जब बाबा नीम करोली वृंदावन में थे तो उन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होने लगी जिसके चलते उन्हें हृ्दय रोग विशेषज्ञ के पास ले जाया गया. लेकिन जब डॉक्टर ने उनका चेकअप किया तो हृदय संबंधी कोई परेशानी नहीं मिली. लेकिन उनके शरीर में अवसाद के लक्षण दिखाने लगे थे.
अंतिम समाधि से पहले महाराज जी मधुमेह कोमा में चले गए थे और जब हॉस्पिटल स्टाफ की काफी कोशिशों के बाद वो होश में आए तो उन्होंने अपने ऑक्सीजन मास्क को बेकार बताते हुए खुद ही इसे हटा दिया था. जैसे कि उन्हें अहसास होने लगा हो कि अब उन्हें यह नस्वर शरीर त्यागना ही होगा.
आखिरी सांस लेने से पहले बाबा नीम करोली का शरीर पूरी तरह से शांत हो गया था. उन्होंने बड़ी ही धीमी आवाज में 'जय जगदीश हरे' मंत्र का जाप करना शुरू किया. उनकी आवाज लगातार धीमी होती गई और फिर बंद हो गई. उनके शरीर में अब कोई हलचल नहीं थी और केवल उनका शरीर मात्र ही पृथ्वी पर था. महाराज परलोक सिधार चुके थे.
अंतिम समाधि में जाने से पहले महाराज जी (बाबा नीम करोली) ने अपने भक्तों से भी मुलाकात की थी. अपने आखिरी पलों में उन्होंने अपने भक्तों को एक बार फिर यही संदेश दिया था कि भौतिक संसार से लगाव मत रखो. वैसे महाराज जी की शिक्षाओं में यह उनका प्रमुख संदेश था, जिसका उदाहरण उन्होंने अपने आखिरी पलों में भी दोहराया.
अपने आखिरी क्षणों में भी महाराज नीम करोली ने अपने भक्तों से मिलने का समय निकाला और उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा था कि वो अपना काम करते रहे और उनकी शिक्षाओं का आगे प्रचार-प्रसार करें. उन्होंने कहा था कि मेरे जाने के बाद भी मेरी सीख (शिक्षाएं) संसार में रहेंगी और मेरे अनुयायियों का मार्गदर्शन करती रहेंगी.
अपने आखिरी समय में जब बाबा नीम करोली वृंदावन की यात्रा पर जाने के लिए कैंची धाम से कार में बैठे तो जो कंबल उनके कंधे पर रहता था फिसल कर नीचे गिर गया. तभी एक भक्त ने दौड़कर इसे फिर से उनके कंधे पर रखना चाहा तो उन्होंने कहा रहने दो. किसी को भी किसी से ज्यादा जुड़ाव नहीं रखना चाहिये. जैसे कि उन्हें मालूम हो गया कि अब यह कंबल उनके साथ परलोक नहीं जाने वाला है.
कैंची धाम आश्रम से महाराज जी जैसे ही अपनी कार में जाने के लिए बैठे तो भवाली गांव की एक महिला वहां आ गई. महिला को देखते हुए बाबा नीम करोली ने कहा, " मैया में तेरा ही इंतजार कर रहा था, और उन्होंने महिला की तरफ करुणा भरी दृष्टि से देखते हुए उसके सिर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया." ऐसा मालूम होता था जैसे वो अपने आखिरी वक्त में अपने प्रिय भक्तों से मिले बगैर जाना नहीं चाहते थे.
जब महाराज नीम करोली अपने शागिर्द रवि के साथ कैंची धाम से आगरा होते हुए ट्रेन से वृंदावन जा रहे थे तो रवि ने उन्हें पीने के लिए दूध दिया लेकिन दूध फट चुका था. देखते ही महाराज जी ने कहा, इसे बाहर फेंक दो वैसे भी अब मुझे इसकी और जरूरत नहीं होगी. उनका यह सीधा और सटीक जवाब भी जाहिर करता है कि वो इस संसार से जाने का निर्णय कर चुके थे.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की जिम्मेदारी हमारी नहीं है.एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.