लखनऊ: उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दलों की तैयारियां जोरों पर हैं. राजनीतिक दल अपना पुराना वोट बैंक मजबूत करने के साथ पार्टी में नए चेहरों को जोड़ने और अपने कुनबे को बढ़ाने की कवायद में जुटे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने अपना कुनबा बढ़ाने के लिए 'बूथ विजय अभियान' चलाया है, तो वहीं प्रियंका गांधी भी लगातार कांग्रेस के खोए हुए वोट बैंक को वापस लाने की कवायद कर रही हैं. वहीं अखिलेश यादव पिछले कई महीनों से लगातार अन्य पार्टी के नेताओं को सपा में जगह दे रहे हैं. मायावती इस बार ब्राह्मणों के सहारे चुनावी मैदान में हैं और बाहुबलियों से परहेज करती नजर आ रही हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

BHU के विशेषज्ञों का दावा- गंगा जल में 1300 प्रकार के बैक्टीरियोफेज, कोरोना के इलाज में हो सकता है प्रभावी 


हर चुनाव से पहले दलबदलू नेता सक्रिय हो जाते हैं. अपने मौजूदा दल का दामन छोड़ दूसरी पार्टी में शामिल होने की फिराक में रहते हैं. तो वहीं राजनीतिक दल भी लगातार इस गणित में जुटे रहते हैं कि कैसे दूसरी पार्टी के नेताओं को अपने साथ लाया जाए और उनके हिस्से का वोट अपनी पार्टी के खाते में डलवाया जाए. उत्तर प्रदेश में भी राजनीतिक दलों द्वारा लगातार इसकी कवायद चल रही है. कई दल एक साथ आने के लिए तैयार हैं तो वहीं बीजेपी को हराने के लिए समाजवादी पार्टी भी हर तरह का समझौता करने के लिए तैयार नजर आ रही है. इस बीच दलबदलुओं को लेकर एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमो​क्रेटिक रिफॉर्म्स) की एक रिपोर्ट आई है.


2014 से 2021 के बीच सबसे अधिक कांग्रेस में भगदड़ 
अपने कुनबे को मजबूत करने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी भले ही तमाम अभियान चला रही हो, लेकिन एडीआर की रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि 2014 के बाद सबसे अधिक नेताओं, कार्यकर्ताओं, विधायकों और सांसदों ने कांग्रेस का दामन छोड़ा है. बसपा इस मामले में दूसरे नम्बर पर है. दोनों ही पार्टियों का इस दौरान चुनावों में बेहद खराब प्रदर्शन रहा है. एडीआर चुनाव प्रक्रियाओं पर नजर रखते हुए इसमें सुधार की पैरवी करने वाली स्वतंत्र संस्था है जो ऐसे रिपोर्ट प्रकाशित करती रहती है. एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2014 से 2021 के बीच सबसे अधिक 177 (35 फीसदी) सांसदों/विधायकों ने कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़ा. 


बीते 7 साल में बसपा के 153 सदस्यों ने पार्टी छोड़ी
कांग्रेस के बाद बसपा का नंबर आता है, बीते 7 साल में जिसके 153 सदस्यों ने पार्टी छोड़ दूसरे दलों से चुनाव लड़ा. रिपोर्ट में कहा गया है कि 7 सालों में पार्टी बदलने वाले 1133 कैंडिडेट्स में सर्वाधिक 253 (22 फीसदी) बीजेपी में शामिल हुए. रिपोर्ट के मुताबिक 33 (7 फीसदी) सांसद/विधायक भाजपा को छोड़कर दूसरे दलों में गए. पार्टी बदलने वालों का सबसे बड़ा ठिकाना बीजेपी रही तो इसके बाद कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का नंबर है. उत्तर प्रदेश के साथ गोवा, पंजाब, मणिपुर और उत्तराखंड में 2022 की शुरुआत में चुनाव होने हैं. ऐसे में दलबदल का सिलसिला एक बार फिर शुरू होगा. देखने वाली बात होगी कि कौन सी पार्टी किसके खेमे में सेंधमारी करती है.


संतों ने आप की तिरंगा यात्रा का किया विरोध, कहा- मनीष सिसोदिया व संजय सिंह गिरगिट जैसा रंग बदलते हैं


राजनीतिक विश्लेषक रूद्र प्रताप दुबे के मुताबिक जिस दल के लोग पार्टी छोड़ कर भागते हैं निश्चित तौर पर उस दल की पकड़ जनता में कमजोर हुई है. उत्तर प्रदेश के लिहाज से देखें तो राजनीति में विश्वसनीयता और विचारधारा कमजोर हो रही है, लेकिन दल बदलू नेताओं के जरिए किस दल की जनता में कितनी मजबूत पकड़ है इसको समझा जा सकता है. लेकिन यह कहना हर बार सही नहीं होता कि जिस पार्टी के नेता चुनाव से पहले दूसरे दलों में अपना स्थान ढूंढते हैं, उस दल की पकड़ जनता में कमजोर हुई है. ​पिछला पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है, जहां तृणमूल छोड़कर दर्जनों नेता भाजपा में आए, लेकिन ममता बनर्जी सत्ता बरकरार रखने में सफल रहीं. जिन नेताओं और विधायकों को टिकट नहीं मिलने का अनुमान होता है वे भी दल बदल करते हैं.


WATCH LIVE TV