शबनम अभी रामपुर जेल में बंद है. उसने राज्यपाल की मदद से राष्ट्रपति को दोबारा याचिका भिजवाने की कोशिश की है.
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अमरोहा: मोहब्बत में डूबी शबनम ने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने 7 परिजनों को मौत के घाट उतार दिया. यह दिल दहला देने वाली वारदात 2008 की है. करीब 2 साल बाद 2010 में कोर्ट ने इस कुकर्म को जघन्य अपराध घोषित करते हुए शबनम और सलीम को फांसी की सजा सुनाई थी. अब, 12 साल बाद, राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किए जाने के बाद शबनम अपने आखिरी दिन गिन रही है. बचने की उम्मीद में शबनम ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास भी दया याचिका भेजी है. शबनम दुआ कर रही है कि शायद इस बार उसे अपने घिनौने अपराध के लिए माफी मिल जाए. बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट और प्रेसिडेंट के याचिका खारिज करने के बाद भी शबनम और सलीम के पास अभी भी विकल्प मौजूद हैं.
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2010 से अभी तक इतनी बार ठुकराई जा चुकी है याचिका
अमरोहा हत्याकांड केस में अमरोहा डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने 2010 में ही सलीम-शबनम को फांसी की सजा सुना दी थी. इसके बाद हाईकोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा. 2015 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और दोबारा सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला नहीं बदला. इसके बाद 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी शबनम की दया याचिका खारिज कर दी. इसके बाद साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट से शबनम की फांसी की पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के आने के बाद शबनम को आशा की किरण दिखी. उसने फिर प्रेसिडेंट को दया याचिका भेजी, लेकिन एक बार फिर उसकी याचिका ठुकरा दी गई.
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बचने की दिखी एक और उम्मीद
शबनम अभी रामपुर जेल में बंद है. उसने राज्यपाल की मदद से राष्ट्रपति को दोबारा याचिका भिजवाने की कोशिश की है. इतना ही नहीं, उसके बेटे ने भी राष्ट्रपति से कहा है, "प्रेसिडेंट अंकल, मेरी मां को माफ कर दीजिए!" शबनम का बेटा नाबालिग है और अपनी मां से मिलने रामपुर जेल जाता रहता है.
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विकल्प के तौर पर राज्यपाल को भेजी जा सकती है याचिका
सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद कोई भी व्यक्ति, अपराधी के लिए राष्ट्रपति के ऑफिस या होम मिनिस्ट्री में दया याचिका भेज सकता है. इसके अलावा, उस प्रदेश के राज्यपाल के पास भी याचिका दायर की जा सकती है. गवर्नर के पास जो भी याचिकाएं आती हैं, उन्हें होम मिनिस्ट्री भेजा जाता है.
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