सावरकर की लेखनी से सलमान की किताब तक: क्या है ‘हिन्दुत्व’- एक जीवन पद्धति या सिर्फ़ राजनीतिक धारणा
`हिंदुत्व` शब्द का प्रथम लिखित उल्लेख 1870 के दशक में बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखे उपन्यास `आनंद मठ` में आया, उसके बाद उसका उपयोग सीमित तौर पर 1890 के दशक में बंगाल में चंद्रनाथ बसु और महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक के यहां होता रहा.
नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद ने हाल ही में अपनी किताब सनराइज ऑफ अयोध्या 'Sunrise over Ayodhya' लॉन्च की. इस किताब में हिंदुत्व को लेकर लिखी गई उनकी बातों ने बवाल मचाया हुआ है. उन्होंने हिंदुत्व की आईएसआईएस और बोको हरम जैसे आतंकी संगठनों से तुलना करके एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है. उनका कहना है कि हिंदुत्व का यह उग्र और राजनीतिक रूप हिंदू धर्म को किनारे लगाने का काम कर रहा है. अब जब सलमान खुर्शीद की किताब के जरिए बात हिंदुत्व की उठी है तो हम इस पर थोड़ी नजर डाल लेते हैं कि आखिर में हिंदुत्व क्या है.
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कहां से आया 'हिंदुत्व' शब्द
'हिंदुत्व' शब्द का प्रथम लिखित उल्लेख 1870 के दशक में बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखे उपन्यास 'आनंद मठ' में आया, उसके बाद उसका उपयोग सीमित तौर पर 1890 के दशक में बंगाल में चंद्रनाथ बसु और महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक के यहां होता रहा. पर इस शब्द को विस्तार से आगे बढ़ाया विनायक दामोदर सावरकर ने, जिन्होंने 'हिंदुत्व : हू इज हिंदू' पुस्तक लिखकर इसकी प्रबल धारणा पेश की और सब कुछ बदल डाला. सावरकर के वैचारिक उन्नत प्लेटफार्म को दर्शाती यह पुस्तक 1923 में असल में 'एसेंसिएल्स ऑफ हिंदुत्व' शीर्षक से प्रकाशित हुई थी, पर 1928 में इसका प्रकाशन दूसरे शीर्षक 'हिंदुत्व: हू इज ए हिंदू' से हुआ.
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इसका दूसरा संस्करण 1942 में आया. इस पुस्तक के टाइटल और लेखक अलग होने की वजह थी कि सावरकर को जेल में लेखन की आजादी नहीं थी.सावरकर ने 'हिंदुत्व' शब्द का प्रयोग अपनी विचारधारा की रूपरेखा बनाने हेतु किया. उनकी इस पुस्तक के बाद 'हिंदुत्व' सामान्य शब्द न रहकर विचारधारा से जुड़ गया. सावरकर ने हिंदू जीवन-पद्धति को अन्य जीवन पद्धतियों से अलग और विशिष्ट रूप में प्रस्तुत किया.
कोर्ट ने भी माना-
हिंदुत्व को तो हमारे देश की न्याय व्यवस्था ने भी माना है. दिसंबर 1995 में जस्टिस जेएस वर्मा की अगुआई वाली बेंच ने कहा था, 'हिंदुत्व शब्द भारत के निवासियों की जीवन पद्धति की ओर इंगित करता है। इसका दायरा सिर्फ उन तक सीमित नहीं कर सकते, जो अपनी आस्था के कारण हिंदू धर्म को मानते हैं। 'इस फैसले के तहत, कोर्ट ने हिंदुत्व के धर्म के तौर पर इस्तेमाल को गलत क्रियाकलाप मानने से मना कर दिया था.
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गलत प्रस्तुति से बढ़ी नकारात्मकता
धर्म और राजनीति की समझ रखने वाले मानते हैं कि वर्तमान में मीडिया व अन्य माध्यमों के द्वारा हिंदुत्व शब्द का जो अर्थ प्रस्तुत किया जा रहा है, वह बहुत ही गलत और नकारात्मक है. हिंदुत्व को लेकर जो आर्टिकल व खबरें लिखी जाती हैं, उनके शीर्षक कुछ ऐसे होते हैं, 'हिंदुत्व का एजेंडा है लव जेहाद का विरोध', 'गोहत्या के विरोध में उग्र हैं हिन्दुत्व मानने वाले', 'हिन्दुत्व वादियों की ओर से संस्कृत भाषा के अध्ययन को दिया जा रहा प्रोत्साहन', 'स्वदेशी का प्रचार-हिन्दुत्व का एजेंडा' आदि आदि. ऐसे गलत लेखन से लोगों में हिंदुत्व शब्द के प्रयोग को लेकर गलत चलन चला और इसकी विशाल वैचारिक अवधारणा पर से ध्यान हटा.
राजनैतिक पार्टियों के बीच हिंदुत्व हमेशा रहा है मुद्दा
सावरकर और आरएसएस के संस्थापकों हेडगेवार व गोलवलकर आदि के लिखे शब्दों और कथनों को आधार बनाकर कांग्रेस, वामपंथी व उनके अन्य विरोधी कहते रहे हैं कि ‘हिन्दुत्व’ विचारधारा का सरोकार धर्म, विश्वासों या जीवन मूल्यों से नहीं है, बल्कि यह तो सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनीतिक धारणा है. कांग्रेस सांसद और इस पार्टी के प्रमुख नेता शशि थरूर के एक बयान पर नजर डालिए.
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‘हिंदुत्व का हिंदू धर्म के साथ विश्वास या धर्म के रूप में कुछ भी मेल नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान का एक बैज और राजनीतिक लामबंदी का एक साधन है.’ उनकी पार्टी के बाकी सदस्य और आलाकमान भी उनकी राय से इतर नहीं सोचते. सलमान खुर्शीद की इस पुस्तक ने भी कांग्रेस पार्टी की उनकी सोच को सामने रखा है. इसके अलावा दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, राहुल गांधी भी हिंदुत्व को नफरती बताते हुए कइयों बार इस पर टिप्पणी कर चुके हैं.
इसके उलट हिंदुत्व को कट्टरता से जोडने और उसका अनर्थ प्रस्तुत करने को केंद्र में सत्तासीन भाजपा के नेतागण कभी सहन नहीं करते. उनका कहना है कि इन्हें ये अधिकार किसने दिया कि वो पवित्र हिंदुत्व शब्द का अर्थ बदल कर उसे पतित बताएं. विभिन्न मंचों से भाजपा के प्रवक्ता गण सुधांशु त्रिवेदी, संबित पात्रा, गौरव भाटिया, प्रेम शुक्ला हिंदुत्व की अपनी विचारधारा को सामने रखते ही रहते हैं. भाजपा ने यहां तक कि अपने दो मुस्लिम नेताओं मुख्तार अब्बास नकवी और सैयद शाहनवाज हुसैन से भी हिंदुत्व की विचारधारा पर कई बार बुलवा दिया है.
दोनों दलों में हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर आरोप-प्रत्यारोप चलते ही रहते हैं, पर वर्तमान में यूपी में चुनाव की बेला को देखते हुए यह भी संभव लगता है कि खुर्शीद की किताब की यह इबारत उनकी पार्टी कांग्रेस को मुसीबत में डाल सकती है.
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