उत्तर प्रदेश सरकार ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 22 साल पुराना केस वापस लेने का आदेश दिया
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उत्तर प्रदेश सरकार ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 22 साल पुराना केस वापस लेने का आदेश दिया

योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला, भाजपा विधायक शीतल पांडेय समेत 10 लोगों के खिलाफ 27 मई 1995 को गोरखपुर के पीपीगंज पुलिस स्टेशन में निषेधाज्ञा भंग कर एक जनसभा करने का मामला दर्ज किया गया था.

सरकार ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मामला हटाने का आदेश पिछले सप्ताह दिया था. (फाइल फोटो)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 22 साल पुराने एक प्रकरण को वापस लेने के आदेश जारी किये है. मुख्यमंत्री के साथ ही 12 अन्य पर लगा 22 साल पुराना निषेधाज्ञा भंग करने संबंधी प्रकरण भी वापस लिया जायेगा. गोरखपुर के अपर जिला अधिकारी रजनीश चन्द्र ने कहा कि राज्य मुख्यालय से आदेश मिला है और इसके लिए उनकी तरफ से अदालत में आवेदन किया जाए. उन्होंने कहा कि अभियोजन अधिकारी से कहा गया है कि वह संबंधित अदालत में मामले वापस लेने के लिये प्रार्थना पत्र दाखिल करें.  योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला, भाजपा विधायक शीतल पांडेय समेत 10 लोगों के खिलाफ 27 मई 1995 को गोरखपुर के पीपीगंज पुलिस स्टेशन में निषेधाज्ञा भंग कर एक जनसभा करने का मामला दर्ज किया गया था.

सरकार ने योगी के खिलाफ मामला हटाने का आदेश पिछले सप्ताह दिया था. प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश दंड विधि (अपराधों का शमन और विचारणों का उपशमन) (संशोधन) विधेयक, 2017 (उत्तर प्रदेश क्रिमिनल ला :कम्पोजिशन आफ अफेन्सेज एंड एबेटमेंट आफ ट्रायल) को विधानसभा के हाल ही में समाप्त हुये शीतकालीन सत्र में पेश किया था. इस विधेयक को विधानसभा में प्रस्तुत करने के एक दिन पहले यह आदेश दिया गया था. विधानसभा में विधेयक पेश करने से पहले मुख्यमंत्री जिनके पास गृह मंत्री का पदभार भी है, ने सदन में कहा था कि पूरे प्रदेश में राजनीति से प्रेरित धरना प्रदर्शन के 20 हजार मुकदमे दर्ज है. इसमें 31 दिसम्बर 2015 तक दर्ज किये गये मुकदमे शामिल है.

गोरखपुर के पीपीगंज पुलिस स्टेशन के रिकार्ड के मुताबिक योगी तथा अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 (किसी लोकसेवक द्वारा वैध रूप से जारी किसी आदेश की अवज्ञा करने वाले कार्य को दंडनीय अपराध घोषित करती है) के तहत 27 मई 1995 को निषेधाज्ञा भंग करके एक जनसभा करने का मामला दर्ज किया गया था. गोरखपुर योगी का गृह जनपद है और वह पांच बार यहां से लोकसभा के लिए चुने गये है. इस साल वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और बाद में वह विधानपरिषद के सदस्य बने.

इस साल मई में योगी के प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कहा था कि वह गोरखपुर में 2007 में कथित भड़काऊ भाषण के बाद दंगे भड़काने के मामले में उनके (योगी) खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.

जनवरी 2007 में गोरखपुर में दंगा भड़का था. आरोप है कि उस समय वहां के तत्कालीन सांसद योगी ने मोहर्रम के जुलूस के मौके पर दो समुदायों के लोगों के बीच टकराव में एक युवक की मौत होने के बाद कथित रूप से भड़काऊ भाषण दिया था. तत्कालीन भाजपा सांसद योगी को तब गिरफ्तार किया गया था और 10 दिनों तक जेल में रखा गया था. अदालत से जमानत मिलने पर वह बाहर आए थे.

उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकार ने एक दशक पुराने दंगे के मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी थी . भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए के तहत दर्ज किए गए भड़काऊ भाषण के इस मामले में सुनवाई राज्य सरकार की मंजूरी मिलने पर ही हो सकती थी.

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