कृष्ण जन्म भूमि विवाद: नहीं बन पाएंगे ये लोग पक्षकार, कोर्ट ने सभी याचिकाओं को किया निरस्त
Advertisement

कृष्ण जन्म भूमि विवाद: नहीं बन पाएंगे ये लोग पक्षकार, कोर्ट ने सभी याचिकाओं को किया निरस्त

न्यायालय ने सुनवाई के दौरान पक्षकार बनने के लिए दायर की गई याचिकाओं को नॉन मेंटेनेबल माना और सभी 9 पक्षकारों की एप्लिकेशन निरस्त कर दीं.

फाइल फोटो.

कन्हैया लाल शर्मा/मथुरा: श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में चल रही रिवीजन सुनवाई 28 जनवरी को जिला जज की अदालत में नहीं हो सकी. न्यायालय ने श्री कृष्ण विराजमान याचिका पर रिवीजन के तौर पर सुनवाई न करते हुए पहले 1/10 के तहत लगाई गई एप्लीकेशन को सुना और सभी को निरस्त करते हुए सुनवाई की अगली तारीख 28 मार्च दी है.

मथुरा जिला जज यशवंत कुमार मिश्र की अदालत में श्री कृष्ण विराजमान द्वारा पूर्व में डाली गई याचिका में खुद को पक्षकार बनाने के लिए दायर की गई 9 अलग-अलग  याचिकाओं को सुनवाई के बाद देर शाम निरस्त कर दिया. न्यायालय ने सुनवाई के दौरान पक्षकार बनने के लिए दायर की गई याचिकाओं को नॉन मेंटेनेबल माना और सभी 9 पक्षकारों की एप्लिकेशन निरस्त कर दीं.

28 मार्च को होगी अगली सुनवाई
जिला शासकीय अधिवक्ता शिवराम तरकर ने बताया कि न्यायालय द्वारा सभी 1/10 एप्लिकेशन निरस्त कर दी गई हैं. यह एप्लिकेशन मेंटनेबल नही पाई गईं. क्योंकि श्री कृष्ण विराजमान की याचिका को न्यायालय द्वारा संशोधित करते हुए रिवीजन के तौर पर सुनने के आदेश दिए थे. जिसके बाद न्यायालय ने गुरुवार 28 जनवरी को श्री कृष्ण विराजमान पर सुनवाई न करते हुए केवल पक्षकार बनाने वाली एप्लिकेशन को सुनने के बाद निरस्त कर दिया. अब श्री कृष्ण विराजमान की याचिका पर 28 मार्च को मथुरा जिला जज यशवंत कुमार मिश्र की अदालत में सुनवाई होगी.

मामले में हैं कुल 9 पक्षकार
श्री कृष्ण जन्मभूमि मामले को लेकर कुल 9 पक्षकार हैं. जिनमें अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा, अखिल भारतीय हिंदू महासभा, चतुर्वेदी परिषद, अजय गोयल, योगेश कुमार चतुर्वेदी, योगेश कुमार उपाध्याय, आवा, वीरेंद्र अग्रवाल, अजय गोयल, विजेंद्र कुमार पोइया शामिल हैं. 

आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला
दरअसल, 25 सितंबर 2020 को लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री सहित आधा दर्जन कृष्ण भक्तों ने मथुरा की अदालत में भगवान श्रीकृष्ण की ओर से याचिका दाखिल कर मांग की थी कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह प्रबंधन समिति के बीच 1968 में किया गया समझौता पूरी तरह से अविधिपूर्ण है, इसलिए उसे निरस्त कर ईदगाह की भूमि श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट को वापस कर दी जाए. उन्होंने इस मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, शाही ईदगाह प्रबंधन समिति, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट एवं श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को प्रतिवादी बनाया.

क्या है 1968 में हुआ समझौता
साल 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह निर्णय लिया गया था कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा. इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ नाम की एक संस्था बनाई गई. इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया. इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और उन्हें उसके बदले पास की जगह दे दी गई.

इस एक्ट को दी गई चुनौती
बता दे कि हिंदू पक्ष के तरफ से दायर याचिका में 'प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991' को भी चुनौती दी गई है. एक्ट में देश में मौजूद धार्मिक स्थलों का स्वरूप 15 अगस्त 1947 के समय जैसा ही बनाए रखने का प्रावधान किया गया. इस एक्ट में सिर्फ अयोध्या मंदिर को ही छूट दी गई थी. यह कानून मथुरा में हिंदुओं को मालिकाना हक के लिए कानूनी लड़ाई में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है.

WATCH LIVE TV

 

Trending news