दिन-ब-दिन जहरीली होती जा रही है वाराणसी हवा, जल्द से जल्द निपटने की जरूरत
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दिन-ब-दिन जहरीली होती जा रही है वाराणसी हवा, जल्द से जल्द निपटने की जरूरत

देश के सबसे बड़े प्रदूषण कथा मंच 'लेट मी ब्रीद' की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वाराणसी में पिछले दो साल के दौरान एकत्र किये गये पीएम 2.5 और पीएम10 के आंकड़े यह बताते हैं कि वायु की गुणवत्ता में कुल मिलाकर कोई निरन्तर सुधार नहीं हुआ है.

वाराणसी धरती पर सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है. (फाइल फोटो)

लखनऊ: दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार आध्यात्मिक नगरी वाराणसी में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए उठाए गए कदमों की पड़ताल करती एक रिपोर्ट के मुताबिक बनारस की हवा दिन-ब-दिन जहरीली होती जा रही है और इससे आपात स्थिति की तरह निपटने की जरूरत है. देश के सबसे बड़े प्रदूषण कथा मंच 'लेट मी ब्रीद' की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वाराणसी में पिछले दो साल के दौरान एकत्र किये गये पीएम 2.5 और पीएम10 के आंकड़े यह बताते हैं कि वायु की गुणवत्ता में कुल मिलाकर कोई निरन्तर सुधार नहीं हुआ है. बल्कि यहां की हवा अब भी ‘खराब’ और ‘बहुत खराब’ की श्रेणी में बनी हुई है.

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लेट मी ब्रीद के संस्थापक तमसील हुसैन ने बताया कि वाराणसी धरती पर सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है. पिछले कुछ वर्षों से यह आध्यात्मिक शहर दिन-ब-दिन बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है. उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ष 2018 के आंकड़ों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल है. वाराणसी दुनिया के 4300 शहरों में से तीसरा सबसे प्रदूषित नगर है.

हुसैन ने बताया कि वाराणसी में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तरों को रोकने के लिये वायु प्रदूषण से जुड़े सिद्धान्तों को सख्ती से अपनाने, उनकी प्रभावी निगरानी करने, वायु प्रदूषण के अत्यंत खराब दौर से निपटने के लिये एक निगरानी एवं चेतावनी केन्द्र की स्थापना करने, हवा की गुणवत्‍ता खराब होने के लिये सभी तरह के सरकारी और स्थानीय प्राधिकरणों की जवाबदेही तय करने की जरूरत है.

उन्होंने बताया कि हालांकि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने वाराणसी के सौंदर्यीकरण पर अद्भुत काम किया है, पर अब वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए इसके रोकथाम के उपायों पर गंभीरता से अमल करने का समय है.

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हुसैन ने बताया कि ग्लोबल स्ट्रैटेजिक कम्यूनिकेशन काउंसिल ने 2016 में 'इंडियास्पेंड' के साथ वाराणसी की वायु प्रदूषण पर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट -'वाराणसी चोक' जारी की थी, जिसमें प्रदूषण के स्तर के साथ-साथ स्थानीय लोगों और चिकित्सा विशेषज्ञों से इसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की चर्चा की गई है. इस रिपोर्ट के बाद, हमने आरटीआई दाखिल करके पूछा कि समस्या का समाधान करने के लिए 2016 के बाद से क्या किया है. इस पड़ताल को "लेट मी ब्रीद" की ओर से जारी किया गया है.

हुसैन ने बताया कि प्राप्त आरटीआई जवाबों से पता चलता है कि वाराणसी में व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर वायु प्रदूषण सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई के मामले में वर्ष 2016 से लेकर अब तक स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है.

उन्होंने बताया कि वाराणसी की हवा की गुणवत्ता ठीक करने के लिये उठाये गये कदमों के बारे में आरटीआई अर्जियों के जरिये आरटीओ विभाग, यातायात पुलिस, नगर निगम, वाराणसी विकास प्राधिकरण, वन विभाग, कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, खनन अधिकारी और जिला पंचायत से जवाब मांगे गये थे.

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रिपोर्ट के मुताबिक, वाराणसी नगर निगम ने सड़कों से उठने वाली धूल और सड़क के किनारे कचरा जलाये जाने को रोकने के लिये कुछ कदम उठाये हैं. हालांकि, नियमों का उल्लंघन करने की ऐसी घटनाओं की संख्या और किस्म के बारे में कोई विस्तृत जानकारी मुहैया नहीं करायी गयी है.

रिपोर्ट के मुताबिक आरटीआई अर्जी के जवाब से पता चलता है कि वन विभाग और वाराणसी विकास प्राधिकरण ने शहर में विभिन्न स्थानों पर पौधे लगवाये हैं. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में शहर में विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिये बड़ी तादाद में पेड़ काटे भी गये हैं. इससे इशारा मिलता है कि शहर में वायु प्रदूषण और गर्मी के दुष्प्रभावों को रोकने के लिये हरित आवरण में सम्भवत: कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई होगी.

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