विवेचनाधिकारी की अपील पर सीबीआई कोर्ट के प्रभारी न्यायिक मजिस्ट्रेट सुब्रत पाठक ने इसकी अनुमति जांच टीम को इसकी अनुमति दे दी है.
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नई दिल्लीः उन्नाव रेप कांड में पीड़िता की कार दुर्घटना मामले में सीबीआई कोर्ट ने जांच टीम को ट्रक चालक आशीष कुमार पाल और क्लीनर मोहन श्रीवास के नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिंग की अनुमति दे दी है, जिसके बाद आज दोनों का टेस्ट कराया जाएगा. विवेचनाधिकारी की अपील पर सीबीआई कोर्ट के प्रभारी न्यायिक मजिस्ट्रेट सुब्रत पाठक ने इसकी अनुमति जांच टीम को इसकी अनुमति दे दी है, जिसके बाद गांधीनगर में दोनों का टेस्ट कराया जाएगा.
बता दें बीते शुक्रवार को सीबीआई के डिप्टी एसपी राम सिंह ने अभियुक्तों का नार्को टेस्ट, ब्रेन मैपिंग और फिंगर प्रिंट टेस्ट कराए जाने की अनुमति मांगी थी. उन्होंने कहा था कि इस मामले की विवेचना के लिए अभियुक्तों की यह सभी टेस्ट कराया जाना अति आवश्यक है. जिसके बाद कोर्ट ने सीबीआई जांच टीम की अर्जी और अभियुक्तों की सहमति पर सभी टेस्टों की अनुमति दे दी है.
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वहीं कोर्ट ने टेस्ट की अनुमति देने के साथ ही अभियुक्तों को 14 अगस्त की चार बजे तक सीबीआई को सौंपने का भी आदेश दिया है. बता दें उन्नाव रेप पीड़िता हादसे के मामले में कई तरह से सीबीआई जांच कर रही है, सीबीआई एक तरफ आईआईटी मैकेनिकल के विशेषज्ञों की मदद भी ले रही है तो दूसरी तरफ जिस ट्रक से यह हादसा हुआ उसके ड्राइवर और क्लीनर का नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिंग टेस्ट भी करवाने वाली है. यह टेस्ट गुजरात के गांधीनगर में सीबीआई के द्वारा करवाया जाएगा इस टेस्ट के लिए विशेष अनुमति भी सीबीआई कोर्ट से ली गई थी.
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नार्को टेस्ट से हादसे के राज खुल सकते हैं
सीबीआई के पास इस केस से जुड़ी हुई कई प्रश्नावली है पहली तो ट्रक में लगे हुए नंबर प्लेट पर कालिख लगाकर के नंबर प्लेट को छुपाने की कोशिश क्यों की गई थी जो ट्रक का ड्राइवर और क्लीनर जो अपनी थ्योरी दे रहे हैं वह कहां तक सही है. क्या वाकई में ट्रक ड्राइवर ने अचानक से ब्रेक लगाया था ब्रेक लगाने और हादसे के क्रम में कमानी टूटी थी क्या. रूट के बारे में भी कई सारे सवाल हैं ट्रक ड्राइवर और क्लीनर का कोई संबंध तो नहीं उन्नाव से.
क्या है नार्को टेस्ट
नार्को टेस्ट में अपराधी या फिर आरोपी से सच उगलवाने और केस की गहराई तक जाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. कई बार नार्को टेस्ट में अपराधी आरोपी हर बार सच बता देता है, ऐसा नहीं है कई बार आरोपी- अपराधी काफी चालाक होते हैं वह केस को और उलझा देते हैं.
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नार्को टेस्ट को अपराधी या आरोपी व्यक्ति से सच उगलवाने के लिए किया जाता है. इस टेस्ट को फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जांच अधिकारी, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक आदि की मौजूदगी में किया जाता है. इस टेस्ट के लिए अपराधी को कुछ दवाइयां दी जाती है जिससे उसका सचेत दिमाग सुस्त अवस्था में चला जाता है और व्यक्ति को लॉजिकल स्किल थोड़ी कम पड़ जाती है. कुछ अवस्थाओं में व्यक्ति अपराधी या आरोपी बेहोशी की अवस्था में भी पहुंच जाता है. जिसके कारण सच का पता नहीं चल पाता है.