कतर्नियाघाट के जंगलों का भविष्य संवार रहा 'मोगली विद्यालय'
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कतर्नियाघाट के जंगलों का भविष्य संवार रहा 'मोगली विद्यालय'

वन क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों की काउंसिलिंग की और उन्हें जागरूक करते हुए बच्चों को जंगल में लकड़ी बीनने के बजाय, उनका भविष्य सुरक्षित करने के उद्देश्य से विद्यालय भेजने को प्रेरित किया. 

फाइल फोटो

नई दिल्ली/बहराइच: उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में बाघों के संरक्षण के लिए गठित स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स (एसटीपीएफ) के जवानों ने कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग के तहत वन क्षेत्र में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है. दुधवा कतर्निया वन क्षेत्र के फील्ड निदेशक डॉ रमेश पाण्डेय ने इस प्रयोग को परियोजना के रूप में स्वीकृत करने के लिये उत्तर प्रदेश बाघ संरक्षण समिति के पास भेजने के निर्देश दिए हैं.

डॉ रमेश पाण्डेय ने बताया कि एसटीपीएफ का गठन मूलतः बाघों तथा वन्यजीवों की सुरक्षा और मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए हुआ है. इस बल के उपनिरीक्षक सतेन्द्र कुमार ने मोतीपुर रेंज में तैनाती के दौरान इलाके में निवासरत कर्मचारियों तथा गांववासियों के बच्चों को कुछ दिन पूर्व पढ़ाना शुरू किया था. 

उन्होंने बताया कि कुमार ने वन क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों की काउंसिलिंग की और उन्हें जागरूक करते हुए बच्चों को जंगल में लकड़ी बीनने के बजाय, उनका भविष्य सुरक्षित करने के उद्देश्य से विद्यालय भेजने को प्रेरित किया. इस मकसद से खुले मोगली विद्यालय नामक स्कूल के बच्चों के लिए पठन पाठन सामग्री डब्ल्यूडब्ल्यूएफ मुहैया करा रहा है.

पाण्डेय ने बताया कि मोतीपुर ईको पर्यटन परिसर में संचालित मोगली विद्यालय का अभिनव प्रयोग सफल होता दिख रहा है. यहां शाम को संचालित कक्षाओं में करीब 150 से ज्यादा बच्चे आते हैं. कई बच्चे तो 10 किलोमीटर दूर जंगल के दूसरे सिरे से भी पढ़ने आते हैं. विद्यालय में आने वाले अधिकतर बच्चे ऐसे भी हैं जो कि रोजमर्रा के कार्यों में अपने परिवार का हाथ बटाते हैं और समय निकाल पढ़ाई के लिए भी जाते हैं.

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के परियोजना अधिकारी दबीर हसन ने बताया कि रूडयार्ड किपलिंग की कालजयी रचना ‘जंगल बुक’ के सभी काल्पनिक पात्र यदि किसी एक समय में अपने हाथों में कापी पेन लेकर एक स्थान पर एकत्र हो जायें, तो वह नजारा कैसा होगा. ऐसे नजारों की चाह रखने वाला कोई भी व्यक्ति दिन के तीसरे पहर वन क्षेत्राधिकारी मोतीपुर ईको पर्यटन परिसर में आकर यह देख सकता है.

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