छठव्रती ने दिया उगते सूर्य को अर्घ्य, समापन के दिन लाखों की संख्या में महिलाएं तट पर
बुधवार की शाम को नदियों और पोखरों के घाट पर भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद गुरुवार को तड़के उगते सूर्य भगवान को अर्घ्य देने की ललक व्रती महिलाओं के साथ उनके परिजनों में दिखाई दी...
मो. गुफरान/प्रयागराज: आज सूर्य उपासना का महापर्व छठ श्रद्धापूर्वक मनाया गया. प्रयागराज के साथ उत्तर प्रदेश के कई जिलों में छठ पर्व के आखिरी दिन संगम तट पर उगते सूरज को लाखों महिलाओं ने अर्घ्य दिया और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना की. बता दें, नहाय-खाय के साथ शुरू हुए छठ महापर्व का आज अंतिम दिन है. संगम में लाखों लोगों की भीड़ उगते सूरज को अर्घ्य देती दिखी. इसके बाद व्रत का पारायण करके चार दिनों तक चले आस्था के इस महापर्व में पूजा-पाठ का समापन हुआ.
कल डूबते सूर्य को छठव्रती ने दिया अर्घ्य, आज सूरज की पहली किरण की पूजा से सम्पन्न हुआ छठ महापर्व
आजमगढ़ में नदी किनारे पहुंची हजारों छठव्रती
वहीं, आजमगढ़ में बुधवार की शाम को नदियों और पोखरों के घाट पर भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद गुरुवार को तड़के उगते सूर्य भगवान को अर्घ्य देने की ललक व्रती महिलाओं के साथ उनके परिजनों में दिखाई दी. छठ घाटों पर हर आम और खास सबों ने छठी मइया की श्रद्धापूर्वक पूजा की. आज छठ पूजा का आखिरी दिन है, इस दौरान नदी के घाटों पर तड़के जन सैलाब उमड़ी रही.
यह छठ पर्व वैसे तो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है. आजमगढ़ के शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में जिस तरह से पर्व की धूम है, यह माना जा सकता है कि इसने महापर्व का रूप ले लिया है. घाटों पर अर्घ्य के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा व सुरक्षा को देखते हुए इंतजाम किए गए. गली-मोहल्लों में छठ गीत गूंज रहे हैं. हर जगह छठ को लेकर उत्साह देखते ही बन रहा है.
टोला मोहल्ला के लोग व सगे संबंधी जुटे. गीत गूंजे 'सेईं ले चरण तोहार ऐ छठी मइया, सुनी लेहु अरज हमार.' शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों में नदी व पोखरों के घाट को जाने वाले रास्ते खचाखच भरे हैं. सिर पर पुरुष बांस की टोकरी में फलों को सजा कर ले जा रहे, जबकि व्रती महिलाओं के चेहरे पर भगवान को अर्घ्य देने की संतुष्टि झलक रही है.
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छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है, जो एक कठिन तपस्या की तरह है. यह प्राय: महिलाओं द्वारा किया जाता है. कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं. इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना पड़ता है. इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते, महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं. शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए. घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.
पुत्र की चाहत रखने वाली और उसकी कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं. पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं. लोगों का मानना है कि छठ माता सबकी मनोकामना पूर्ण करती हैं. सुबह के समय ठंडे पानी में खड़ा रहकर सूर्यदेव के उदय होने का इंतजार करना पड़ता है. इसके बाद परिवार के बड़े छोटे हर लोग सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं.
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जौनपुर में भी धूमधाम
इसके अलावा, जौनपुर में भी आस्था का महापर्व डाला छठ के पावन पर्व पर महिलाओं ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पुत्र और पति की लंबी आयु की कामना की. शहर से लेकर ग्रामीण अंचल में भी छठ पूजा का उत्साह देखने को मिला. शहर में जहां शाही पुल के पास लोगों ने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया, गोमती किनारे चल रही छठ पूजा का आस्था का जनसैलाब उमड़ा है. महिलाओं ने उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ भगवान भास्कर से समृद्धि की कामना की.
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