Inside Story: वैज्ञानिकों ने जताई थी आशंका, अब 8 महीने बाद सामने आया तबाही का मंजर
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Inside Story: वैज्ञानिकों ने जताई थी आशंका, अब 8 महीने बाद सामने आया तबाही का मंजर

भू-वैज्ञानिकों ने करीब 8 महीने पहले ऐसी आपदा आने के संकेत दे किए थे. मीडिया पोर्टल लाइव हिंदुस्तान के हवाले से खबर है कि देहरादून में स्थित वाडिया भू-वैज्ञानिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने पिछले साल जून-जुलाई के महीने में रिसर्च किया था. 

Inside Story: वैज्ञानिकों ने जताई थी आशंका, अब 8 महीने बाद सामने आया तबाही का मंजर

देहरादून: उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने से भारी तबाही का मंजर है. अब तक कई शव बरामद किए जा चुके हैं, जबकि अभी भी 170 लोगों के लापता होने की खबर है. ऋषि गंगा प्रोजेक्ट को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. ITBP के डीजी ने यह जानकारी दी है. बताया जा रहा है कि टनल में 15-20 लोगों के फंसे होने की आशंका है. प्रोजेक्ट पर करीब 120 लोग काम कर रहे थे. प्रोजेक्ट में काम करने वाले लोग तेज पानी में बह गए. इस त्रासदी को कुछ लोगों ने पहले ही भांप लिया था. 

भू-वैज्ञानिकों ने करीब 8 महीने पहले ऐसी आपदा आने के संकेत दे किए थे. मीडिया पोर्टल लाइव हिंदुस्तान के हवाले से खबर है कि देहरादून में स्थित वाडिया भू-वैज्ञानिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने पिछले साल जून-जुलाई के महीने में रिसर्च किया था. इसमें उन्होंने जम्मू-कश्मीर के काराकोरम समेत सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा नदियों के प्रवाह को रोकने और उससे बनने वाली झील के खतरे को लेकर आगाह किया था. 

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146 लेक आउटबस्ट के खतरे की आशंका
उनके शोध आइस डैम, आउटबस्ट फ्लड एंड मूवमेंट हेट्रोजेनिटी ऑफ ग्लेशियर में सेटेलाइट इमेजरी, डिजीटल मॉडल, ब्रिटिशकालीन दस्तावेज, क्षेत्रीय अध्ययन की मदद से वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट तैयार की थी. इसमें कुल 146 लेक आउटबस्ट के खतरे बताए गए थे. शोध में यह भी पाया गया था कि हिमालय क्षेत्र के लगभग सभी ग्लेशियर पिघल रहे हैं और भारी तबाही मचा सकते हैं. इस शोध रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि काराकोरम क्षेत्र में कुछ ग्लेशियर बर्फ की मात्रा काफी बढ़ गई है. जिससे ग्लेशियर कुछ-कुछ अंतराल बढ़कर नदियों के बहाव को रोक रहे हैं. इससे ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से की बर्फ तेजी से निचले हिस्से पर जमा होती है. 

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जर्नल ग्लोबल में छपी थी रिपोर्ट
यह रिसर्च डॉ. राकेश भाम्बरी, डॉ. अमित कुमार, डॉ अक्षय वर्मा और डॉ समीर तिवारी किया था. उनकी यह रिसर्च रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय जर्नल ग्लोबल एंड प्लेनेट्री चेंज में पब्लिश हुई थी. उनके इस शोध में जाने-माने भूगोलवेत्ता प्रो. केनिथ हेविट ने भी अपना अहम योगदान दिया था.

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क्या था शोध का आधार?
वैज्ञानिकों ने श्योक नदी के ऊपरी हिस्से में मौजूद कुमदन समूह के ग्लेशियरों को आधार माना था. विशेषकर चोंग कुमदन ने 1920 के दौरान नदी का रास्ता कई बार रोका था. इससे उस दौरान झील के टूटने की कई घटनाएं हुईं. 2020 में क्यागर, खुरदोपीन व सिसपर ग्लेशियर ने काराकोरम की नदियों के मार्ग को रोककर झील बना दी थी. इन झीलों अचानक फटने से पीओके समेत भारत के कश्मीर वाले हिस्से में काफी तबाही मच चुकी है. 

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