लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव काफी नजदीक है, ऐसे में बीजेपी ने मेडिकल कॉलेजों में (NEET) यूजी और पीजी की पढ़ाई में ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर अगड़ी जातियों को आरक्षण देकर एक तरह से मास्टरस्ट्रोक खेल दिया है. सबको पता है, तमाम आंकड़े उपलब्ध जिससे पता चलता है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इतनी प्रचंड बहुमत गैर यादव ओबीसी वोट बैंक को ही साधकर हासिल की थी.


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भाजपा के आरक्षण का जिन्न, विपक्ष को झटका
अब भाजपा ने मेडिकल की पढ़ाई में आरक्षण देकर अपने उसी ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने के साथ ही आर्थिक रूप से पिछ़ड़े सवर्णों को भी साधने की कोशिश की है. केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद राजनीति गरमा गई है. भाजपा के इस चाल से समाजवादी पार्टी के मुहिम को झटका लगेगा. कांग्रेस और बसपा के साथ ओपी राजभर भी ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर अग्रेसिव दिख रहे हैं और इसे चुनावी स्टंट बता रहे हैं.


इस फैसले के पीछे राजनीतिक निहितार्थ छिपे हैं
केंद्र सरकार का नीट की परीक्षा में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC Reservation) को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर तबके (EWS Reservation) को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. यही कारण की पिछड़ों की राजनीति करने में आगे रहीं पार्टियां तुरंत सामने आई हैं. वैसे तो यह नियम देश भर में लागू होगा लेकिन उत्तर प्रदेश में इस फैसले के पीछे  राजनीतिक निहितार्थ छिपे हैं.


यूपी में ओबीसी जातियों की आबादी 54 के करीब
सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट बताती है कि यूपी में पिछड़ी जातियों की आबादी 54 प्रतिशत है. इसमें मुस्लिम ओबीसी भी शामिल हैं, लेकिन बड़ी संख्या हिंदू पिछड़ी जातियों की ही है. इनमें कुर्मी, लोध और मौर्य जैसी गैर यादव ओबीसी जातियों का रुझान भाजपा की तरफ रहा है. इनके अतिरिक्त पिछले यूपी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अन्य गैर यादव ओबीसी वोटरों का भी रुझान भाजपा की तरफ था. यही कारण है कि समाजवादी पार्टी ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर सक्रिय थी.


फैसले का विधानसभा चुनाव में पड़ेगा सीधा असर
कांग्रेस इसे अधूरा न्याय बता रही है. दूसरी ओर अखिलेश यादव इस फैसले को समाजवादी पार्टी के संघर्षों का नतीजा बता रहे हैं, जिसके सामने भाजपा घुटने टेकने पड़े. वहीं मायावती कहती हैं कि यह भाजपा का चुनावी स्टंट है. दरअसल, यह सारी कवायद ओबीसी और सवर्ण युवाओं को यह संदेश देने की है कि उनके भविष्य की चिंता भाजपा ही करती है. इसके जरिए भाजपा ने जहां अपने गैर यादव ओबीसी बैंक को सहेजने की कोशिश की है, दूसरी ओर सवर्णों की हितैषी बनने की. राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा के इस फैसले का विधानसभा चुनाव में असर पड़ेगा.


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