आर्थिक तंगी को नहीं आने दिया आड़े, घर में ही 35 बच्चों को शूटिंग की बा​रीकियां सिखा रहे अमोल प्रताप सिंह
Advertisement

आर्थिक तंगी को नहीं आने दिया आड़े, घर में ही 35 बच्चों को शूटिंग की बा​रीकियां सिखा रहे अमोल प्रताप सिंह

ल​ड़कियों के सीखने की क्षमता लड़कों से अधिक होती है. इसके अलावा वे अपने दिमाग को केंद्रित बहुत अच्छे से करती हैं. शूटिंग दिमाग को केंद्रित कर निशाना लगाने का ही एक हुनर है. जिसने यह कला सीख ली वह अंतराष्ट्रीय स्तर पर कमाल मचा देता है.

प्रतीकात्मक

मेरठ: बचपन गोलियों की आवाज के बीच गुजरा और बड़े होते तक गोलियां चलानी भी सीखे तो इसी को अपना करियर बना लिया. जमकर निशानेबाजी की और उसके बाद देश विदेश में अपने निशानेबाजी की धाक जमाई. मेरठ निवासी अमोल प्रताप सिंह आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है. निशानेबाजी में अमोल प्रताप राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर चुके हैं.

हुनर समाज के प्रति समर्पित 
शास्त्री नगर जे ब्लाक निवासी अमोल बताते हैं कि आज हर कोई समाज के लिए कुछ न कुछ करना चाहता है तो मैने भी कुछ करने की सोची. आर्थिक रूप से इतना सम्पन्न नहीं था इसलिए सोचा कि अपने हुनर को ही समाज के प्रति समर्पित कर दूं. यहीं सोचकर घर पर ही तीसरी मंजिल में निशानेबाजी के लिए एक शूटिंग रेंज खोल दी. आज अमोल प्रताप के शूटिंग रेंज में 35 बच्चे शूटिंग की बा​रीकियां सीख रहे हैं.

सुल्तानपुर: पुलिस एनकाउंटर में 25 हज़ार का इनामी बदमाश घायल, एक फरार

पांच बच्चियों को सिखा रहे निशुल्क
अमोल बताते हैं कि उन्होंने असहाय परिवार की पांच बच्चियों का चयन किया. पहले बच्चियों के परिजन इसके लिए तैयार नहीं थे. लेकिन जब उन्हें समझाया कि इसमें उनका कुछ नहीं लगना है तो वे इसके लिए ​तैयार हुए. ये पांच बच्चियां मेरठ के अलावा हापुड से भी आतीं हैं. अमोल अपने पास से बच्चियों को आने-जाने का किराया भी देते हैं. 

ल​ड़कियों के सीखने की क्षमता लड़कों से अधिक
अमोल का कहना है कि ल​ड़कियों के सीखने की क्षमता लड़कों से अधिक होती है. इसके अलावा वे अपने दिमाग को केंद्रित बहुत अच्छे से करती हैं. शूटिंग दिमाग को केंद्रित कर निशाना लगाने का ही एक हुनर है. जिसने यह कला सीख ली वह अंतराष्ट्रीय स्तर पर कमाल मचा देता है.

नई नवेली दुल्हन ने ननद के साथ '52 गज का दामन’ गाने पर लगाए जबरदस्त ठुमके, आप भी देखिए वीडियो

1987 से 1996 तक की निशानेबाजी

अमोल बताते हैं कि उनके घर में हथियार थे जिस पर अक्सर बाबा जी और पिता जी हाथ अजमाया करते थे. बचपन से ही गोलियों की आवाज सुनकर वे बड़े हुए. थोड़ा बड़े हुए तो वे भी हथियार चलाना सीख गए. यहीं हथियार चलाना उनके लिए उनका करियर बन गया. उसके बाद 1987 से लेकर 1996 तक वे राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे. इसके बाद 1997 में उन्होंने अपनी ही शूटिंग रेंज खोल ली और नई प्रतिभाओं को शूटिंग की बारिकियां बताने लगे.

पीएम आवास के नाम पर वसूली करने वाले सभासद और उसके भाई पर FIR, 24 कर्मचारी भी टर्मिनेट

WATCH LIVE TV

 

Trending news