शादी समारोह में करीब 100 बारातियों के लिए खाने की भी व्यवस्था भी की गई थी.
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अजय कुमार/ कौशांबी: यूं तो आपने तरह-तरह की शादियां देखी होंगी, लेकिन कौशाम्बी के बसेड़ी गांव का विवाह समारोह खासा चर्चा का विषय बना हुआ है. इस शादी में दूल्हा 65 साल का है तो दुल्हन कोई इंसान नहीं बल्कि एक लकड़ी का टुकड़ा है. आम विवाह की तरह ही इस विवाह में मंडप, रस्म,हंसी-ठिठोली, गीत-संगीत, साज-सज्जा और रीति रिवाज का पूरा ध्यान रखा गया. इस अनोखे विवाह को देखने पूरा गांव पहुंचा. मान्यता है कि हिन्दू धर्म शास्त्र के अनुसार कुंवारे व्यक्तियों की मौत के बाद उनका दाह संस्कार नहीं किया जाता है. दाह संस्कार के लिए कुवारे लोग प्रतीकात्मक शादी करते हैं.
दूल्हे भुल्लर के परिवार की सदस्य आशा देवी के मुताबिक उनके जेठ की शादी उनके मां-बाप नहीं कर सके थे. इसलिए हम लोगों ने सोचा की इनकी भी शादी कर दी जाय. शादी में पांव पूजने की रस्म, फेरे की रस्म और लावा परछने की भी रस्म अदायगी की गई. दूल्हे के छोटे भाई राम सजीवन के मुताबिक हिन्दू धर्म में कुंवरगो नाम का संस्कार होता है जिसकी शादी नहीं हुई है उसका यह संस्कार किया जाता है.
इस संस्कार के बाद मान लिया जाता है कि शादी हो गई है. शादी कपास की लकड़ी से कराई गई. शादी समारोह में करीब 100 बारातियों के लिए खाने की भी व्यवस्था भी की गई थी. भुल्लर सिंह पिछले कई महीने पहले बीमारी के कारण पैरालाइसिस के शिकार हो गए है.
उनको 65 साल की अवस्था में खुद से चलने फिरने और बोलने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. ऐसे में अपने जीते जी खुद का कुंवरगो संस्कार कराकर वह मृत्यु के बाद परलोक सुधारना चाहते है. उसका मानना है कि कुंवारेपन में मौत होने पर उसे मुखाग्नि नहीं मिलेगी और वह पंच तत्व में विलीन नहीं हो पाएंगे. इसे देखते हुए उसने इस उम्र में शादी रचाने का फैसला कर लिया है. इस अनोखी शादी के होने के बाद गांव ही नहीं पूरे कौशाम्बी में इसकी चर्चा अब आम हो चुकी है.