''विवादित ढांचा टूटने का मुझे कोई खेद, पश्चाताप, प्रायश्चित नहीं'', पढ़ें कल्याण सिंह का वायरल इंटरव्यू
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''विवादित ढांचा टूटने का मुझे कोई खेद, पश्चाताप, प्रायश्चित नहीं'', पढ़ें कल्याण सिंह का वायरल इंटरव्यू

''ढांचा टूटने के बाद बहुत सारे लोग कहते हैं 6 दिसंबर 1992 की घटना राष्ट्रीय शर्म की बात है. मैं कहता हूं 6 दिसंबर 1992 की घटना राष्ट्रीय शर्म का नहीं राष्ट्रीय गर्व का विषय है.''

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह.

नई दिल्ली: अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को लाखों की संख्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचे का ध्वंस कर दिया. मुलायम सिंह के उलट (2 नवंबर 1990) तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कारसेवकों पर गोली नहीं चलवाई, भले ही उन्हें अपनी सरकार गंवानी पड़ी. इसके बाद उनके जीवन में तमाम राजनीतिक उठापटक आए, भाजपा से निलंबित होना पड़ा. लेकिन कल्याण सिंह का राम मंदिर और विवादित ढांचा विध्वंस पर स्टैंड कभी नहीं बदला. वह फिलहाल बीमार चल रहे हैं और लखनऊ एसजीपीजीआई में इलाजरत हैं.

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कल्याण सिंह ने इस घटना के वर्षों बाद कई न्यूज चैनल्स को इंटरव्यू दिए और हर बार बेबाकी से यही बोला कि विवादित ढांचे के गिरने का उन्हें कोई अफसोस नहीं है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने एक ऐसा ही इंटरव्यू साल 2009 में एनडीटीवी को दिया था. प्रोग्राम का नाम था 'चक्रव्यूह' और इसके होस्ट हुआ करते थे वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी. इस इंटरव्यू में कल्याण सिंह ने कारसेवकों पर गोली नहीं चलवाने से लेकर ढांचा विध्वंस और लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट पर पूछे गए हर सवाल का बड़ी बेबाकी से जवाब दिया था, जो अब वायरल हो रहा है. 

लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट कूड़ेदान में फेंकने लायक
इस इंटरव्यू में जब पत्रकार ने कल्याण सिंह से पूछा कि क्या वह खुद को लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार विवादित बाबरी मस्जिद विध्वंस का गुनहगार मानते हैं? इस पर यूपी के पूर्व सीएम ने कहा, ''मुझे लिब्राहन कमीशन की रिपोर्ट के बारे में दो शब्द कहने हैं. जिस रिपोर्ट को तैयार करने में लिब्राहन साहब ने 17 साल लिए, ये 70​ दिन में तैयार हो सकती थी. 17 साल तक पैसा बर्बाद हुआ, 8 करोड़ रुपए खर्च हुए. इस रिपोर्ट में बाकी चीजें कम डिस्कस हुई हैं, लिब्राहन साहब ने राजनीति ज्यादा डिस्कस की है. यह रिपोर्ट कूड़ेदान में फेंकने के लायक है. बाबरी विध्वंस कोई साजिश नहीं थी बल्कि सैकड़ों साल से करोड़ों हिंदुओं की कुचली गई भावना का स्वतः स्फूर्त विस्फोट था, जो 6 दिसंबर 1990 को उस घटना के रूप में सामने आ गया.''

कल्याण सिंह आगे कहते हैं, ''हमने सुरक्षा के सारे प्रबंध किए थे. ये सच है कि उसके बावजूद भी ढांचा टूट गया. इसमें मेरा इतना ही कहना है कि कई बार ऐसे मौके आते हैं जब सुरक्षा के इंतजाम रखे रह जाते हैं और घटना घटित हो जाती है.'' 

ढांचे की सुरक्षा के पक्के इंतजाम फिर भी घटना हुई
पत्रकार कल्याण सिंह से अगला सवाल पूछता है कि आपको तो बहुत मजबूत मुख्यमंत्री माना जाता था फिर भी? कल्याण सिंह जवाब देते हैं, ''मैं मजबूत मुख्यमंत्री था. इसमें कोई संदेह नहीं है. मैं तीन उदाहरण देना चाहता हूं, अमेरिका के राष्ट्रपति केनेडी की सुरक्षा के पक्के इंतजाम थे लेकिन घटना घटित हो गई. श्रीमति इंदिरा गांधी की सुरक्षा के पक्के इंतजाम थे लेकिन घटना घटित हो गई. राजीव गांधी की सुरक्षा के पक्के इंतजाम थे लेकिन घटना घटित हो गई. ऐसे ही 6 दिसंबर 1992 को ढांचे की सुरक्षा के पक्के इंतजाम होते हुए भी घटना घटित हो गई. लिब्राहन साहब को अपनी रिपोर्ट में इसे साजिश बताना नितांत गलत है.''

