भारत में नहीं था दमघोंटू पटाखों का चलन, इस पड़ोसी दुश्मन देश से 600 साल पहले आया प्रदूषण का यह जंजाल
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भारत में नहीं था दमघोंटू पटाखों का चलन, इस पड़ोसी दुश्मन देश से 600 साल पहले आया प्रदूषण का यह जंजाल

भारत मे सबसे पहले बारूद का प्रयोग विजयनगर साम्राज्य में हुआ था. इसका जिक्र 'बाबरनामा' में भी है. अभी तक कुछ लोग यह मानते हैं कि वह मुगल थे, जो बारूद को भारत में लेकर आए, लेकिन असल में मुगल तोप लेकर आए थे...

भारत में नहीं था दमघोंटू पटाखों का चलन, इस पड़ोसी दुश्मन देश से 600 साल पहले आया प्रदूषण का यह जंजाल

मनमीत गुप्ता/अयोध्या: दीपावली का त्योहार हो, नया साल हो, दूल्हे की बारात हो या क्रिकेट में भारत की जीत. इन सबमें एक चीज कॉमन होती है और वह है धमाकेदार आतिशबाजी. पटाखे फोड़ना लोगों के लिए खुशी जाहिर करने का पर्याय बन गया है. लेकिन, जब किसी भी चीज की अति होती है, तो वह खुशियां नहीं, बल्कि चिंता बन जाती है. इसी दिवाली पर पटाखे जलने के बाद अगले दिन हवा की क्या हालत थी, यह हम सबने देखा. आज हम जानते हैं हवा प्रदूषित करने वाले ये पटाखे आखिर कब और कैसे बने और फिर इन्हें भारत में कौन लाया...

अयोध्या डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में इतिहासकार देशराज उपाध्याय का कहना है कि उन्होंने रिसर्च में पाया है कि पटाखे 15वीं शताब्दी में आए थे. वहीं, पंजाब विश्वविद्यालय के राजीव ने इसपर रिसर्च की है. उनका कहना है कि भारत में बारूद का सबसे पहले प्रयोग विजयनगर साम्राज्य में किया गया.

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भारत में 15वीं सदी में आया बारूद
शोधकर्ताओं का कहना है कि 15वीं शताब्दी से पहले देश मे पटाखों की कोई परंपरा नहीं मिली है और रामकथा की पुस्तकों- रामायण और अन्य ग्रंथों में भी इसकी कोई जिक्र नहीं है, हालांकि, वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस में दीपोत्सव का जिक्र किया गया है. उसमें बताया गया है कि जब भगवान राम लंका विजय के उपरांत अयोध्या वापस आए थे तो प्रयागराज से हनुमान के माध्यम से भरत को संदेशा भिजवाया था. भगवान राम के अयोध्या नगर आगमन पर नगरवासी अपने-अपने घरों में दीप जलाये थे और बंधनवार लगाये थे. इसका जिक्र रामचरित मानस की चौपाई में भी है.

चीन के नए साल पर जलाए जाते थे पटाखे
वहीं, जानकारी यह भी मिल रही है कि पटाखों का आविष्कार पड़ोसी देश चीन ने किया था. चीन में मान्यता है कि पटाखों की रोशनी से अंधेरा दूर होता है और शोर से भूत-प्रेत डरते हैं. इसलिए बुरी शक्तियों को भगाने के लिए नए साल पर लोग पटाखे जलाते हैं. शोध में पता चला है कि कि चीन के लोगों को ईसा के पूर्व काल से ही बारूद की जानकारी थी. लेकिन, यह भारत में 15वीं सदी में आए.

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चीन ने बनाया था बारूद
गौरतलब है कि चीन की सबसे बड़ी डिस्कवरी में बारूद का भी चिक्र है. यह एक विस्फोटक केमिकल मिक्स होता है. इसे गन पाउडर कहा जाचा है. बारूद के काले रंग को देखते हुए इसे काला पाउडर भी कहा गया है. दरअसल, बारूद गंधक, कोयला और पोटैशियम नाइट्रेट का मिक्स होता है. इससे बने बारूद से ही आज तक का सबसे बड़ा एक्सप्लोसिव बना है.

विजयनगर साम्राज्य ने बारूद से लड़ा था पहला युद्ध
भारत मे सबसे पहले बारूद का प्रयोग विजयनगर साम्राज्य में हुआ था. इसका जिक्र 'बाबरनामा' में भी है. अभी तक कुछ लोग यह मानते हैं कि वह मुगल थे, जो बारूद को भारत में लेकर आए, लेकिन असल में मुगल तोप लेकर आए थे. बारूद का इस्तेमाल सबसे पहले एक युद्ध में किया गया था. यह युद्ध विजय नगर और बहमनी राज्य के बीच हुआ था.

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12वीं सदी में भारत में पटाखे आने का भी जिक्र
वहीं, यह भी बताया जाता है कि देश में आतिश दीपांकर नाम के बंगाली बौद्ध धर्मगुरु ने 12वीं सदी में पटाखों को प्रचलित किया था. ऐसा माना जा रहा है कि शायद वह चीन, तिब्बत या किसी पूर्व एशिया देश से पटाखों के बारे में जानकारी लेकर आए थे. बाद में जब जब बाबर ने दिल्ली सल्तनत पर कब्जा करने के लिए युद्ध किया तो उस दौरान तोपों का इस्तेमाल किया गया. वहीं, यह भी पाया गया है कि मुगलों के समय आतिशबाजी होती थी.

तमिलनाडु है पटाखों का केंद्र
भारत में पटाखों का गढ़ तमिलनाडु के शिवकाशी को कहा जाता है. बताया जाता है कि यहां के पी. अय्या नादर और उनके भाई शनमुगा नादर ने पटाखे बनाने की शुरुआत की थी. दोनों भाई पहले (1923 में) माचिस फैक्ट्री में काम करते थे. फिर उन्होंने शिवकाशी में अपनी माचिस फैक्ट्री शुरू की. अंगेजों द्वारा एक्स्प्लोसिव एक्ट पारित किए जाने के बाद पटाखे बनाने वाले कच्चे माल पर पाबंदी लगा दी गई थी. लेकिन, फिर साल 1940 में इस एक्ट में संशोधन किया गया और एक खास स्तर के पटाखे बनाना लीगल हुए. उस समय नादर ब्रदर्स ने पहली पटाखा फैक्ट्री शुरू की.

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