'जु़र्म-ए-संगीन का काफ़िया है, यूपी के जरायम का माफिया है': पूर्वांचल के क्राइम किंग हरिशंकर तिवारी की सत्ता का किंगमेकर बनने की दास्तां
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'जु़र्म-ए-संगीन का काफ़िया है, यूपी के जरायम का माफिया है': पूर्वांचल के क्राइम किंग हरिशंकर तिवारी की सत्ता का किंगमेकर बनने की दास्तां

अस्सी के दशक में पूर्वांचल में सरकारी परियोजनाओं की शुरुआत होने के साथ ही माफिया और सरकारी ठेकों में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई. कुछ ही साल में इटली में पैदा हुआ गैंगवार शब्द पूर्वांचल की पहचान बन गया. वैसे तो गाजीपुर और वाराणसी माफिया का बड़ा केन्द्र रहा है, लेकिन इसकी शुरुआत गोरखपुर से हुई. जिसमें सबसे पहला नाम हरिशंकर तिवारी का आया था.  

फाइल फोटो.

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले हरिशंकर तिवारी के परिवार (Harishankar Tiwari's Family) की सपा (SP) में एंट्री की खबरें हर ओर तैर रही हैं. हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) एक ऐसा नाम है जिसके किसी भी पार्टी से जुड़ने से पूर्वांचल के सियासी समीकरण बदल सकते हैं. ब्राह्मण राजनीति के साथ-साथ पावर एंड क्राइम पॉलिटिक्स से भी उनका नाम जुड़ा हुआ है.  जब कभी सत्ता के अपराधीकरण की चर्चा होती है हरिशंकर तिवारी का नाम सबसे पहले आता है. एक दौर में मोस्ट वांटेड रहे हरिशंकर तिवारी ने ही माफिया गिरोहों के सरगनाओं को सत्ता की राह दिखाई थी. हरिशंकर तिवारी ने ही यूपी की पॉलटिक्स करने वालों को सिखाया कि कैसे जरायम की दुनिया से नाता रखते हुए भी कानून से कबड्डी खेली जा सकती है. हम यहां बात कर रहे हैं आज की पॉलिटिक्स में चर्चित नाम हरिशंकर तिवारी के बारे में बहुत कुछ- 

जब पूर्वांचल की पहचान बन गया 'गैंगवार' शब्द 
अस्सी के दशक में पूर्वांचल में सरकारी परियोजनाओं की शुरुआत होने के साथ ही माफिया और सरकारी ठेकों में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई. कुछ ही साल में इटली में पैदा हुआ गैंगवार शब्द पूर्वांचल की पहचान बन गया. वैसे तो गाजीपुर और वाराणसी माफिया का बड़ा केन्द्र रहा है, लेकिन इसकी शुरुआत गोरखपुर से हुई. जिसमें सबसे पहला नाम हरिशंकर तिवारी का आया था.  

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अपराध की सियासत का जन्मदाता
हरिशंकर तिवारी का नाम राजनीति के अपराधीकरण के जन्मदाता के रूप में आता है. जिनका नाम अपराध जगत में तो 1980 के दशक में ही चर्चा में आ गया, मगर यूपी की सियासत में तहलका तब मचा जब 1985 के विधानसभा चुनाव में हरिशंकर तिवारी जेल में रहते हुए चुनाव जीत गए. पूरे देश में ये पहला मामला था जब कोई माफिया जेल में रहकर चुनाव जीता था. 

वो दौर था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ जेपी ने मोर्चा खोल रखा था. इस दौरान छात्र जेपी के साथ इंदिरा गांधी का विरोध कर रहे थे, लेकिन छात्र आंदोलन के इस चरम दौर में भी पूर्वांचल में कुछ अलग चल रहा था. पूर्वांचल में माफिया की लड़ाई शुरू हो चुकी थी. कॉलेजों और विश्वविद्यालय के छात्रों को माफिया ने अपना टारगेट बनाया. माफिया ने छात्रों को हथियार पहुंचाए और छात्रसंघों की राजनीति में सीधा दखल दिया. इसके बाद पूरा गोरखपुर जातीय आधार पर दो हिस्सों में बंट गया.  

कई बड़े अपराधियों को दिया जन्म  
हालांकि हरिशंकर तिवारी पर जितने भी आरोप लगे वो आज तक साबित नहीं हुए, लेकिन इलाके के पुराने जानकार बताते हैं कि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अपराधीकरण के जिम्मेदार हरिशंकर तिवारी ही हैं. जिनकी वजह से कई बड़े अपराधियों ने जन्म लिया. इन्हीं मे से एक नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला का, जिसे यूपी ही नहीं पूरा उत्तर भारत जानता है. 

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दरअसल, अपने गैंग को विस्तार देने के लिए हरिशंकर तिवारी ने जो तरीका आजमाया वो पूर्वांचल के युवाओं को लुभाने लगा था. लेकिन शातिर हरिशंकर तिवारी ने कभी भी सीधे फ्रंटफुट पर नहीं खेला. इसके बावजूद 1980 के दशक में हरिशंकर तिवारी पर गोरखपुर जिले में 26 मामले दर्ज हुए. इनमें हत्या करवाना, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, छिनैती, रंगदारी, वसूली, सरकारी काम में बाधा डालने जैसे मामले दर्ज हुए. लेकिन आज तक कोई भी अपराध उन पर साबित नहीं हो पाया. 

खास गुर्गे श्रीप्रकाश ने की थी वीरेन्द्र प्रताप शाही की हत्या
क्षेत्र के लोग दबी जुबान कहते हैं कि असल में तिवारी धनबल बाहुबल और हथियारों के जरिए अपराध को संरक्षण देते थे. उन्होंने हमेशा मोहरों का इस्तेमाल किया. इन्हीं में से एक बड़ा मोहरा था श्रीप्रकाश शुक्ला, जिसने क्षेत्र के राजपूत नेता माने जाने वाले वीरेन्द्र प्रताप शाही की लखनऊ में सरेआम हत्या कर दी थी. हत्या भले श्रीप्रकाश ने की लेकिन माफिया की दुनिया में हरिशंकर तिवारी का कद बढ़ गया क्योंकि सब जानते थे कि श्रीप्रकाश उनका खास गुर्गा था. 

शुरू हुआ राजपूत बनाम ब्राह्मण का एक नया संघर्ष
वीरेन्द्र प्रताप शाही की हत्या के बाद तो मानों पूर्वांचल के अपराध जगत में हरिशंकर तिवारी का नाम सबसे बड़ा हो गया. हालांकि इस हत्याकांड के साथ ही पूर्वांचल में राजपूत बनाम ब्राह्मण का एक नया संघर्ष भी शुरु हो गया. जिसके केन्द्र में हरिशंकर तिवारी रहे. हालांकि, हरिशंकर तिवारी अपने शातिर दिमाग का इस्तेमाल करके हर पार्टी के चहेते बने रहे और अपने अतीत को वर्तमान पर कभी हावी नहीं होने दिया.

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