पहली बार ईद मिलन करेगी सपा, मुस्लिम वोट बैंक को सहेजने की कवायद
Advertisement

पहली बार ईद मिलन करेगी सपा, मुस्लिम वोट बैंक को सहेजने की कवायद

पहली बार समाजवादी पार्टी ने ईद मिलन कार्यक्रम कराने का निर्णय लिया है. अब तक पार्टी रोज़ा इफ्तार की दावत देती थी. ये पहला मौका होगा जब समाजवादी पार्टी के दफ्तर में ईद मिलन का कार्यक्रम का आयोजन होगा.

पहली बार ईद मिलन करेगी सपा,  मुस्लिम वोट बैंक को सहेजने की कवायद

लखनऊ: गठबंधन की मजबूरी के चलते समाजवादी पार्टी का परंपरागत मुस्लिम वोट इस बार बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों को पड़ा, जिसका परिणाम यह हुआ कि जो बीएसपी 2014 लोकसभा चुनाव में शून्य पर रह गई थी, वह 2019 लोकसभा चुनाव में 10 सांसदों को जिताने में सफल रही. चूंकि अह महागठबंधन टूट गया है जिसके चलते समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अलग होकर उपचुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐसे में समाजवादी पार्टी के लिए यह बहुत अहम हो गया है की वह अपने खोए हुए मुस्लिम वोट बैंक को वापस पा सके.

पहली बार समाजवादी पार्टी ने ईद मिलन कार्यक्रम कराने का निर्णय लिया है. अब तक पार्टी रोज़ा इफ्तार की दावत देती थी. ये पहला मौका होगा जब समाजवादी पार्टी के दफ्तर में ईद मिलन का कार्यक्रम का आयोजन होगा. 8 जून की शाम समाजवादी दफ्तर में ईद मिलन कार्यक्रम का आयोजन होगा. समाजवादी पार्टी अब तक रोज़ा इफ्तारी कराती आई है, लेकिन इस बार रोज़ा ईफ्तारी का आयोजन समाजवादी पार्टी ने नही कराया है. लिहाजा ईद बीतने के बाद ईद मिलन के कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.

समाजवादी पार्टी में रोज़ा इफ्तार देने की परम्परा पार्टी के गठन के समय से ही चली आ रही है. 1992 से लगातार मुलायम सिंह यादव रोज़ा इफ्तार कराते रहे हैं. मुलायम के बाद सीएम बने अखिलेश यादव भी सीएम आवास मे रोज़ा इफ्तार कराते थे. राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अखिलेश यादव ने होटल ताज में रोजा इफ्तार की पार्टी दी थी. लेकिन इस बार ईद बीत जाने के बाद भी इसका आयोजन नहीं हुआ. हालांकि‍ अब ईद मिलन के आयोजन का फैसला किया गया है.

दरअसल, कहा जा रहा है कि एसपी-बीएसपी गठबंधन टूटने के बाद पार्टी ने नई रणनीति बनाई है. गठबंधन को इस बार मुस्लिमों का वोट बड़े पैमाने पर मिला है. हांलाकी यह तो उपचुनाव में ही पता चलेगा की मुस्लिम वोट क्या वापस समाजवादी पार्टी के पास आया है या फिर वो खिसक कर बहुजन समाज पार्टी के पास ही चला गया है. अगर सापा अपने परंपरागत मुस्लिम वोट को वापस हासिल करने मे सफल नहीं होती है 2022 विधानसभा चुनाव में सपा की वैतरणी पार होना मुश्किल होगा.

Trending news