स्टडी में सामने आया कि झील का स्वास्थ्य कई जगह बेहतर है, लेकिन टीडीएस और डिसॉल्व ऑक्सीजन तल्लीताल, मालरोड और बोट स्टैंड में तय मानकों से कम पाए गए हैं. यही नहीं झील की अधिकतम गहराई पाषण देवी के पास 24.6 मीटर है. झील में सालों से बरसात के समय गिर रहा मलबा और सिल्ट बेहद चिंताजनक स्थिति में है.
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नैनीताल: विश्व प्रसिद्ध नैनी झील पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है और ये खतरा प्राकृतिक नहीं बल्कि मानवीय है, जो धीरे-धीरे नैनी झील के पूरे ईको सिस्टम को खत्म कर देगा. हाल ही में जिला प्रशासन ने इंडियन इंस्टीटूट ऑफ रिमोट सेंसिंग की मदद से अध्ययन किया. जिसमें चौकाने वाले आंकड़े के साथ एक कड़वी सच्चाई सामने आई है.
झील में कई जगहों पर टीडीएस और डिजॉल्व ऑक्सीजन तय मानकों से कम
मैंगो शेप में ये नैनी झील सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है. पिछले कई सालों से झील की बिगड़ती स्थिति पर नैनीताल हाई कोर्ट ने भी चिंता जताई थी. झील का जलस्तर पिछले सालों में घटता गया और झील में लगातार सिल्ट जमा होती गई. जिला प्रशासन ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ रिमोट सेंशन की मदद से पूरी झील की बायोलॉजिकल स्टडी कराई जिसके बाद चौकाने वाले आंकड़े सामने आए.
स्टडी में सामने आया कि झील का स्वास्थ्य कई जगह बेहतर है, लेकिन टीडीएस और डिसॉल्व ऑक्सीजन तल्लीताल, मालरोड और बोट स्टैंड में तय मानकों से कम पाए गए हैं. यही नहीं झील की अधिकतम गहराई पाषण देवी के पास 24.6 मीटर है. झील में सालों से बरसात के समय गिर रहा मलबा और सिल्ट बेहद चिंताजनक स्थिति में है. अध्ययन में टोटल डिजॉल्व सॉलिड (टीडीएस) मालरोड से लगी झील में मानकों से ज्यादा है. पानी की गुणवत्ता को मापने के लिए जो वैज्ञानिक तकनीक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है उसे डिजॉल्व ऑक्सिजन कहते हैं. नैनी झील में मल्लीताल स्थित बोट स्टैंड में डिजॉल्व ऑक्सीजन 6 मिलीग्राम/प्रति यूनिट ने नीचे है. जहां मछलियां जिंदा नहीं रह सकती. इनके अलावा कई और पॉइंट है जहां डिसॉल्व ऑक्सीजन खतरे स्थिति में पहुंच गया है.
यूनाइटेड नेशन की मदद से लगेंगे 2 सेंसर
जिला प्रशासन ने जब इसका अध्ययन किया तो पता चला कि भले ही स्थिति आज ज्यादा खराब नहीं है, लेकिन भविष्य में ये बेहद खराब हो सकती है. बोट स्टैंड में झील का पानी मरीन लाइफ लायक नहीं है और यहां पर मछलियों का जिंदा रहना संभव नहीं है. लिहाजा झील के विस्तृत अध्ययन के लिए जिला प्रशासन ने यूनाइटेड नेशन को अप्रोच किया. यूनाइटेड नेशन पेयजल,स्वास्थ्य,शिक्षा पर फंड तो देता ही है, लेकिन पहली बार देश में मरीन लाइफ के अध्ययन के लिए करीब 50 लाख की धनराशि स्वीकृत की गई. इस फंड के तहत यूनाइटेड नेशन की तरफ से 2 सेंसर और एक डिस्प्ले लगाया जाएगा. डीएम सविन बंसल ने बताया कि आगे झील के ईको सिस्टम को बेहतर करने के लिए कई कदम उठाए जाएंगे और पर्यटकों की आवाजाही भी नियंत्रित की जाएगी, साथ ही लोगों में जागरूकता भी लाई जाएगी.
कैचमेंट क्षेत्र में करना होगा सबसे ज्यादा कार्य
जानकारों की मानें तो ये पहली बार नहीं हुआ जब झील का वैज्ञानिक अध्ययन किया गया है, लेकिन जब इम्प्लीमेंट का समय आता है तो जिला प्रशासन, नगर पालिका और झील विकास प्राधिकरण आपस समन्यव नहीं बनाते. सबसे बड़ी जरूरत झील के कैचमेंट इलाके को लेकर है जहां बड़ी संख्या में कंक्रीट का जंगल उग आया है.
सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ चुके पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत ने कहा कि, 'झील तभी जिंदा रह सकती है जब उसका कैचमेंट सही स्थिति में रहेगा'. उन्होंने कहा कि, ये पहली बार नहीं है झील का विस्तृत अध्ययन हुआ हो इससे पहले भी डॉ एसपी सिंह और कई वैज्ञानिकों ने इसका अध्यनन किया है.