सुहास LY ने अचानक छोड़ दी थी जमी-जमाई नौकरी, घरवालों से कहा- बनना चाहता हूं IAS, कुछ ऐसा रहा नोएडा DM का सफर
12वीं के बाद सुहास ने मेडिकल और इंजिनियरिंग दोनों के एग्जाम दिए. उन्होंने दोनों एग्जाम क्लियर भी कर लिए. बैंगलोर मेडिकल कॉलेज में उन्हें सीट भी मिल गई. लेकिन....
नई दिल्ली: यूपी के गौतम बुद्ध नगर जिले के डीएम सुहास एल.वाई. (Suhas LY) ने टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics) में सिल्वर मेडल (Silver Medal) अपने नाम कर लिया. उनकी जीत पर पूरा देश खुशियां मना रहा है. बैडमिंटन मेंस सिंगल्स एसएल4 (Badminton Mens singles SL4) के फाइनल मुकाबले में सुहास एलवाई फ्रांस के लुकास माजुर (Lucas Mazur) से हार गए. इस वजह से उन्हें सिल्वर मेडल से ही संतोष करना पड़ा. एसएल4 क्लास में ऐसे बैडमिंटन खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं. जिनके पैर में विकार हो, लेकिन ये खिलाड़ी खड़े होकर खेल सकते हैं.
कर्नाटक के रहने वाले हैं सुहास
सुहास LY का पूरा नाम सुहास लालिनकेरे यतिराज (Suhas Lalinakere Yathiraj) है. वह मूल रूप से कर्नाटक के शिमोगा के रहने वाले हैं. उनका जन्म 2 जुलाई 1983 को हुआ था. बचपन से ही सुहास एक पैर से विकलांग हैं. उनका दाहिना पैर पूरी तरह फिट नहीं है. सुहास ने सुरतकल से अपनी 12 वीं तक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद यहीं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से सुहास ने कम्प्यूटर साइंस में अपनी इंजिनियरिंग की डिग्री हासिल की.
12 के बाद मेडिकल और इंजीनियरिंग दोनों का दिया था एग्जाम
आपको बता दें कि 12वीं के बाद सुहास ने मेडिकल और इंजिनियरिंग दोनों के एग्जाम दिए. उन्होंने दोनों एग्जाम क्लियर भी कर लिए. बैंगलोर मेडिकल कॉलेज में उन्हें सीट भी मिल गई. लेकिन कहीं ना कहीं उनका मन इंजीनियरिंग चुनने को कर रहा था. सुहास काफी असमंजस में भी थे, क्योंकि उनका परिवार चाहता था कि सुहास डॉक्टर बनें और परिवार की इच्छा के आगे सुहास ने अपनी इच्छाओं को दबाए रखीं.तभी एक दिन उनके सिविल इंजीनियर पिता ने सुहास को परेशान बैठे देखा और उनसे बात की. तब सुहास ने इंजीनियर बनने की इच्छा जताई. फिर क्या था उनके पिता ने भी हामी भर दी. इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लेकर सपनों की उड़ान भरने को तैयार हो गए. वहीं, डिग्री पूरी होने के बाद सुहास ने बेंगलुरु की एक आईटी फर्म जॉइन कर ली.
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ये घटना थी सुहास एल वाई के जीवन का टर्निंग पॉइंट
सुहास एलवाई एक तेज-तर्रार प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ-साथ एक अच्छे खिलाड़ी भी हैं. उन्होंने इंटरनेशनल लेवल पर देश का झंडा बुलंद किया है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि सुहास हमेशा से बैडमिंटन नहीं खेलना चाहते थे और ना ही प्रशासनिक सेवा में आने को लेकर पहले कोई ख्याल आया. दरअसल, नौकरी के चक्कर में सुहास बेंगलुरु से जर्मनी तक पहुंचे. इस समय उनके जीवन में पैसा ठाठ-बाठ सब था, इसके बावजूद सुहास को मन ही मन किसी चीज की कमी खल रही थी. नौकरी करने के दौरान उनके मन में सिविल सर्विसेज जॉइन करने का ख्याल आया. इसके बाद उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ यूपीएससी की तैयारी भी शुरू कर दी. इसी बीच साल 2005 में सुहास के पिता की मृत्यु हो गई. पिता की मौत ने सुहास को झकझोर दिया. ये घटना ही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बनी.
अचानक छोड़ दी नौकरी
एक दिन सुहास ने अचानक अपनी जमी-जमाई नौकरी छोड़ दी. घरवालों को बताया कि उन्होंने सिविल सर्विसेज के प्री और मेंस एग्जाम क्लियर कर लिए हैं और अब उन्हें IAS बनना है. बस फिर क्या था सुहास ने इंटरव्यू के अपनी तैयारी शुरू कर दी. उन्होंने इंटरव्यू भी क्लियर कर लिया. इसके बाद साल 2007 में सुहास यूपी कैडर से IAS बने. लेकिन उनके अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा अभी थमा नहीं था, बल्कि यहां से एक नई पारी की शुरुआत हुई.
