नदी किनारे निर्माण पर उत्‍तराखंड हाईकोर्ट सख्‍त, कहा- 'खाली करें जगह'
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नदी किनारे निर्माण पर उत्‍तराखंड हाईकोर्ट सख्‍त, कहा- 'खाली करें जगह'

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस पूरे मामले को लेकर मुख्य सचिव और देहरादून के जिला अधिकारी को परीक्षण कर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है. 

नैनीताल हाईकोर्ट के ताजा आदेश के बाद उत्तराखंड सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं.

देहरादून: नदी किनारे बसे सरकारी भवनों और बस्तियों के मामले में उत्तराखंड सरकार एक बार फिर फंसती हुई नजर आ रही है. नैनीताल हाईकोर्ट ने नदी श्रेणी की जमीन पर हुए निर्माण खाली करने के निर्देश दिए हैं. इस आदेश के दायरे में नदी किनारे बसे कई निजी मकान भी आ गए हैं, जिन्हें खाली करने के नोटिस जारी हो रहे हैं.

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उत्तराखंड में कांग्रेस और बीजेपी की सरकारों ने नदी किनारे की जमीनों का अधिग्रहण कर कई सरकारी विभागों के दफ्तर बनवा दिए. यही नहीं कई केंद्रीय संस्थानों को भी उत्तराखंड सरकार ने नदी किनारे की जमीन आवंटित की है. लेकिन अब नैनीताल हाईकोर्ट के ताजा आदेश के बाद उत्तराखंड सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस पूरे मामले को लेकर मुख्य सचिव और देहरादून के जिला अधिकारी को परीक्षण कर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र के कई सरकारी दफ्तर भी नदी क्षेत्र में बनाए गए हैं.

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देहरादून में चार प्रमुख नदियां बहती हैं. इनमें से रिष्पना, बिंदाल, सुस्वा और सॉन्ग नदी प्रमुख हैं. इन नदियों में पिछले 30 साल से लगातार अवैध बस्तियां बसने का सिलसिला शुरू हुआ. वास्तव में यह सभी नदियां पूरी तरीके से बरसात पर निर्भर हैं. इसलिए साल में सिर्फ दो-तीन महीने ही समस्या होती है. लिहाजा धीरे-धीरे इन नदियों पर कब्जे होते चले गए. कई मामले में सरकार ने भी पट्टे देकर यहां पर लोगों को बसा दिया.

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लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद जब राज्य सरकार को जमीन की आवश्यकता थी तो उसने गलत तरीके से नदी श्रेणी में दर्ज भूमि की श्रेणी बदल दी. नदी किनारे ऐसी कई जमीनों का राज्य सरकार ने अधिग्रहण किया और राज्य और केंद्र के कई संस्थानों को जमीन आवंटित कर दी. पिछले 10 माह से पटवारी लगातार इस तरह के मामले का सर्वे कर रहे हैं.

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खबर है की देहरादून की जेल, मानसिक अस्पताल, सीमा सुरक्षा बल, बीएसएफ, आइटीबीपी , फायर स्टेशन और एक विश्वविद्यालय के परिसर को आवंटित भूमि नदी श्रेणी की है जिसे गलत तरीके से राज्य सरकार ने श्रेणी बदलकर अधिग्रहित किया और सम्बंधित संस्थानों को आवंटित किया है. अब नैनीताल हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए नदी श्रेणी में दर्ज भूमि पर बने निर्माणों को खाली करने के आदेश दिए हैं. इसी तरह का मामला 2018 में भी सामने आया था जब अतिक्रमण के नाम पर नदी किनारे बसे करीब 30 हज़ार लोगों को हटाने का आदेश नैनीताल हाईकोर्ट ने दिया था. उस समय सरकार ने अध्यादेश लाकर किसी तरह से बस्तियों को उजड़ने से बचाया था. 

यह मामला भी कुछ इसी तरह का दिखाई दे रहा है. इस मामले में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि उन्होंने मुख्य सचिव को इस पूरे प्रकरण का परीक्षण करने को कहा है. दूसरी तरफ विपक्ष के नेता सूर्यकांत धस्माना का आरोप है कि सरकार ठीक से हाईकोर्ट में पैरवी नहीं कर पा रही है. जिस वजह से ऐसी समस्याएं बार-बार पैदा हो रही हैं. धस्माना कहते हैं कि सरकार चाहे बीजेपी की सरकार हो या कांग्रेस की जमीनों के अधिग्रहण के लिए कोई स्पष्ट नीति न हो पाने के कारण बार-बार इस तरह की समस्या हो रही है.

हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब सरकार कोई दूसरा रास्ता निकालने की कवायद में जुट गई है. देखना यह है कि क्या हाईकोर्ट के फैसले को सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी या फिर इस बार फिर अध्यादेश लाकर समस्या को कुछ समय के लिए थामने की कोशिश करेगी.

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