहार के खोया उत्पादक संघ के संयोजक पप्पू सिंह ने बताया कि मंसूराबाद, रेरुआ, कौड़िहार, फाफामऊ, सोरांव, मऊआइमा, आनापुर और नहर ददौली खोआ की प्रमुख मंडियां हैं, लेकिन इन मंडियों में बैठने तक का उचित स्थान नहीं है और किसान साइकिल पर अपना माल बेचते हैं.

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उन्होंने बताया कि इन क्षेत्रों की 60 प्रतिशत आबादी खोआ बनाने के व्यवसाय में लगी है, लेकिन कोल्ड स्टोरेज सुविधा के अभाव में वे खोआ स्टोर नहीं कर पाते और मजबूरन उन्हें कम दाम में खोआ बेचना पड़ता है. सिंह ने बताया कि इसके अलावा, इन इलाकों में डेयरी नहीं होने से लोग मांग कमजोर रहने पर भी खोआ बनाने को विवश रहते हैं. आमतौर पर शादी-ब्याह के सीजन (फरवरी से जून तक) और होली-दिवाली त्यौहार पर ही किसानों को अच्छा भाव मिल पाता है.

जिले में हर साल होली से पहले नाबार्ड के सहयोग से खोआ मेला आयोजित करने वाली संस्था ई-पहल के निदेशक डाक्टर गोपाल कृष्ण ने बताया कि खोआ के स्टोरेज के लिए इसे शून्य से नीचे 20 डिग्री तापमान पर रखने की जरूरत होती है, जबकि मौजूदा समय में लोग इसे डीप फ्रीजर में रखते हैं जिससे इसके पोषण तत्व घट जाते हैं. उन्होंने बताया कि सरकार को खोआ उत्पादकों के लिए लघु कोल्ड स्टोरेज की योजना लाना चाहिए जिऐ 10-15 किसान समूह बनाकर स्थापित कर सकें.

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बड़े कोल्ड स्टोरेज के लिए काफी निवेश की आवश्यकता पड़ती है और इस वजह से कोई स्टोरेज लगाने के लिए आगे नहीं आता. डॉक्टर गोपाल कृष्ण ने कहा कि भले ही विज्ञापन के बल पर चॉकलेट ने कुछ हद तक मिठाई का स्थान ले लिया है, लेकिन आज भी मिठाई लोगों की पहली पसंद है. चूंकि इस व्यवसाय से किसान जुड़ा है, इसलिए सरकार को उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने की दिशा में पहल करनी चाहिए.

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