सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त, 2021 को निर्देश जारी किया था कि हाई कोर्ट की अनुमति के बिना मौजूदा या पूर्व सांसद/विधायक का कोई भी केस वापस नहीं लिया जा सकता...
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लखनऊ: 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित 77 आपराधिक मामले उत्तर प्रदेश सरकार ने अब वापस ले लिए हैं. सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया है कि इन मामलों को बिना कोई कारण बताए वापस लिया गया है. बताया जा रहा है कि इन केसेस में अधिकतम सजा का प्रावधान आजीवन कारावास है. सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के जल्द ट्रायल को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की है.
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बुधवार को होगी अगली सुनवाई
चीफ जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच अब अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई उस याचिका पर सुनवाई करेगी, जिसमें सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामलों को निपटाने की मांग की गई थी. अब अगली सुनवाई बुधवार को होगी.
510 में से 175 मामलों में चार्ज शीट दायर
जानकारी के मुताबिक, अधिक्ता स्नेहा कलिता ने जो रिपोर्ट दायर की थी और कहा था कि राज्य सरकार ने सूचना दी थी कि साल 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित कुल 6869 आरोपियों के खिलाफ 510 केस फाइल हुए थे. ये केस मेरठ मंडल के 5 जिलों में दर्ज थे. इनमें से 175 मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए थे.
नहीं बताया गया कोई कारण
इन मामलों में से 165 केस में फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर ली गई थी. इसके अलावा, 170 केसेस को हटा दिया गया था. इसके बाद राज्य सरकार ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत 77 केसेस वापस ले लिए. हालांकि, इसका कोई कारण नहीं बताया गया है. सिर्फ यह कहा गया है कि प्रशासन की तरफ से पूरी तरह से विचार- विमर्श किया गया है. इसके बाद ही विशेष केसेस वापस लेने का फैसला हुआ है. वहीं, हंसारिया ने कहा कि इसपर हाई कोर्ट जांच कर सकता है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त, 2021 को निर्देश जारी किया था कि हाई कोर्ट की अनुमति के बिना मौजूदा या पूर्व सांसद/विधायक का कोई भी केस वापस नहीं लिया जा सकता.
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