काशी को सप्तपुरियों में गिना जाता है, जहां हर गली में भगवान के मंदिर स्थित हैं. यहां के कण-कण में भगवान शिव और उनके अनुचरों का वास माना जाता है.
काशी में प्राचीन संकटमोचन हनुमान मंदिर भी है जिसका इतिहास 400 साल से भी पुराना है. वाराणसी के लंका क्षेत्र में स्थित यह मंदिर भगवान हनुमान की भक्ति और शक्ति का प्रतीक है.
कहा जाता है कि तुलसीदास ने काशी में रहकर ही रामचरितमानस की रचना की. उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने उनकी प्रार्थना सुनी थी.
इस मंदिर के बारे में यूं तो अनेकों मान्यताएं हैं लेकिन सबसे प्रमुख मान्यता है कि हनुमान जी ने यहां संत तुलसीदास को दर्शन किए थे. हनुमान जी ने उन्हें श्रीराम के दर्शन का मार्ग बताया था.
तुलसीदास रामनगर के एक सूखे पेड़ पर गंगा का बचा हुआ पानी डालते थे. उनकी भक्ति से वह पेड़ हरा-भरा हो गया और उन्हें वहां एक प्रेत के दर्शन हुए.
प्रेत ने तुलसीदास को हनुमान जी से मिलने का मार्ग बताया. इसके बाद हनुमान जी ने तुलसीदास को बताया कि वो श्रीराम के दर्शन कैसे कर कर सकते हैं.
संकटमोचन मंदिर में भगवान हनुमान जी की दिव्य प्रतिमा स्थित है. कहा जाता है कि उनके दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. इसलिए भी इस मंदिर को संकटमोचन मंदिर कहा जाता है. ये मंदिर बनारस विश्वविद्यालय और विश्वनाथ मंदिर के रास्ते में पड़ता है. इसलिए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है.
यह मंदिर राजनीतिक, फिल्मी और धार्मिक हस्तियों का प्रमुख स्थल है. शनिवार और मंगलवार को यहां भक्तों की विशेष भीड़ रहती है. दर्शन के लिए भक्तों को लंबी लाइन में लगना पड़ता है.
मंदिर के चारों ओर एक छोटा सा वन है, जहां बड़ी संख्या में बंदर रहते हैं. यह स्थान भक्तों को शांति और भक्ति का अनुभव कराता है. लोग मंदिर में दर्शन के बाद बंदरों को फल और दूसरी खाद्य सामग्री का भोजन कराते हैं.
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