UP assembly elections 2022: राजभर समाज को रिझाने में जुटे राजनीतिक दल, 100 से ज्यादा सीटों पर है प्रभाव
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UP assembly elections 2022: राजभर समाज को रिझाने में जुटे राजनीतिक दल, 100 से ज्यादा सीटों पर है प्रभाव

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP assembly elections 2022) के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने जातिगत समीकरण बिठाना शुरू कर दिया है. पार्टियों की निगाहें छोटे दलों पर हैं, जिनमें से एक राजभर समाज भी शामिल है.

UP assembly elections 2022: राजभर समाज को रिझाने में जुटे राजनीतिक दल, 100 से ज्यादा सीटों पर है प्रभाव

लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP assembly elections 2022) के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने जातिगत समीकरण बिठाना शुरू कर दिया है. पार्टियों की निगाहें छोटे दलों पर हैं, जिनमें से एक राजभर समाज भी शामिल है. ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा के अलग होने के बाद राजभर समाज को साधने के लिए भाजपा अब नई रणनीति पर काम कर रही है. साथ ही अन्य विपक्षी दल भी इसी वोट बैंक को पाने की जुगट में जुटे हुए हैं. 

पिछड़ी जातिओं में चार फीसदी आबादी, 100 से ज्यादा सीटों पर प्रभाव
बता दें, यूपी में पिछड़ी जातियों में राजभर समाज की आबादी करीब चार फीसदी है. जो प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में सौ से अधिक सीटों पर प्रभाव रखते हैं. इस वोट बैंक का खासा प्रभाव पूर्वांचल की दो दर्जन से ज्यादा जिलों की सीटों पर है, जहां यह चुनावी परिणाम में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. इनमें वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर, आजमगढ़, देवरिया, बलिया, मऊ सीटों पर 18-20 फीसद वोट राजभर समाज का माना जाता है. एक अनुमान के मुताबिक, यूपी की 66 सीटों पर 80,000 से 40,000 तक और करीब 56 सीटों पर 45,000 से 25,000 तक राजभर वोटर हैं. 

2017 के चुनाव में सुभासपा ने 8 में से 4 सीटों पर दर्ज की थी जीत 
वहीं, इसके अलावा राजभर समाज का करीब 10 फीसदी वोट अयोध्या,अंबेडकरनगर, गोरखपुर, संतकबीरनगर, महराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, बहराइच, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर और श्रावस्ती में है. बीते 2017 के विधानसभा चुनाव में इसका असर देखने को मिला था, जहा भाजपा के साथ हाथ मिलाने वाले ओम प्रकाश राजभर के दल सुभासपा ने आठ में से चार सीटों पर जीत दर्ज की थी. 

राजभर समाज को साधने में जुटी बीजेपी 
ओपी राजभर के अलग होने के बाद अब भाजपा ने नए सिरे से तैयारी शुरू कर दी है. जिसके तहत मंत्री निल राजभर के अलावा राज्यसभा सदस्य सकल दीप राजभर और पूर्व सांसद हरिनारायण राजभर का सहारा लेकर राजभर वोटरों को साधने का प्रयास कर रही है. साथ ही बहराइच में सुहेलदेव का स्मारक बनवाना भी इसी में शामिल है. इसके अलावा कहा जा रहा है कि बीजेपी की नजरें बसपा से बाहर हुए विधायक राम अचल राजभर पर हैं. 

सपा-बसपा भी बिठा रहे सियासी समीकरण 
विपक्षी दल भी राजभर वोट को पाने के लिए समीकरण बिठा रहे हैं. हाल ही में बसपा के दिग्गज नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर से मिलने अखिलेश यादव उनके आवास पर पहुंचे थे. वहीं, पूर्व सांसद रमाशंकर राजभर को पहले ही सपा ने राष्ट्रीय महासचिव बना रखा है. हाल ही में बसपा प्रमुख मायावती ने भीम राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर अति पिछड़ों को लुभाने का दांव खेल दिया है. 

वैसे तो सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर द्वारा अपने मोर्चे के तले विभिन्न छोटे दलों का साथ लेकर चुनाव लड़ने में भाजपा अपना कुछ हद तक फायदा ही देख रही है, लेकिन भाजपा को दिक्कत तब हो सकती है, जब भाजपा के प्रति राजभर की नाराजगी का फायदा उठाते हुए सपा या बसपा उससे गठबंधन कर ले. 

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