'मनहूस' बंगले में रहते थे त्रिवेंद्र सिंह रावत, इसलिए नहीं बचा पाए CM की कुर्सी?
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand862867

'मनहूस' बंगले में रहते थे त्रिवेंद्र सिंह रावत, इसलिए नहीं बचा पाए CM की कुर्सी?

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2017 में जब सीएम पद की शपथ ली थी, तब उन्होंने कहा था कि उनके अंदर बंगले को लेकर कोई शंका या डर नहीं है. सीएम पद की शपथ लेने के बाद ही त्रिवेंद्र रावत ने यह बात साफ कर दी थी कि वह 'मनहूस' कहे जाने वाले बंगले में ही रहेंगे.

'मनहूस' बंगले में रहते थे त्रिवेंद्र सिंह रावत, इसलिए नहीं बचा पाए CM की कुर्सी?

देहरादून: उत्तराखंड में सीएम की कुर्सी बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा प्रतीत होने लगा है. राज्य का गठन हुए भी अभी 20 साल पूरे नहीं हुए, और यहां 11 बार मुख्यमंत्री बदल चुके हैं. इनमें से सिर्फ नारायण दत्त तिवारी ही एकमात्र मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया. बाकी कोई भी अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब नहीं रहा. 

ये भी देखें: शख्स के छूने भर से ऐसे डर गया चूहा, निकल गई चीख, देखें Funny Video

उत्तराखंड में BJP के आंतरिक कलह के बाद मंगलवार को त्रिवेंद्र सिंह रावत दिल्ली से देहरादून पहुंचे और राज्यपाल बेबी रानी मौर्य से मिले. इसके बाद शाम करीब 4.00 बजे उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. सरकार के 4 साल पूरे होने से पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कुर्सी छोड़ दी. उत्तराखंड का अगला सीएम कौन होगा, यह फैसला तो विधायक दल की बैठक के बाद ही लिया जाएगा. खैर, कार्यवाहक सीएम त्रिवेंद्र रावत भी उत्तराखंड के उन 10 मुख्यमंत्रियों की लिस्ट में शामिल हो गए, जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. लोगों के अनुसार इसकी एक बड़ी वजह है सीएम आवास. सुनने में यह बात शायद अजीब लगे, लेकिन उत्तराखंड के सीएम बंगले को राजनीतिक गलियारों में 'मनहूस' माना जाता है. 

ये भी देखें: दादाजी बजा रहे Music, साथ में गा रहा ये तोता, Video देखकर आ जाएगा मजा

हरीश रावत भी नहीं रहते थे बंगले में
उत्तराखंड के सीएम के असफल कार्यकाल का दोष एक बंगले को दिया जाता है. जी हां, राज्य का आधिकारिक सीएम आवास राजनीति में अशुभ बताया जाता है. लोगों का मानना है कि इस बंगले में रहने वाला कोई मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता. यही वजह थी कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी आधिकारिक सीएम आवास में न रह कर राज्य सरकार के एक गेस्ट हाउस में  रहते थे. उनके ऐसा करने के बाद से एक बार फिर इस खबर को हवा मिल गई कि बंगले में रहना शुभ नहीं है. 

ये भी देखें: बच्ची ने गाया गाना और डॉगी ने मटका दी कमर, Video देख हंसी नहीं रोक पाएंगे आप

त्रिवेंद्र रावत को नहीं था इस अफवाह पर भरोसा
कार्यवाहक सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2017 में जब सीएम पद की शपथ ली थी, तब उन्होंने कहा था कि उनके अंदर बंगले को लेकर कोई शंका या डर नहीं है. सीएम पद की शपथ लेने के बाद ही त्रिवेंद्र रावत ने यह बात साफ कर दी थी कि वह 'मनहूस' कहे जाने वाले बंगले में ही रहेंगे. अपने 4 साल के कार्यकाल के दौरान वे वहीं रहे. 

ये भी पढ़ें: जानें कौन हैं उत्तराखंड BJP के पर्यवेक्षक अनिल बलूनी, जिनके नाम की हो रही चर्चा

नवरात्रि के पहले दिन किया था शिफ्ट
हालांकि, सीएम रावत ने निर्णय लिया था कि वह नवरात्रि पर्व के पहले दिन बंगले में शिफ्ट होंगे. क्योंकि किसी भी नए कार्य की शुरुआत के लिए ये दिन अच्छा माना जाता है. इसके बाद पूजा-पाठ कर उन्होंने अपनी पत्नी और दोनों बेटियों के साथ बंगले में प्रवेश किया था. उस समय उनकी कैबिनेट के मंत्री सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, प्रकाश पंत, यशपाल आर्य और मदन कौशिक उनके साथ पूजा में बैठे थे. राज्य के बीजेपी के मीडिया प्रमुख अजय भट्ट भी वहां मौजूद थे.

ये भी पढ़ें: अगर बेकार समझ कर फेंक देते हैं अदरक के छिलके, तो न करें ऐसी गलती, होते हैं कई फायदे

60 में से केवल 5 कमरे इस्तेमाल करते थे कार्यवाहक सीएम
2017 में सीएम पद की शपथ लेने के बाद त्रिवेंद्र रावत के एक करीबी ने मीडिया को बताया था कि बंगले में कोई वास्तु दोष नहीं है, इसलिए उन्हें किसी जानकार से सलाह लेने की जरूरत नहीं पड़ी. गृह प्रवेश के लिए सामान्य रूप से पूजा-पाठ कर ली गई. बताया गया था कि सीएम सादगी से प्रेम करते हैं इसलिए घर में कोई महंगा फर्नीचर नहीं रखा गया. त्रिवेंद्र रावत के परिवार ने 60 कमरों में से केवल 5 का ही इस्तेमाल किया और पानी के अभाव को देखते हुए बंगले का स्वीमिंग पूल भी बंद करवा दिया.

ये भी पढ़ें: 3 कारण: आखिर क्यों देना पड़ा त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस्तीफा?

मनहूसियत की अफवाहों के चलते बंगला हमेशा रहा खाली 
उत्तराखंड का आधिकारिक सीएम आवास पारंपरिक पहाड़ी स्टाइल में डिजाइन किया गया है. साल 2010 में इसे करीब 16 करोड़ की लागत से बनाया गया था. 10 एकड़ में फैले यह बंगला हमेशा खाली ही रहा, क्योंकि मनहूसियत की अफवाहों के चलते यहां कोई नहीं रहा. डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री के रूप में इस आवास में ज्यादा दिन तक पद पर नहीं रह पाए थे. भुवन चंद्र खंडू़ड़ी जब सितंबर 2011 में दोबारा मुख्यमंत्री बने, तो करीब छह माह आवास में रहने के बाद पार्टी चुनाव हार गई. इसके अलावा, विजय बहुगुणा भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे.

WATCH LIVE TV

Trending news