उम्रकैद या आजीवन कारावास की सजा का मतलब आखिरी सांस तक कैद- इलाहाबाद हाईकोर्ट
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उम्रकैद या आजीवन कारावास की सजा का मतलब आखिरी सांस तक कैद- इलाहाबाद हाईकोर्ट

Allahabad High Court News: कोर्ट पांच हत्या के आरोपियों द्वारा दायर तीन अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. 

फाइल फोटो.

मोहम्मद गुफरान/प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि उम्र कैद की सजा अभियुक्त के जीवन (अंतिम सांस) तक है. उम्र कैद की सजा को किसी सीमित अवधि या वर्षों की संख्या में सीमित नहीं किया जा सकता. जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस सुभाष चंद्र शर्मा की डिविजन बेंच ने यह फैसला हत्या के दोषियों की उम्र कैद की सजा कम करने की याचिका पर सुनाया है. साल 1997 में हुई हत्या के इस मामले में महोबा की निचली अदालत ने 5 दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी. जिसे हाई कोर्ट ने बरकरार रखते हुए आदेश दिया. 

पाचों आरोपियों पर सिद्ध हुआ था आरोप 
कोर्ट पांच हत्या के आरोपियों द्वारा दायर तीन अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. चूंकि उनमें से एक योगेंद्र की अपील के लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई थी, इसलिए उसकी ओर से अपील खत्म कर दी गई. सभी पांच आरोपियों कल्लू, फूल सिंह, जोगेंद्र (अब मृत), हरि और चरण को जय सिंह की 12 बोर की पिस्टल और राइफल से हत्या करने का दोषी ठहराया गया था. कोर्ट ने सजा की पुष्टि कर दी है. 

कम नहीं की जा सकती आजीवन कारावास की सजा-HC
अदालत के सामने जब यह तर्क दिया गया कि दोषियों में से एक कल्लू, जो पहले ही लगभग 20-21 साल जेल काट चुका है, उसकी सजा की अवधि को देखते हुए उसकी उम्र कैद की सज़ा कम करके उसे रिहा किया जा सकता है. इस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि यह उचित नहीं है. कानूनी स्थिति यह है कि आजीवन कारावास की अवधि किसी व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन (अंतिम सांस) तक होती है. 

सजा में छूट राज्य सरकार का विवेकाधिकार पर निर्भर 
हाईकोर्ट ने कहा, धारा 302 न्यायालय को या तो आजीवन कारावास या मृत्युदंड देने का अधिकार देती है. हत्या के अपराध के लिए न्यूनतम सजा आजीवन कारावास और अधिकतम मृत्यु दंड है. न्यायालय कानून द्वारा अधिकृत न्यूनतम सजा को कम नहीं कर सकता. कोर्ट ने कहा कि जहां तक सजा मे छूट देने का प्रश्न है, यह राज्य सरकार के विवेकाधिकार पर निर्भर है कि वह जेल में कम से कम 14 साल की सजा काटने के बाद आजीवन कारावास की सजा में छूट दे. 

बची हुई सजा काटने के लिए जेल भेजने का आदेश
हालांकि, यह देखते हुए कि अपीलकर्ता कल्लू 20- 21 साल तक जेल में सजा काट चुका है कोर्ट ने जेल अधिकारियों के लिए उसकी रिहाई की स्थिति का आकलन करने और राज्य अधिकारियों को इसकी सिफारिश करने के लिए छूट दी है. कोर्ट ने निचली अदालत के खिलाफ फूल सिंह व अन्य की अपीलें खारिज कर दीं. चूंकि, अपीलार्थी फूल सिंह और कल्लू पहले से ही जेल में हैं. इसलिए उनके संबंध में कोई आदेश नहीं दिया गया. हालांकि, संबंधित अदालत को हरि उर्फ हरीश चंद्र और चरण नाम के अपीलकर्ताओं को हिरासत में लेने और शेष सजा काटने के लिए जेल भेजने का निर्देश दिया गया. 

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