उत्तराखंड में मॉनसून के दौरान होने वाली तबाही को रोकने के लिए अब जनजागरण अभियान चलाए जाने की तैयारी शुरू हो रही है. ये अभियान हिंदु धर्म से जुड़े पहाड़ की परांपरागत शैली के जानकार लोग चलाने जा रहे हैं.
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देहरादून: उत्तराखंड के पहाड़ों में हो रही आपदा की रोकथाम के लिए अब धर्मगुरुओं ने कमान संभाली है. पहाड़ी मूल के धर्मगुरु उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में जागरुकता अभियान चलाने की तैयारी में हैं. ये धर्मगुरु पहाड़ में होने वाले निर्माण में परंपरागत तकनीक इस्तेमाल करने की जानकारी देकर जागरुकता फैलाने का काम करेंगें. हाल ही में उत्तरकाशी के आराकोट क्षेत्र के दर्जनों गांव में बादल फटने से 20 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और 10 हजार से ज्यादा लोग सीधा तौर पर प्रभावित हुए.
उत्तराखंड में मॉनसून के दौरान होने वाली तबाही को रोकने के लिए अब जनजागरण अभियान चलाए जाने की तैयारी शुरू हो रही है. ये अभियान हिंदु धर्म से जुड़े पहाड़ की परांपरागत शैली के जानकार लोग चलाने जा रहे हैं. पहाड़ में भवन निर्माण की एक विशिष्ट शैली है. लेकिन अब लोग अपनी शैली को छोड़कर पक्के निर्माण कच्ची जमीन पर करने लगे हैं.
आधुनिक समय में बेतरतीब निर्माण हो रहा है. इससे जैसे ही तेज बारिश होती है, तो कच्ची जमीन खिसक जाती है. इससे मकान गिर जाते हैं. बाकी कई लोग छोटी नदियों और नालों के किनारे घर बनाये जाते हैं, जो भी बारिश में बड़ा नुकसान करती है. जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर परेशयति जी महाराज का कहना है कि लोगों को अब पुरानी पद्धति को बताने की आवश्यकता है.
उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थियों को बेहतर तरीके से समझने वाले इंजीनियर भी अब इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पानी की निकासी कहां से हो इसके लिए नए सिरे से योजनाए बनानी होंगी. पहाड़ में तबाही का प्रमुख कारण पानी की तेज धार का बस्तियों की तरफ मलबा लेकर आना भी है.
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उत्तराखंड पेयजल निगम के महाप्रबंधक एससी शर्मा का कहना है कि पहाड़ की चोटी से ही पानी की निकासी होनी चाहिए, लेकिन जब ऐसा नहीं होता तो पानी अपने साथ मलबा लेकर आता है, जिससे ज्यादा तबाही होती है. पहाड़ में इसको लेकर अब काम होना शुरू होने लगा है. हाल में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी कई अहम मुददों पर रिसर्च की जरूरत बताई थी.
2013 में भी पहाड़ की चोटी पर मौजूद चोराबाड़ी झील के टूटने से पानी अपने साथ मलबा बहाकर लाया था. इससे वहां पर भारी तबाही हुई थी, जहां घनी आबादी नहीं रहती, वहां पर तो कुछ खास प्लान नहीं बनाया जा सकता. लेकिन जिन गांवों में लोग रहते हैं, वहां पर पानी के निकासी की योजना और मकान बनाने की तकनीक और स्थान पर अब थोड़ा सख्त होना होगा. तभी इस तरह की आपदाओं को कम किया जा सकता है.