Uttarakhand : राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (National Security Council) की बैठक में इस पर चर्चा की जा रही है. 27 सितंबर को दिल्ली में सुरक्षा परिषद की बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले हो सकते हैं.
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देहरादून : उत्तराखंड (Uttarakhand) में चीन (China) सीमा पर बसे गांवों से पलायन को लेकर केंद्र सरकार ने अलर्ट जारी किया है. राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (National Security Council) की बैठक में इस पर चर्चा की जा रही है. 27 सितंबर को दिल्ली में सुरक्षा परिषद की बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले हो सकते हैं. उत्तराखंड पलायन आयोग के अध्यक्ष डॉ. एसएस नेगी इस पर परिषद के सामने प्रेजेंटेशन देंगे. सुरक्षा परिषद तब सक्रिय हुई, जब उन्हें पता चला कि चीन की सीमा से लगते हुए 14 गांव पूरी तरह से खाली हो गए हैं.
पलायन की मार यहां ऐसी पड़ी कि चमोली का एक, पिथौरागढ़ के 8 और चम्पावत के 5 गांव पूरी तरह खाली हो गए हैं. यही नहीं 8 दूसरे गांव ऐसे हैं, जहां पिछले 7-8 साल में जनसंख्या आधी रह गई. केंद्र अब सीमांत गांवों के लिए विशेष पैकेज देने की तैयारी भी कर रहा है. चीन के सैनिकों की उत्तराखंड की सीमा में भी आवाजाही की खबरें आती रहती हैं.
उत्तराखंड में पलायन को लेकर अलग-अलग राज्य सरकारों ने बड़े-बड़े वायदे किए, लेकिन गांवों से पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है. बीजेपी 2017 के विधानसभा चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाते हुए अपने घोषणा पत्र में जगह दी गई थी. सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) ने पलायन के मामले में एक सदस्यीय आयोग बनाया. आयोग ने कई चरणों में अपनी रिपोर्ट सरकार को दी हैं.
लेकिन जब आयोग ने चीन की सीमा से लगते हुए जिलों की स्थिति का आंकलन किया तो पलायन की असली तस्वीर सामने आई. उत्तराखंड के उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ और चंपावत जिलों की सीमाएं दूसरे देशों से लगती हैं. चमोली में चीन के सैनिकों के आने की खबरें कई बार सामने आती हैं. चीन के सैनिकों की भारत की सीमा में उपस्थिति की जानकारी भी स्थानीय ग्रामीण ही सुरक्षा एजेंसियों को देते हैं, लेकिन जब पलायन आयोग ने देखा कि चीन की सीमा से सटे हुए गांव ही खाली हो रहे हैं तो केंद्र सरकार अलर्ट हो गई.
पलायन आयोग के अध्यक्ष डॉ. एसएस नेगी का कहना है कि अब समस्या सबके सामने है. हमें पता है कि सीमावर्ती गांव खाली हो रहे हैं. हमें इनकी जरूरत के मुताबिक योजना बनानी है. डॉ. नेगी कहते हैं कि सीमान्त गांवों से ग्रामीण दिल्ली या देहरादून नहीं जा रहे हैं, बल्कि पास के ही कस्बों में जाकर बस रहे हैं.