मैंने आदेश दिया था कारसेवकों पर गोली नहीं चलेगी
पत्रकार कल्याण सिंह से कहता है कि सुरक्षा के पक्के इंतजाम थे लेकिन आपने इसका इस्तेमाल नहीं किया? इस पर पूर्व मुख्यमंत्री जवाब देते हैं, ''मैंने अधिकारियों से साफ कह दिया था कि जो करना हो सो उपाय योजना कीजिए ढांचे की सुरक्षा के लिए. क्योंकि हमने वादा किया है. लेकिन एक बात मैंने और साफ कह दिया था कि लाखों कारसेवक मौजूद हैं और उन पर गोली नहीं चलेगी.  अधिकारियों को यह मेरा आदेश था. और इसमें अधिकारियों का कोई कसूर नहीं है. उन्होंने तो मेरे आदेश का पालन किया कि गोली नहीं चलेगी. क्योंकि गोली अगर मैं चलवा देता तो हजारों लोग मारे जाते. भगदड़ में मारे जाते, गोली से मारे जाते और ढांचा फिर नहीं बचता.''

ढांचा टूटने का मुझे कोई खेद, पश्चाताप, प्रायश्चित नहीं
पत्रकार सवाल दागता है कि आपने करोड़ों लोगों को बांटने का फैसला कर लिया सौ लोगों को मरने से बचाने के लिए? इस पर कल्याण सिंह जवाब देते हैं, ''नहीं, मैंने कारसेवकों पर गोली चलवाने का पाप नहीं किया. कोई नहीं बंटा है. ये राजनीतिक लोग बांट रहे हैं. लोग नहीं बंटे हैं, आज भी लोग नहीं बंटे हैं. मेरा कहना इतना ही है कि ढांचा नहीं बचा मुझे कोई गम नहीं है इस बात का. और ढांचे के टूटने का न मुझे कोई खेद है, न पश्चाताप है और न ही प्रायश्चित है.  नो रिग्रेट, नो रिपेंटेंस, नो सॉरो, नो ग्रीफ.''

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कल्याण ने कहा- 6 दिसंबर 1992 राष्ट्रीय गर्व का दिन
पत्रकार फिर सवाल दागता है कि इसका मतलब आपकी इच्छा थी ढांचा टूट जाए? इस पर कल्याण सिंह जवाब देते हैं, ''इच्छा तो राम मंदिर की थी. ढांचा टूटने के बाद बहुत सारे लोग कहते हैं 6 दिसंबर 1992 की घटना राष्ट्रीय शर्म की बात है. मैं कहता हूं 6 दिसंबर 1992 की घटना राष्ट्रीय शर्म का नहीं राष्ट्रीय गर्व का विषय है. 6 दिसंबर 92 को तो ढांचे की अंतिम पुण्यतिथि थी. ढांचा टूटने के आसार कब शुरू हो गए थे? जब वहां रामलला की मूर्ति की स्थापना हुई थी. किसका शासन था दोनों जगह? कांग्रेस का. उसके बाद फिर ताला खोला गया रामलला की पूजा अर्चना के लिए. खुदा की इबादत के लिए नहीं. सरकार किसकी थी? केंद्र में कांग्रेस की, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की. उसके बाद वहां शिलान्यास हुआ. शिलान्यास मस्जिद का नहीं हुआ, शिलान्यास हुआ मंदिर बनाने का. किसके जवाने में हुआ? सरकार कांग्रेस की थी केंद्र में, सरकार कांग्रेस की थी उत्तर प्रदेश के अंदर.''

लिब्राहन आयोग और ढांचा ध्वंस पर कोर्ट का फैसला
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के 10 दिन बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लिब्राहन आयोग का गठन किया था. इस आयोग को जिम्मेदारी सौंपी गई कि बाबरी मस्जिद विध्वंस में शामिल लोगों का नाम सामने लाए. लिब्राहन आयोग ने लगभग 17 साल जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी और कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद ढांचा विध्वंस मामले में मुख्य किरदार बताया. लखनऊ की सीबीआई अदालत ने 28 साल बाद 30 सितंबर 2020 को इस मामले में अपना फैसला सुनाया. सभी 32 आरोपियों को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा कि बाबरी विध्वंस सुनियोजित घटना नहीं थी.

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