मनोज चतुर्वेदी/बलिया: यूपी बोर्ड के इंटरमीडिएट अंग्रेजी पेपर लीक मामले में गिरफ्तार बलिया के तीनों पत्रकार अजीत ओझा, दिग्विजय सिंह और मनोज गुप्ता को बलिया न्यायालय से जमानत मिल गई है. दरअसल, 30 मार्च को पेपर लीक मामले में तीन पत्रकारों सहित 50 से ज्यादा लोगों पर मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया गया था. जहां एक तरफ उभाव और नगरा थाने में दर्ज मुकदमो पर जमानत की सुनवाई करते हुए 22 अप्रैल को लोअर कोर्ट ने पत्रकार दिग्विजय सिंह और मनोज गुप्ता की जमानत मंजूर कर लिया था.


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वहीं, आज सेशन कोर्ट ने बलिया कोतवाली में दर्ज मुकदमे में आरोपी पत्रकार अजीत ओझा को भी जमानत दे दी. सुनवाई के दौरान कोर्ट द्वारा लगाए गई फटकार के बाद बैकफुट पर आई बलिया पुलिस ने साक्ष्य के अभाव में आईपीसी की सभी संगीन धाराओं को हटा लिया. वहीं, आजमगढ़ जेल में बंद तीनों पत्रकारों की रिहाई का रास्ता भी खुल गया.


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यह है पूरा मामला
बता दें पेपर लीक मामले में तीन पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया. पत्रकार लगातार इसका विरोध कर रहे थे. न्यायिक प्रक्रिया भी चल रही थी. वहीं, न्यायिक प्रक्रिया में क्या हुआ, जो पत्रकार आंदोलन कर रहे थे क्या मैसेज देना चाहते थे? इस सवाल के जवाब में पत्रकार संदीप सौरभ सिंह का कहना है कि पेपर लीक होने में सीधे-सीधे जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग की नाकामी थी. उनकी कमी, लापरवाही और मिलीभगत से हाईस्कूल संस्कृत और उसके बाद इंटरमीडिएट अंग्रेजी का पेपर लीक हुआ.


पत्रकार संदीप सौरभ ने बताया "अखबार में यह खबर प्रकाशित हुई. पत्रकारों ने अपने धर्म का पालन करते हुए केवल खबर प्रकाशित की थी. इनकी नाकामियां खुलकर के सामने आई और उससे शासन की छवि भी धूमिल हुई थी. इस कारण से इन लोगों ने पत्रकारों पर फर्जी तरीके से मुकदमे दर्ज किए. उनको कार्यालय से जबरदस्ती गिरफ्तार किया और बाद में एक-एक करके उन पर संगीन धाराएं बढ़ाई गई". 


न्यायपालिका पर था पुरा भरोसा
पत्रकार संदीप सौरभ ने कहा कि पत्रकारों का मुंह बंद करने के लिए हर एक कोशिश की गई, लेकिन हमें न्यायपालिका और देश के संविधान पर पूरा भरोसा था. हमने इसके विरोध के लिए संवैधानिक प्रक्रिया अपनाई और अदालत में भी अपना पक्ष मजबूती से रखा. इसका नतीजा यह हुआ कि इनके पास फर्जी तरीके से लगाई गई धाराओं को प्रूफ करने के लिए कोई सबूत नहीं था.


पुलिस को बैकफुट पर आते हुए आईपीसी की सभी धाराओं को वापस लेना पड़ा. आज हमारे तीन साथियों को जमानत मिल गई है. संभवतः आज शाम से लेकर सुबह तक उनकी जमानत भी हो जाएगी, लेकिन इनकी गलतियों के लिए इन्हे दंडित कराने के लिए हम लोगों का आंदोलन अनवरत जारी रहेगा.


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त्रकारों पर लगाए गए मुकदमो की पूरी जानकारी
पेपर लीक मामले में तीनों पत्रकारों की गिरफ्तारी पर कोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में पत्रकारों का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता अखिलेंद्र कुमार चौबे ने कहा कि पुलिस ने पत्रकारों के विरुद्ध तीन मुकदमे पंजीकृत किए थे. पुलिस के द्वारा क्राइम नंबर 156/122 कोतवाली में, दूसरा 59 नगरा थाने के अंतर्गत और तीसरा क्राइम नंबर 50 थाना उभाव के अंतर्गत दर्ज कराया था. वहीं, 59 और 50 में 420, 468, 471 आईपीसी व 4, 5, 10 और 66 (डी) के अंतर्गत उन्होंने रिमांड ली थी. इसी के साथ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी.


उन्होंने बताया "तीनों पत्रकारों के विरुद्ध कोतवाली में 420 4/5/10 परीक्षा अधिनियम, 66 (डी) में एफआईआर लांच किया था. 23 तारीख को अधीनस्थ न्यायालय द्वारा दिग्विजय और मनोज गुप्ता की जमानत यह पाते हुए कर दी कि उनके विरुद्ध 467, 468, 471 का अपराध नहीं बनता है और पुलिस ने उसी दिन दिग्विजय सिंह और मनोज गुप्ता पर लगी धाराओं को अल्टर किया, जिसके बाद उनकी जमानत मंजूर कर दी गई थी". 


आज अजीत ओझा की जमानत हुई मंजूर
अधिवक्ता अखिलेंद्र कुमार चौबे ने कहा कि जिला जज की अदालत से अजीत ओझा की जमानत मंजूर हुई थी. अधिवक्ता ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा "पुलिस ने अतिरिक्त धाराओं के प्रयोग कर उनको जिला कारागार में रखने का जो टूल बनाया था, उसके लिए पुलिस को फटकार लगाई गई. उनकी भी जमानत मंजूर हो चुकी है".


अधिवक्ता ने बताया "आज एक प्रकरण लगा था, कोतवाली का मैटर था 156 का उसमें भी अजीत की जमानत मंजूर की जा चुकी है. पुलिस ने 420 की धाराओं को अल्टर कर लिया है और पत्रकार बंधुओं को जीत मिली है. न्यायालय पर आप लोगों का विश्वास था. वरिष्ठ अधिवक्ता अवधेश तिवारी की दलीलों से न्यायालय संतुष्ट हुआ और पत्रकारों को जमानत पर रिहा किया जा रहा है".


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