एक मदरसे को 150 साल पहले बना दिया अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, सर सैयद अहमद ने दर-दर ठोकरें खाकर जुटाया था चंदा
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एक मदरसे को 150 साल पहले बना दिया अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, सर सैयद अहमद ने दर-दर ठोकरें खाकर जुटाया था चंदा

Sir Syed Ahmed Khan Death Anniversary: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना ब्रिटिश सरकार के एक रिटायर्ड जज सर सैयद अहमद खान की थी ये तो सभी जानते हैं लेकिन एक मदरसा को यूनिवर्सिटी में तब्दील करने का उनका संघर्ष आसान नहीं था. 

एक मदरसे को 150 साल पहले बना दिया अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, सर सैयद अहमद ने दर-दर ठोकरें खाकर जुटाया था चंदा

Aligarh Muslim University History: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश दुनिया में मशहूर है. देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार अलीगढ़ यूनिवर्सिटी की स्थापना सर सैयद अहमद खान ने डेढ सौ साल पहले 1873 में की थी और इसकी स्थापना की कहानी बड़ी ही रोचक है, क्योंकि इसके लिए सर सैयद अहमद खान को दर-दर की ठोकरे खाते हुए चंदा तक मांगना पड़ा था. सर सैयद अहमद की पुण्यतिथि के अवसर पर आइये आपको बताते हैं ये दिलचस्प किस्सा. लेकिन इससे पहले जानते हैं जानते हैं सर सैयद अहमद खान का संक्षिप्त परिचय.

सर सैयद अहमद खान का प्रारंभिक जीवन
सर सैयद अहमद खान का जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में हुआ था और वो रईस परिवार से आते थे. 22 साल की उम्र में वो अपने भाई की पत्रिका में संपादक के तौर पर काम करने लगे. हालांकि उनके परिवार के मुग्लों से अच्छे संबंध थे फिर भी उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लर्क की नौकरी भी की. वो कुशाग्र बुद्धि के थो और उच्च शिक्षा भी हासिल की थी जिसकी बदौलत 1841 में वो मैनपुरी में उप न्यायाधीश बन गए और 1870 में बनारस के सिविल जज का कार्यभार मिला. 

ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी बनाना चाहते थे 
एक जज के तौर पर लंदन आते जाते वो ब्रिटेन के एजुकेशन सिस्टम से बहुत प्रभावित हुए और भारत में ही ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी खोलने का सपना देखने लगे. लेकिन अंग्रेजी हुकूमत में किसी भारतीय के लिए यूनिवर्सिटी शुरू करना गैरकानूनी था. इसलिए 9 फरवरी 1973 को उन्होंने एक कमेटी बनाई और अलीगढ़ में एक मदरसा शुरू कर दिया. इस मदरसे का नाम था मदरसतुलउलूम. 

मदरसा बना यूनिवर्सिटी
सर सैयद अहमद खान जब ब्रिटिश सरकार की नौकरी से रिटायर हुए तो उन्होंने मदरसतुलउलूम को मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में तब्दील कर दिया और खुद भी उसमें अंग्रेजी पढ़ाने लगे. लेकिन खुद भी कॉलेज में पढ़ाना कॉलेज चलाने के खर्चे के लिए नाकाफी था. इसलिए उन्होंने कॉलेज चलाने के लिए चंदा इकट्ठा करने का फैसला किया. कॉलेज चलाने का खर्चा उठाने के लिए उन्होंने लैला-मजनू नाटक का भी आयोजन किया. नाटक में सर सैयद अहमद खान लैला बने क्योंकि एन वक्त पर लैला का किरदार निभाने वाला कलाकार बीमार पड़ गया था. 

दर-दर जाकर जुटाया चंदा
सर सैयद अहमद खान ने कॉलेज चलाने के लिए चंदा भी मांगा. और जब इसका विरोध हुआ तो उन्होंने यह कहकर अपनी जान छुड़ाई की वो इस चंदे के पैसे से शौचालयों का निर्माण कराएंगे. एक बार तो जब वो चंदा मांग रहे थे तो एक शख्स ने उन पर खूब गुस्सा किया लेकिन सर सैयद अहमद खान इतने शांत स्वभाव के थे कि उस शख्स के गुस्से पर बगैर कोई प्रतिक्रिया दिये वहां से चुपचाप चले आए. 

1920 में सर सैयद अहमद खान की तमाम कोशिशों के बाद आखिरकार वह कॉलेज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बन गया और उनकी यह उपलब्धि इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई. 

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