Advertisement
trendingPhotos/india/up-uttarakhand/uputtarakhand2759871
photoDetails0hindi

भारत के पहले गांव में 12 साल बाद पुष्कर कुंभ, जानें 3200 मीटर ऊंचाई पर क्यों लगता ये मेला

भारत के प्रथम गांव कहे जाने वाला उत्तराखंड के माणा गांव में 12 साल बाद फिर पुष्कर कुंभ लगा है, जिसमें विशेषकर दक्षिण भारत से वैष्णव समुदाय समेत देशभ से श्रद्धालु शामिल होने के लिए पहुंचे रहे हैं आइये जानते हैं कैसे हुई इस मेले की शुरुआत.

भारत के पहले गांव में लगता है पुष्कर कुंभ

1/7
भारत के पहले गांव में लगता है पुष्कर कुंभ

उत्तराखंड के बदरीनाथ से तीन किलोमीटर माणा गांव है जिसे देश का पहला गांव कहा जाता है. क्योंकि तिब्बत की सीमा से सटा देश का पहला गांव है. बुधवार 14 मई को विधिवत पूजा अर्चना के बाद हर 12 साल बाद लगने वाला पुष्कर कुंभ मेला शुरू हुआ. 

12 साल बाद ही क्यों लगता है मेला

2/7
12 साल बाद ही क्यों लगता है मेला

परंपरा है कि जब 12 साल बाद बृहस्पति मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं, तो अलकनंदा और सरस्वती नगीं के संगम पर पुष्कर कुंभ मेले का आयोजन माणा गांव में होता है. इस मेले में देश के कौने-कौने से श्रद्धालु पहुंचते हैं. 

पुलिस और प्रशासन ने किये खास इंतजाम

3/7
पुलिस और प्रशासन ने किये खास इंतजाम

जिला प्रशासन और पुलिस ने तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए काफी व्यापक इंतजाम किये हैं.  पुष्कर कुंभ के आयोजन को लेकर पैदल मार्ग का सुधारीकरण किया गया है और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विभिन्न भाषाओं में साइन बोर्ड लगाए गए हैं और लगातार मॉनिटरिंग हो रही है. 

पुलिस और एसडीआरएफ तैनात

4/7
पुलिस और एसडीआरएफ तैनात

पुष्कर कुंभ के आयोजन को लेकर पैदल मार्ग पर पुलिस की तैनाती की गई है. संगम तट पर एसडीआरएफ के जवान भी किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए तैयार हैं. 

पुष्कर कुंभ का धार्मिक महत्व

5/7
पुष्कर कुंभ का धार्मिक महत्व

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माणा गांव के पास स्थित केशव प्रयाग में महर्षि वेदव्यास ने तपस्या करते हुए महाभारत की रचना की थी.यही भी कहा जाता है कि भारत के महान आचार्य रामानुजाचार्य और माधवाचार्य ने इसी स्थान पर मां सरस्वती से ज्ञान प्राप्त किया था. 

कौन थे रामानुजाचार्य और माधवाचार्य

6/7
कौन थे रामानुजाचार्य और माधवाचार्य

रामानुजाचार्य, जिन्हें इलैया पेरुमल के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण भारत में भट्ट ब्राह्मण परिवार से थे, जबकि माधवाचार्य, जिनका मूल नाम वासुदेव था, एक तुलु ब्राह्मण घराने में पैदा हुए थे. उन्होंने अद्वैत वेदांत में अध्ययन किया और बाद में अपना खुद का द्वैत वेदांत दर्शन विकसित किया. 

Disclaimer

7/7
Disclaimer

लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की जिम्मेदारी हमारी नहीं है.एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.

;