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जब 7 दिन की छुट्टी लेकर पैरा एशियन चैंपियनशिप में पहुंच गए थे सुहास
सुहास पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी आगे रहते थे. उन्हें भी बचपन से क्रिकेट समेत कई खेलों में रुचि थी. सुहास शौकिया तौर पर बैडमिंटन खेला करते थे. हालांकि, उन्होंने कभी प्रोफेशनल एथलीट बनने के बारे में नहीं सोचा था. लेकिन एक दिन उनका ये शौकिया तौर पर खेलना उनका पैशन बना गया. साल 2016 में सुहास ने पैरा एशियन चैंपियनशिप में पार्टिसीपेट किया. खास बात ये है कि उनके इस चैंपियनशिप में भाग लेने की किसी को खबर नहीं थी. सुहास ने सात दिन की छुट्टी ली और बिना किसी को बताए चुपचाप चाइना निकल गए. इस इंटरनेशनल टूर्नामेंट में उन्होंने देश के लिए गोल्ड मेडल भी जीता. बीजिंग वर्ल्ड चैम्पियनशिप में गोल्ड जीता. इसके साथ ही वह एक पेशेवर अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीतने वाले पहले भारतीय नौकरशाह बने. उस दौरान वे आजमगढ़ के जिला मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात थे. तब उन्होंने फाइनल में इंडोनेशिया के हैरी सुसांतो को हराकर स्वर्ण पदक जीता था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह तब आकर्षण का केंद्र बने.
दुनिया के नंबर-3 बैडमिंटन खिलाड़ी हैं सुहास
सुहास एलवाई दुनिया के नंबर-3 बैडमिंटन खिलाड़ी हैं. साल 2018 में जकार्ता में हुए एशियन पैरा गेम्स में ब्रॉन्ज़ मेडल भी जीता था. इसके अलावा मार्च 2018 में वाराणसी में आयोजित हुई दूसरी राष्ट्रीय पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर नेशनल चैंपियन बने थे. उत्तर प्रदेश सरकार ने सुहास एलवाई को यश भारती अवॉर्ड से नवाजा था. इसके अलावा दिसंबर 2016 को 'वर्ल्ड डिसेबिलिटी डे' के अवसर पर उन्हें स्टेट का बेस्ट पैरा स्पोर्ट्सपर्सन चुना गया था. अपने करियर में अब तक सुहास कई इंटरनेशनल और नेशनल गोल्ड मेडल्स जीत चुके हैं. वहीं, इस बार टोक्यो ओलिंपिक में पदक जीतकर एक बार फिर उन्होंने दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है.
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पत्नी भी हैं पीसीएस ऑफिसर
सुहास की पत्नी ऋतु भी एक पीसीएस ऑफिसर हैं. वह इस समय गाजियाबाद में एडीएम प्रशासन के पद पर तैनात हैं. ऋतु सुहास और सुहास एल.वाई. (Suhas LY) की शादी 2008 में हुई थी. दोनों दो बच्चों के माता-पिता हैं. पति के सिल्वर मेडल जीतने पर वह बेहद खुश हैं. ऋतु हर कदम पर सुहास का साथ देती हैं. वह उनकी प्रैक्टिस का भी पूरा ध्यान रखती हैं. वो किसी भी तरह की चीजों को सुहास के प्रैक्टिस के आगे नहीं आने देतीं. उनका कहना है कि उनकी जीत में उनके साथ-साथ पूरे परिवार का त्याग है.
प्रैक्टिस में ना पड़े खलल इसलिए को नहीं बताया एक्सीडेंट के बारे में
ऋतु ने बताया कि बीती 22 जून को वह लखनऊ से नोएडा लौट रही थीं. इसी वक्त आगरा एक्सप्रेस-वे पर उनकी गाड़ी का पहिया निकल गया. इस हादसे में उन्हें चोट भी आई. यह हादसा शाम के 7 बजे हुआ था. यह समय सुहास की प्रैक्टिस का होता है. उनकी प्रैक्टिस खराब न हो जाए इसलिए उन्होंने अपने इस हादसे के बारे में सुहास को कुछ नहीं बताया. खुद ही सारा इंतजाम किया. उन्होंने कहा कि अगर मैं उन्हें हादसे के बारे में बता देती तो वह डिस्टर्ब हो जाते और उनकी प्रैक्टिस मिस हो जाती. ये वो हरगिज नहीं चाहती थीं.
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खेल के लिए निकाल लेते हैं समय
ऋतु सुहास ने कहा कि देश के लिए पैरालंपिक में खेलना सुहास का सपना था. इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी जिंदगी के कीमती 6 साल समर्पित कर दिए. जब वो पैरालंपिक में जा रहे थे तब मैंने उनसे कहा था कि नतीजे की चिंता किए बिना वे अपना बेस्ट गेम खेलें और उन्होंने वही किया. प्रशासनिक अधिकारी होने के बावजूद वे गेम खेलने के लिए टाइम निकाल ही लेते हैं.
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